मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चतुर्वेदी : चार वेदों का ज्ञान और कुरान का संदेश

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 02-11-2025
Maulana Wahidullah Ansari Chaturvedi, who gave the message of love through Vedas, Puranas and Quran
Maulana Wahidullah Ansari Chaturvedi, who gave the message of love through Vedas, Puranas and Quran

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

“चाहे गीता पढ़िए या कुरान, तेरा मेरा प्यार ही है हर पुस्तक का ज्ञान.” ये पंक्तियाँ गोंडा (उत्तर प्रदेश) निवासी मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चतुर्वेदी पर एकदम सटीक बैठती हैं. उन्होंने न केवल वेद, पुराण और कुरान का गहन अध्ययन किया, बल्कि इस ज्ञान को सामाजिक सुधार और सद्भाव फैलाने के उद्देश्य से साझा करना भी उतना ही जरूरी समझा जितना कि मानवता की सेवा करना.

जब उनसे पूछा गया कि “आपने कौन-कौन से हिंदू ग्रंथों का गहराई से अध्ययन किया है – वेद, पुराण, उपनिषद?”, तो मौलाना ने अपनी ज्ञान यात्रा के बारे में बताया, “वर्ष 1980 से मैंने वेद पढ़ना शुरू किया और चारों वेदों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही चाहने वालों ने मुझे ‘चतुर्वेदी’ नाम से सम्मानित किया.” इसके बाद उन्होंने 18 पुराणों में भी महारत हासिल की. इसके अलावा, विभिन्न लेखकों की रामायण, भगवद गीता और बाइबिल का भी गहन अध्ययन किया है.

मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी को हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, अरबी, फ़ारसी और संस्कृत भाषाओं में महारत हासिल है. बचपन से ही उनका मन संस्कृत पढ़ने की ओर आकर्षित था, इसलिए उन्होंने स्कूल में हिंदी के साथ-साथ संस्कृत का भी अध्ययन किया.

मौलाना का मानना है कि हिंदू और इस्लाम, ये दोनों धर्म कई बिंदुओं पर एक-दूसरे से मेल खाते हैं. उनका जीवन और ज्ञान यह दर्शाता है कि धार्मिक विविधता में भी प्रेम, समझ और साझा मूल्यों का महत्व सर्वोपरि है.उनकी यह अद्भुत यात्रा केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि समाज में सद्भाव और सहिष्णुता का प्रेरक संदेश भी है.

मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चतुर्वेदी ने पंडित बृज नारायण चकबस्त की रामायण की उन पंक्तियों से अपनी बात को आगे बढ़ाया, जब वनवास जाने से पहले श्रीराम अंतिम बार अपने माता-पिता से मिलने पहुंचे थे. उन्होंने रुखसत हुआ वो बाप से लेकर खुदा का नाम, राहे वफा की मंजिलें-अव्वल हुई तमाम... उन्होंने कहा कि सभी धार्मिक किताबें मोहब्बत का पैगाम देती हैं लेकिन धर्म के ठेकेदारों ने धर्म में मिलावट कर लोगों को गुमराह किया है. 
 
जब उनसे पूछा गया कि क्या आपकी इस रुचि के पीछे कोई विशेष घटना या प्रेरणा थी? तो उन्होनें बताया कि बचपन में एक बार उनके संस्कृत मास्टर ने उन्हें एक मुनी के कहानी के बारे में प्रश्न किया जो उन्हें याद नहीं थी  उन्हें पूरी क्लास में 35 मिनट के पीरियड में  पड़ा. ये शर्मिन्दगी उनसे बर्दाश्त न हुई और उन्होनें बाजार से उस पुस्तक की कुंजी खरीदी और पूरी कंठस्थ कर ली अगली बार मास्टर साहब के पूछने पर जब मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी ने उन्हें पूरी कहानी सुनायी तब उन्हें प्यूरी क्लास ने सराहा और कहा कि तुम आगे चलकर दुनिया में अपना नाम करोगे.
 
 
जब उनसे पूछा गया कि हिंदू पुराणों और इस्लामी पैग़म्बरों की कथनी में क्या कोई समानता है? तो उन्होनें बताया कि वेदों के अनुसार "ॐ खं ब्रह्म" यानी ब्रह्म हर जगह मौजूद है. वहीँ इस्लामिक कुरान के अनुसार “अल्लाह सभी चीज़ों का निर्माता है, और वह सभी चीज़ों का प्रबंधक है.” उन्होनें कहा कि हाँ, "ॐ" और "अल्लाह" की अवधारणा अलग है, भले ही दोनों को अक्सर ईश्वर या सर्वोच्च शक्ति से जोड़ा जाता है. "ॐ" हिंदू धर्म में एक पवित्र ध्वनि, प्रतीक और परम सत्य का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश (त्रिमूर्ति) से भी जोड़ा जाता है. जबकि "अल्लाह" इस्लाम में ईश्वर के लिए अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है "एक ईश्वर". 
 
वेद, पुराण और कुरान में समानताओं का जिक्र करते हुये मौलाना चतुर्वेदी ने कहा कि कल्कि पुराण में कल्कि अवतार के रूप में मुसलमानों के आखिरी नबी मोहम्मद साहब का जिक्र है. उन्होंने आदम-हौवा, मनु-शतरूपा, एडम-ईव एक ही है. इसी तरह से अल्लाह की बड़ाई करने वाली अरबी में जहां सात आयत हैं तो वहीं संस्कृत में भी सात श्लोक हैं. तो भाषा अलग अर्थ एक ही है और लोगों यही बात समझनी है तभी फर्क के बदल च्तेंगें और प्रेम की धुप खिलेगी.
 
जब आपने इन ग्रंथों का अध्ययन शुरू किया, तो आपके परिवार या समाज की क्या प्रतिक्रिया थी? इस सवाल पर उन्होनें कहा की परमात्मा ने हमें आजादी दी और  मेरे लिए ज्ञान का स्तोत्र हैं ऐसे में मुझे बचपन से जब सब कुछ पढ़ने और याद करनी क्षमता ईश्वर ने हमें दी है तो समाज को उसमें क्या आपत्ति हो सकती है और जिन्हें थी मेने उन्हें प्रेम भाव से समझाया भी की ईश्वर ने हमें इस धरती पर अच्छे कर्म के लिए भेजा जिनमें से एक ये भी है कि हम समाज में फैलीं हुई भ्रांतियों को दूर करें और ऐसा करने के लिए हमें हर ओर ज्ञान अर्जित करना ही होगा ताकि सभी के भीतर से भेदभाव की चादर हट जाए और सभी एकता और प्रेम का चोला ओढ़ लें.
 
 
मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चतुर्वेदी ने आवाज द वॉयस को बताया कि वेद-कुरान में समानता पर विदेश में भी उन्होनें काफी कार्यक्रम किए है जिसमें दुबई अमीरात के सातों हब, सऊदी अरब का मक्का मदीना, आदि विदेश शामिल हैं. मौलाना चतुर्वेदी वेद, पुराण और कुरान में समानता को लेकर सऊदी अरब में जो कार्यक्रम किया वहां 2008 में कार्यक्रम में उन्हें डेढ़ लाख रुपये का पुरस्कार भी मिला था.
 
क्या आप ऐसे शैक्षणिक मंच की कल्पना करते हैं जहाँ सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के ग्रंथों को सम्मान के साथ पढ़ सकें? इस पर मौलाना ने कहा कि हाल ही में मैने पुणे में विश्व शांति केंद्र, जिसे "विश्व शांति गुंबद" के नाम से भी जाना जाता है, कार्यक्रम किया. यह एक स्मारक है जो शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया है, जिसमें एक प्रार्थना कक्ष और पुस्तकालय शामिल है. यहां लोगों को उन्होनें बताया कि हिन्दू और इस्लाम इन दोनों धर्मों में कई सारी बातें एक-दूसरे से मेल खाती है.
 
मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चतुर्वेदी अपने हर कार्यक्रम में लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाने और सीखाने में चूकते नहीं हैं. उनका पूर्ण विश्वास वासुदेव कुटुंबकम (एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है "संपूर्ण विश्व एक परिवार है") में है और वे लोगों को भी इसकी शिक्षा दे रहें हैं.  मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चर्तुवेदी, चारो वेदों का ज्ञान रखते है. इसलिए उनके नाम मे 'चतुर्वेदी' है. फ़िलहाल मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी उत्तर  प्रदेश से है और अब लखनऊ में स्थित है. 
 
क्या कोई ऐसी कथा या श्लोक है जो आपके दिल को छू गया हो? इसपर उन्होनें बताया कि सुदामा चरित कवि नरोत्तमदास द्वारा रचित एक प्रसिद्ध काव्य है, वो उनका सबसे प्रिय है. इसमें जिस प्रकार राजा कृष्ण अपने रंक सखा सद्दाम की सहायता कर प्रेम, भाईचारे और मानवता की भावनाओं का प्रतीक बनें. उसी प्रकार समाज में अगर सभी एक दुसरी के प्रति सोचें तो ये धरती एक खूबसूरत संसार बन जाएगा.
 
वेद, पुराण और कुरान की आयतों की समानता के जरिये मोहब्बत का पैगाम देने वाले मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चतुर्वेदी भावुक हो गए. उन्होनें कहा कि कोई यूं ही मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं बन जाता है. अपनी सौतेली मां को दिए पिता के वचन को निभाने के लिये श्रीराम ने ऐश-ओ-आराम की जिंदगी छोड़कर तकलीफों से भरी जिंदगी बिताने को बेझिझक 14 साल के वनवास को अपना लिया. उन्होंने पैगाम दे दिया कि दुनिया में मां-बाप से बढ़कर दूसरा कोई नहीं होता. हमें श्रीराम से मां-बाप की आज्ञा का पालन करना सीखना चाहिए.
 
 
उन्होंने बताया कि कैसे दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से उनकी मुलाक़ात हुई. उन्होंने श्रोताओं में मौजूद सभी लोगों से पूछा कि किसने चारों वेद पढ़े हैं, और फिर समझाया कि सभ्य समाज को बनाए रखने के लिए वेदों का ज्ञान कितना ज़रूरी है. मौलाना वहीदुल्लाह चतुर्वेदी मौजूदा वक्त में बाबूराव कुमठेकर की ज्ञानेश्वरी गीता का उर्दू अनुवाद कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि ज्ञानेश्वरी गीता असली भगवतगीता के काफी करीब है.
 
मौलाना वहीदुल्लाह अंसारी चतुर्वेदी का मानना है कि ईश्वर ने हमें धरती पर भेजकर ये जिम्मेदारी दी है की हम मानव सेवा करें और इस धरती को और खूबसूरत बनाएं. हर प्रदूषण और भ्रांति से दूर रहकर, सत्य और प्रेम का प्रचार-प्रसार करें. तभी हमारा मानव जीवन सफल होगा. उन्होनें बताया कि "ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय" का अर्थ है कि हमें अहंकार रहित और विनम्रतापूर्ण वाणी बोलनी चाहिए, जिससे सुनने वाले को सुख मिले और स्वयं के मन को भी शांति मिले. कबीर दास जी की इस पंक्ति का संदेश है कि अपनी भाषा को मधुर और संयमित रखना चाहिए. अगर सभी इस बात पर अम्ल करें तो लड़ाई दंगा नहीं होगा और लोगों में शांति का संचार होगा.
 
इस्लाम और हिंदू धर्म की शिक्षाओं में आपको कौन-कौन सी समानताएं दिखाई दीं? इस सवाल पर उन्होनें बताया कि इस्लाम और हिंदू धर्म, भले ही अलग सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से उत्पन्न हुए हों, उनकी शिक्षाओं में अनेक समानताएँ हैं. दोनों धर्म एक सर्वोच्च परम सत्ता में विश्वास रखते हैं — इस्लाम में “अल्लाह” और हिंदू धर्म में “ब्रह्म” या “परमात्मा” को सृष्टि का एकमात्र स्रोत माना गया है. दोनों का मूल संदेश यह है कि ईश्वर एक है, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक है. 
 
 
 
इन धर्मों में सत्य, करुणा, अहिंसा और सदाचार को अत्यंत महत्व दिया गया है. इस्लाम “रहमत” (दया) और “अदल” (न्याय) की शिक्षा देता है, वहीं हिंदू धर्म “अहिंसा परमो धर्मः” और “सत्यं वद धर्मं चर” जैसे सिद्धांतों पर आधारित है. दोनों धर्म आत्म-संयम, उपवास और प्रार्थना के माध्यम से मन की शुद्धि और ईश्वर के निकट पहुँचने का मार्ग बताते हैं. 
 
इस्लाम के अनुसार हर इंसान में “अल्लाह की रूह” है, जबकि हिंदू धर्म कहता है कि आत्मा ब्रह्म का अंश है — अर्थात हर प्राणी में दिव्यता विद्यमान है. इसी प्रकार, दोनों धर्म कर्म और उसके फल पर विश्वास रखते हैं; इस्लाम में यह सिखाया गया है कि हर कर्म का हिसाब क़यामत के दिन दिया जाएगा, जबकि हिंदू धर्म में कर्मफल सिद्धांत के अनुसार हर कर्म का परिणाम अवश्य मिलता है. अंततः दोनों धर्मों का मूल उद्देश्य मानवता, शांति और भाईचारे की स्थापना है — इस्लाम का अर्थ ही “शांति” है और हिंदू प्रार्थनाओं का समापन “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः” के साथ होता है. इस प्रकार, दोनों परंपराएँ जीवन को धर्म, सत्य और प्रेम के आधार पर जीने की प्रेरणा देती हैं.