पिता हाशिम अंसारी के नक्शेकदम पर चल रहे इकबाल अंसारी, बोले राजनीति आड़े न आए, तो सौहार्द को खतरा नहीं

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 15-02-2023
पिता हाशिम अंसारी के नक्शेकदम पर चल रहे इकबाल अंसारी, बोले राजनीति आड़े न आए, तो सौहार्द को खतरा नहीं
पिता हाशिम अंसारी के नक्शेकदम पर चल रहे इकबाल अंसारी, बोले राजनीति आड़े न आए, तो सौहार्द को खतरा नहीं

 

पिता हाशिम अंसारी के नक्शेकदम पर चल रहे इकबाल अंसारी

रावी द्विवेदी

प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या का जिक्र आते ही, सबसे पहले श्री राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद ही जेहन में घूमने लगता है. दशकों तक यह मुद्दा इस जिले और राज्य की सीमाओं से परे देश-दुनिया में सुर्खियां बटोरता रहा. वादी-प्रतिवादी अपनी-अपनी दलीलों के साथ सालों-साल अदालतों के चक्कर काटते रहे. और, फिर वो दौर भी आया, जब अयोध्या में जुटी भीड़ ने विवादित ढांचा गिरा दिया. इस विवाद के बाद सारे आवेश, आक्रोश और उन्माद के बीच अयोध्या नगरी गंगा-जमुनी तहजीब की खेवनहार बनी, शांत भाव से अपनी गति में चलती रही. अयोध्या ने कभी खुद को इस सारे फसाद की आंच में झुलसने नहीं दिया. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है, यहां के लोगों की अपनी मानसिकता और आपसी सद्भाव बनाए रखने के उनके प्रयास. इतने बड़े विवाद का केंद्र रही अयोध्या में परस्पर सौहार्द बनाए रखने में बाबरी मस्जिद के पैरोकार हाशिम अंसारी की भूमिका को कम नहीं आंका जा सकता.

 

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अब, जब यह मामला पूरी तरह सुलझ चुका है और एक तरफ भव्य राम मंदिर का निर्माण जारी है, तो दूसरी तरफ मस्जिद भी आकार ले रही है, ऐसे में हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिशों में लगे हैं.

भूमि विवाद में बाबरी मस्जिद की तरफ से बतौर मुद्दई अदालती जंग लड़ने वाले हाशिम अंसारी बस यही चाहते थे कि मामला शांति से सुलझ जाए. इकबाल अंसारी ने आवाज-द वॉयस के साथ फोन पर बातचीत में बताया कि जब पिता हाशिम अंसारी के निधन के बाद वह इस मुकदमे में पक्षकार बने, तो उनका भी इरादा यही रहा कि मसला शांतिपूर्ण ढंग से सुलझे. वह बताते हैं,

‘‘यही वजह है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने भूमि विवाद पर अपना फैसला सुनाया, तो हमने न केवल इसे तहे-दिल से स्वीकार किया, बल्कि देश भर के मुसलमानों को भी समझाया कि उन्हें बिना किसी विरोध के इसे स्वीकारना चाहिए.’’

 

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राजनीति को लेकर भी इकबाल अंसारी का नजरिया अपने पिता की तरह ही है. हाशिम अंसारी हमेशा कहा करते थे कि वह बाबरी मस्जिद के लिए मुकदमे की पैरवी जरूर करते हैं, लेकिन इसके पीछे कोई राजनीतिक स्वार्थ नहीं है.

वह इससे किसी भी तरह का राजनीतिक फायदा उठाने के खिलाफ थे. इकबाल अंसारी कहते हैं, ‘‘हम धर्म-समाज का काम करने वाले लोग हैं और इसके बदले में कोई राजनीतिक लाभ पाने की अपेक्षा नहीं रखते हैं.’’ इकबाल अंसारी आगे यह भी कहते हैं कि अयोध्या के लोग किसी राजनीति के फेर में नहीं पड़ते और शायद यही वजह है कि मंदिर-मस्जिद मसला देश के अन्य हिस्सों में भले ही विवाद का कारण बना हो, अयोध्या में ये सिर्फ एक जमीन के मुकदमे तक ही सीमित रहा. इकबाल अंसारी का मानना है कि अगर राजनीति आड़े न आए, तो सांप्रदायिक सद्भाव को कोई खतरा नहीं है.

हाशिम अंसारी कैसे बने अयोध्या के गांधी

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हाशिम अंसारी का जन्म 1921 में हुआ थ और महज 11 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया. कक्षा दो तक पढ़ाई करने वाले हाशिम अंसारी बतौर दर्जी थोड़ा-बहुत कमाकर अपना परिवार चलाते थे. उन्होंने ब्रिटिशकाल के दौरान 1934 में विवादित स्थल पर हमला देखा था और जब 1949 में मंदिर-मस्जिद की जमीन को लेकर मुकदमा शुरू हुआ, तो बाबरी मस्जिद की तरफ से मुद्दई उन्हें ही बनाया गया.

फिर 18 दिसंबर, 1961 को हाशिम अंसारी, हाजी फेंकू सहित 9 मुस्लिमों ने जमीन के मालिकाना हक के लिए फैजाबाद सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया. हाशिम अंसारी ने छह दशक से अधिक समय तक मुकदमे में पैरवी की.

इस दौरान कभी भी कानूनी-लड़ाई को अयोध्या में दोनों मजहब के लोगों के बीच परस्पर टकराव की वजह नहीं बनने दिया. हनुमानगढ़ी के महंत रहे ज्ञान दास के साथ मिलकर सुलह-समझौते की पहल भी उन्होंने ही शुरू की थी.

उन्होंने जितनी शिद्दत और संजीदगी से यह मसला आपसी सहमति से हल करने पर जोर दिया, उसने उन्हें अयोध्या का गांधी बना दिया. इकबाल अंसारी कहते हैं कि उनके पिता जिंदगी भर बाबरी मस्जिद के पक्ष में केस लड़ते रहे, लेकिन हिंदू समुदाय के लोगों के साथ कभी उनका मनमुटाव नहीं रहा.

बल्कि साधु-संतों के साथ तो उनकी खासी घनिष्ठता रही. विवादित स्थल से जुड़े मामले के दूसरे पक्षकारों निर्मोही अखाड़ा के राम केवल दास और दिगंबर अखाड़ा के रामचंद्र परमहंस के साथ हाशिम अंसारी की मित्रता एक मिसाल है.

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यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी भी संत-समाज के लोगों के साथ इसी तरह की घनिष्ठता है, इकबाल अंसारी कहते हैं कि वह हमेशा इसी तरह के माहौल में रहे हैं. महंत धर्मदास हों या महंत ज्ञानदास, उनके साथ इकबाल अंसारी के सौहार्दपूर्ण रिश्ते जगजाहिर हैं.

वह बताते हैं कि साधु-संत समाज की तरफ से उन्हें विभिन्न आयोजन में बुलाया जाता रहा है और उन्हें भी इसमें शामिल होने में खुशी होती है. ईद, होली-दिवाली जैसे मौकों पर एक-दूसरे के यहां आना-जाना होता रहता है.

घर पर हमले से भी इरादे नहीं बदले

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इकबाल अंसारी कहते हैं कि अयोध्या एक ऐसी जगह है, जहां हिंदू और मुसलमान हमेशा से मिलजुलकर रहते आए हैं. उन्होंने कहा कि यहां पर तो यह अंतर कर पाना ही काफी मुश्किल है कि कौन किस समुदाय का है. पहले ही नहीं आज भी हम लोग एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं, एक-दूसरे के यहां दावतों में हिस्सा लेते हैं और धार्मिक आयोजनों में भी शामिल होते हैं.

1992 को विवादित ढांचा ढहाए जाने के पीछे ही वह बाहरी लोगों को जिम्मेदार मानते हैं. उनका कहना है कि बाहर से आए लोगों ने कई बार अयोध्या का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की. उनके मुताबिक, 1992 में उनके घर पर हुआ हमला भी कुछ ऐसी ही कोशिश थी. उस दौरान आसपास के हिंदू समुदाय के लोगों ने उनके परिवार को बचाया था.

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इकबाल अंसारी मानते हैं कि हो सकता है कि यह उनके पिता हाशिम अंसारी को मुकदमे से पीछे हटने के लिए डराने की कोशिश रही हो, लेकिन इससे उनके रुख में कोई बदलाव नहीं आया. सरकार की तरफ से मिले मुआवजे से हाशिम अंसारी ने अपना घर ठीकठाक कराया और उसी तरह आगे भी मुकदमा लड़ते रहे.

वह अपने जीवनकाल में अयोध्या मामले में अदालती फैसले का इंतजार करते रहे, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका और 20 जुलाई 2016 को आखिरकार उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके बाद उनकी जगह इकबाल अंसारी इस मुकदमे के पक्षकार बने.

कोर्ट का फैसला आने के बाद उन्होंने सभी पक्षों से इसे स्वीकारने की अपील की. वहीं, जब अगस्त 2020 में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन हुआ, तो पहला निमंत्रण पाने वालों में इकबाल अंसारी भी थे. इकबाल अंसारी इस कार्यक्रम में शामिल भी हुए. उन्हें खुशी है कि अदालती फैसले ने इस विवाद को हमेशा के लिए सुलझा दिया है और राम मंदिर का निर्माण हो रहा है.

‘पिता के जैसा कद हासिल नहीं कर सकता’

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इकबाल अंसारी कहते हैं कि हर किसी की तरह उनके लिए भी उनके पिता एक आदर्श हैं. उन्होंने उनसे यही सीखा है कि कभी किसी का बुरा न सोचना चाहिए और न ही किसी का बुरा करना चाहिए. इकबाल अंसारी कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता से काफी कुछ सीखा और अयोध्या जमीन विवाद में पक्षकार बनने के बाद उनकी तरह ही मामले को आपसी सहमति से हल करने के हरसंभव प्रयास किए. लेकिन मानते हैं कि वह उनके जैसा मुकाम नहीं हासिल कर सकते.

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अयोध्या के जाने-माने साहित्यकार डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी कहते हैं कि अच्छी बात है कि इकबाल अंसारी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन शायद ही उनके जैसा कद हासिल कर पाएं. उन्होंने कहा कि हाशिम अंसारी ने बौद्धिक या राजनीतिक स्तर पर भले ही कोई मुकाम न बनाया हो, लेकिन उनके साधारण व्यक्तित्व और उनकी जीवटता ने अयोध्या समेत देश-दुनिया में उन्हें काफी सम्मान दिलाया. इसमें कोई दो-राय नहीं कि अयोध्या की गंगा-जमुनी तहजीब आगे बढ़ाने में उनकी अहम भूमिका रही है.

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अयोध्या में मस्जिद निर्माण की जिम्मेदारी संभाल रहे इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट से जुड़े अरशद अफजाल बताते हैं कि अयोध्या में जमीन को लेकर मुकदमे की पैरवी करने के लिए परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी एक ही रिक्शे या गाड़ी में बैठकर अदालत जाते थे.

रास्ते में चाय-पान भी साथ ही करते. उनकी दोस्ती को प्रतीकात्मक तौर पर देखें, तो बहुत ही गहरे मायने हैं. कोर्ट में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े पक्षों का इस तरह साथ रहना, कहीं न कहीं आपसी मेलजोल बनाए रखने का संदेश ही देता था. वह कहते हैं कि अयोध्या के लोग कल भी इसी संस्कृति में विश्वास रखते थे और आज भी रखते हैं. उन्होंने बताया कि यहां दर्जनों मठ-मंदिर और मस्जिदें आसपास हैं. यही नहीं यहां बन रहे राममंदिर के परिसर से भी लगी हुई तमाम मस्जिदें हैं, लेकिन उन्हें लेकर भी दोनों समुदायों के बीच किसी तरह का कोई द्वेषभाव नहीं है.

आज भी साधारण जीवन जी रहा परिवार

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इकबाल अंसारी के परिवार में पत्नी मुन्नी बेगम और बेटी शमा परवीन के अलावा चार बेटे हैं. चार बेटों चांद बाबू, इस्लाम अंसारी, इकलाख अंसारी शोएब अंसारी में दो मोटर मैकेनिक की दुकान चलाते हैं और दो अपनी गाड़ी चलाते हैं.

उनका परिवार आज भी साधारण जीवन जीता है. इकबाल अंसारी कहते हैं कि उन्होंने जमीन के मुकदमे और धर्म-समाज के कामों से आगे बढ़कर राजनीति में शामिल होने की कोशिश नहीं की. न ही राजनीतिक स्तर पर कोई फायदा उठाने की कोशिश की.

उन्होंने अपने बच्चों को भी मेहनत से काम करने और सभी धर्मों का सम्मान करने की ही सीख दी है. यह पूछने पर कि क्या नई पीढ़ी को कोई संदेश देना चाहेंगे, इकबाल अंसारी यही कहते हैं कि किसी निर्बल-दुर्बल को नहीं सताना चाहिए. हमेशा सच की ओर बढ़ना चाहिए और कर्म की प्रधानता को ही स्वीकारना चाहिए.

लोगों को ऊपर वाले से डरना चाहिए, क्योंकि गलत करने वाला कभी बख्शा नहीं जाता है. उनका यह भी कहना है कि देश में हिंदू-मुसलमान के नाम पर एक-दूसरे से लड़ने या बैरभाव रखने वाले लोगों को श्रीराम की नगरी अयोध्या से सद्भाव की सीख लेनी चाहिए.