फिल्मी दुनिया में नौशाद की कामयाबी की दास्तान

Story by  ज़ाहिद ख़ान | Published by  [email protected] | Date 28-01-2023
फिल्मी दुनिया में नौशाद की कामयाबी
फिल्मी दुनिया में नौशाद की कामयाबी

 

 

जाहिद खान


फिल्मी दुनिया में नौशाद ने थोड़े से ही अरसे में बड़े-बड़े नामवरों के बीच शोहरत हासिल कर ली थी. लेकिन यह कामयाबी इतनी आसान नहीं थी, इसके पीछे उनका एक लंबा संघर्ष और फिल्म-संगीत के जानिब हद दर्जे की दीवानगी और जुनून था. जिसने उन्हें फिल्मी संगीत का बेताज बादशाह बना दिया.


25 दिसम्बर, 1919 को नवाबों की नगरी लखनऊ में जन्मे नौशाद अली को मौसिकी से शुरुआत से ही लगाव था. संगीत की स्वर लहरी उन्हें अपनी ओर खींचती थी. शहर के अमीनाबाद इलाके में उस वक्त एक रॉयल टॉकीज थी, जिसमें हिन्दी फिल्मों का प्रदर्शन होता रहता था. वह दौर साइलेंट फिल्मों का था, लेकिन जनता के मनोरंजन की खातिर बीच-बीच में पर्दे के पीछे से स्थानीय आर्टिस्ट, ऑर्केस्टा के मार्फत गीत-संगीत पेश करते थे. जिसे दर्शक खूब पसंद करते थे.

 

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नौशाद जब इस इलाके से गुजरते, तो इस गीत-संगीत की गिरफ्त में आ जाते. वे वहीं खड़े-खड़े यह संगीत सुना करते और यह उनका रोज का दस्तूर हो गया था. बहरहाल संगीत सुनते-सुनते, अब उन्हें साज बजाने की चाहत जागी. मगर साज, तो उनके पास था नहीं. संगीत के जानिब उनकी ये चाहत,उन्हें एक वाद्य यंत्रों की दुकान की ओर ले गई. वे वहां नौकरी करने लगे. खाली वक्त में वे चोरी-छिपे हारमोनियम बजाने की कसरत करते, उस पर सुर साधने की कोशिश करते.

 

एक दिन उनकी ये ‘चोरी’ पकड़ी गई. संगीत के जानिब नौशाद का जुनून देखकर, दुकान मालिक गुरबत अली ने न सिर्फ उन्हें वह हारमोनियम तोहफे में दे दिया, बल्कि गज्नफर हुसैन उर्फ लड्डन साहब से भी मिलवाया. लड्डन साहब वही थे, जो रॉयल टॉकीज में ऑर्केस्टा बजाते थे. लड्डन साहब ने उन्हें अपना शागिर्द बना लिया. लड्डन साहब से उन्हें संगीत की बाकायदा तालीम मिली. इसके अलावा उस्ताद बब्बन, यूसुफ अली खान ने भी उन्हें मौसीकी का ककहरा सिखाया.

 

ऑर्केस्टा में संगीत सीखने-बजाने के बाद, नौशाद ने नाटकों में संगीत देना शुरू कर दिया. हीरोज एसोसिएशन के अलावा पारसी रंगमंच के आला ड्रामा निगार आगा हश्र कश्मीरी के कुछ नाटकों को भी उन्होंने अपना संगीत दिया.  नाटक कंपनियों और स्टेज प्रोग्रामों में हिस्सेदारी की वजह से वे देर से अपने घर लौटते. नौशाद के वालिद वाहिद अली, जो कचहरी में मोहर्रिर थे, वे इन सब चीजों के सख्त खिलाफ थे. उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि उनका बेटा गाने-बजाने जैसा नामाकूल काम करे. लिहाजा संगीत की वजह से बाप-बेटे के बीच तनाव बढ़ता चला गया और एक दिन ऐसा भी आया कि उनके अब्बा ने उन्हें यह कहकर घर से निकाल दिया कि ‘‘घर चुनो या संगीत?’’

 

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अठारह साल के नौजवान नौशाद ने संगीत में अपनी बेहतरी देखी और घर को हमेशा के लिए अलविदा कर दिया. लखनऊ से वे सीधे मायानगरी मुंबई पहुंचे. थोड़े से अरसे के स्ट्रगल के बाद ही उन्हें फिल्म ‘समंदर’ मिल गई. इस फिल्म के संगीत में बतौर साजिंदे उन्होंने काम किया. फिल्म के संगीतकार मुश्ताक हुसैन ने उनसे अपनी ऑर्केस्टा में पियानो बजवाया.

 

संगीत का गहरा इल्म और कई वाद्य यंत्रों को कामयाबी से बजाने के अपने हुनर से वे जल्द ही संगीतकार के असिस्टेंट के ओहदे तक पहुंच गए. ‘निराला हिंदुस्तान’ और ‘पति-पत्नी’ फिल्मों में नौशाद ने संगीतकार मुश्ताक हुसैन, ‘सुनहरी मकड़ी’-उस्ताद झंडे खां, ‘मेरी आंखे’-खेमचंद प्रकाश, ‘मिर्जा साहेबान’-डीएन मधोक के साथ असिस्टेंट के तौर पर काम किया.

 

उनकी मेहनत रंग लाई और तीन साल के अंदर ही उन्हें फिल्म ‘कंचन’ में संगीतकार की हैसियत से काम मिल गया. अलबत्ता यह बात अलग है कि साल 1940 में आई, ‘रंजीत मूवीटोन’ बैनर की इस फिल्म में उन्होंने सिर्फ एक गाना ही रिकॉर्ड करवाया था.

 

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साल 1940 में आई ‘प्रेम नगर’ वह फिल्म थी, जिसमें नौशाद ने सफलता का पहली बार स्वाद चखा. इस फिल्म के ज्यादातर गाने हिट हुए. खास तौर पर गीत ‘फन के तार मिला जा, अपने हाथों को’.

 

‘प्रेम नगर’ की कामयाबी ने फिल्म इंडस्ट्री में नौशाद को स्थापित कर दिया. फिर आई उनकी फिल्म ‘स्टेशन मास्टर’, जो टिकिट खिड़की पर बेहद कामयाब साबित हुई. नौशाद की यह पहली फिल्म थी, जिसने सिनेमाघरों में सिल्वर जुबली मनाई. ‘स्टेशन मास्टर’ की सफलता ने नौशाद के लिए बड़े बैनर की फिल्मों का रास्ता खोल दिया.

 

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एआर कारदार जिन्होंने नौशाद को यह कहकर, ‘‘तुम अभी बच्चे हो, पहले तजुर्बा हासिल करो.’’ अपने स्टुडियो से बाहर निकाल दिया था, खुद उन्होंने अपनी फिल्म ‘नई दुनिया’ के संगीत के लिए नौशाद को बुलाया. उम्मीद के मुताबिक फिल्म ‘नई दुनिया’ और उसका संगीत दोनों ही कामयाब रहे.

 

इसके बाद नौशाद ने कारदार प्रोडक्शन की ज्यादातर फिल्मों शारदा, ‘दुलारी’, ‘नमस्ते’, ‘कानून’, ‘संजोग’, ‘जीवन’, ‘सन्यासी’, ‘नाटक’, ‘दर्द’, ‘शाहजहां’, ‘दिल्लगी’, ‘कीमत’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘दास्तान’, ‘जादू’ में अपना संगीत दिया. उनके लाजवाब संगीत की वजह से ये फिल्में सुपरहिट रहीं.

 

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इस दरमियान उनकी फिल्म ‘रतन’ (साल 1944, निर्देशक-एम सादिक), ‘मेला’ (साल 1949, निर्देशक-एसयू सन्नी) और ‘बैजू बावरा’ (साल 1952, निर्देशक विजय भट्ट) आईं, जिनके गानों ने पूरे मुल्क में धूम मचा दी. यह तीनों ही फिल्में म्यूजिकल हिट थीं.

 

‘रतन’ की कामयाबी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह फिल्म सिर्फ पचहत्तर हजार रुपए में बनी थी. लेकिन इसके निर्माता जैमिनी दीवान को इस फिल्म के रिकॉर्डों की बिक्री से सिर्फ एक साल में साढ़े तीन लाख रुपए मिले थे. गाने भी एक से बढ़कर एक दिलफरेब ‘अंखियां मिलाके जिया भरमाके’, ‘मिलके बिछड़ गईं अंखियां’, ‘परदेशी बालमा’.

 

वहीं ‘बैजू बावरा’ के गीत आज भी जब बजते हैं, तो सुनने वाले मदहोश हो जाते हैं. उन पर एक नशा सा तारी हो जाता है. ‘बचपन की मोहब्बत को दिल’, ‘ओ दुनिया के रखवाले’, ‘मोहे भूल गए सांवरिया’ आदि गानों के कम्पोज में नौशाद ने कमाल कर दिखाया है.

 

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एक के बाद एक मिली इन कामयाबियों ने नौशाद को हिन्दी सिनेमा का सिरमौर बना दिया. एक दौर था, जब बड़े बैनर और बड़े निर्देशकों की फिल्में उन्हीं के पास थीं. महान निर्देशक महबूब की फिल्म ‘अनमोल घड़ी’, ‘अंदाज’, ‘अनोखी अदा’, ‘आन’, ‘अमर’ एवं ‘मदर इंडिया’ और के. आसिफ की शाहकार फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ का संगीत नौशाद ने ही दिया था. इन फिल्मों की कामयाबी में उनके संगीत का बड़ा योगदान है.

 

आज भी इन फिल्मों के गाने एक अलग ही जादू जगाते हैं. ‘उड़नखटोला’, ‘कोहिनूर’, ‘गंगा जमुना’, ‘मेरे महबूब’, ‘लीडर’, ‘राम और श्याम’, ‘आदमी’, ‘संघर्ष’ और ‘पाकीजा’ फिल्मों के गाने भी पूरे देश में मकबूल हुए. उनके गाने गली-गली में बजते थे.

 

फिल्म ‘रतन’ (साल-1944) से लेकर ‘पाकीजा’ (साल-1971) तक यानी पूरे सत्ताइस साल नौशाद का हिन्दी सिनेमा में सिक्का चला. जिसके लिए उन्हें कई सम्मानों और पुरस्कारों से नवाजा गया.

 

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फिल्मों में नौशाद के अनमोल, बेमिसाल योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’, ‘पद्मभूषण’ सम्मान और ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया. इसके अलावा राज्य सरकारों ने भी उन्हें तमाम सम्मान और पुरस्कार दिए. जिनमें अहम हैं, ‘महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार’, ‘मध्यप्रदेश शासन का लता पुरस्कार’, ‘उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’, ‘अमीर खुसरो पुरस्कार’, ‘अवध रत्न पुरस्कार’, ‘महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार’, ‘म्यूजिक डायरेक्टर ऑफ मिलेनियम’ और ‘फिल्मफेयर स्वर्ण जयंती लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’.

 

नौशाद ने टेली सीरियल ‘टीपू सुल्तान’ और ‘अकबर द ग्रेट’ में भी संगीत दिया. फिल्मों की तरह इन सीरियलों का भी संगीत हिट रहा.