बच्चों को उर्दू पढ़ाएंगे नहीं तो बचेगी कैसे: अतहर फारूकी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-02-2024
If we teach Urdu to children then how will Urdu survive: Athar Farooqui
If we teach Urdu to children then how will Urdu survive: Athar Farooqui

 

अंजुमन तरक्की उर्दू का इतिहास 140 पुराना है. 1882 में इसकी स्थापना हुई.  इसे 1882 में सर सैयद ने स्थापित किया था. अलीगढ में तब वो अपने शिक्षा मिशन को आगे बढ़ा रहे थे. उसके बाद से यह संस्था आगे बढ़ती रही. 1903 में जब शिब्ली नोमानी इसके सेक्रेरटरी बने और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, जो बाद में भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने, वो इसके सहायक सचिव हुए. उसके बाद यह एक खुदमुख्तार संस्था बन गई. इसके बाद अलीगढ़ से इसका कोई खास ताल्लुक नहीं रहा. जब ये दिल्ली आई और इसकी अपनी बिल्डिंग बनी तो इसका नाम उर्दू घर रखा गया. आजादी से बहुत पहले इसके बारे में सोच गया था. यह महात्मा गांधी के विचार थे. यह कहना है अंजुमन तरक्की के मौजूद सचिव अतहर फारूकी की. उनसे अंजुमन के बारे में आवाज द वाॅयस की अमीना माजिद ने लंबी गुफ्तगू की. यहां प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंश.
 
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अमीना- हमारी जुबान रिसाले के बारे में बताइए?

अतहर -हमारी जबान हमारा हफ्तावार अखबार है जिसमें उर्दू दुनिया कि खबरें होती हैं. ये 80 साल से निकाल रहा है. इसमें उर्दू दुनिया की खबरें मिलती हैं. लोग इससे बड़ी तादाद में पढ़ते हंै.
 
अमीना- शिबली मेमोरियल लाइब्रेरी के बारे में बताइए?

अतहर -अंजुमन के पास एक लाइब्रेरी तो शुरू से थी. इसका नाम शिबली मेमोरियल लाइब्रेरी बहुत बाद में रखा गया. 20-25 साल पहले रखा गया ये नाम. हमारे पास मौजूद किताबें बहुत पुरानी हैं और लगभग दुर्लभ श्रेणी में हैं.
 
हमारे पास बड़ी संख्या में दुर्लभ पांडुलिपि भी हैं जो आपको शायद किसी भी पुरानी लाइब्रेरी में नहीं मिलेंगी. कुछ ऐसी भी हैं जिनके पास किताबों का संग्रह है. यह एक बहुत अच्छी लाइब्रेरी है. अब हमने लाइब्रेरी को डिजिटाइज कर दिया है. आधे से ज्यादा ऑनलाइन किताबें हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं.
 
अमीना- वर्चुअल सेमीनर्स हुए हैं शाहजहानाबाद पर तो आगे क्या इरादा है आपका? 

अतहर-वर्चुअल सेमीनर्स कोविड की वजह से किए थे. अब तो हम 4 दिन का फेस्टिवल कर रहे हैं. जो एक हिम्मत का काम है. 4 दिन तक लोगों को रोक कर रखना है.
 
अमीना-नई नस्ल तक उर्दू पहुंचाने की कितनी ज्यादा जरूरत है ?

अतहर- पहली तो बात यह कि नई नस्ल उर्दू कैसे पढे़़. इसका जवाब उन लोगों के पास है जिनके बच्चे हैं. अगर वो लोग ये सोचते हैं कि अपने बच्चों को उर्दू पढ़नी चाहिए तो बच्चे उर्दू पढ़ेंगे.
 
अगर वो समझते हैं कि उर्दू नहीं पढ़ानी चाहिए और दूसरों के उर्दू पढ़ने  से उर्दू बच जाएगी तो यह एक खुशफहमी है जो उर्दू वालों  ने पाल रखी है. इसमें कोई क्या कर सकता.
 
लेकिन  उर्दू का जो सर्वाइवल है वो किसी भी दूसरी जुबान की तरह जब तक वो पढ़ी नहीं जाएगी, सिलेबस में नहीं होगी, तब तक जुबान को बचाना मुश्किल काम है.
 
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अमीना- सोशल मीडिया पर अंजुमन की कितनी प्रेजन्स है ?
 
अतहर- 140 साल पुराने इदारे से ये जानना मुनासिब सवाल नहीं है. हर ईदारे का काम करने का अपना तरीका है. हम 140 साल से काम कर रहे हैं. हमने किताबें छापी हैं. हमारे रिसाले निकलते हैं जो उर्दू का सबसे बड़ा रिसाला है.
 
उसको भी 103 साल हो गए हैं. सबसे अच्छी किताबें हमने छापी हैं, लेकिन हां सोशल मीडिया को नकारा नहीं जा सकता. हम सोशल मीडिया पर भी बखूबही मौजूद हैं.
 
हमारे फेस्टिवल की पोस्ट 20 लाख देखी जा चुकी है. सोशल मीडिया पर होना जरूरी है, लेकिन बुनियादी चीजों को नहीं भूलना चाहिए. किताबें अखबार पढ़ने चाहिए.
 
अंजुमन नई चीजों को अपनाने के लिए तैयार है, लेकिन बुनियादी चीजों को छोड़ने के लिए भी हम तैयार नहीं. हम लोगों से उम्मीद करेंगे के अच्छी किताबें पढ़े, अपने बच्चों को पढ़ाएं. ये नहीं है कि वो सारे काम छोड़ कर सोशल मीडिया पर लग जाएं. जहां आपका जो अटेंशन स्पैन होता है वो दो मिनट तीन मिनट का होता है.
 
अमीना- जश्न ए रेख्ता   फेस्टिवल्स के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे ?
 
अतहर- रेख्ता ने बहुत बड़ा काम किया है. जब रेख्ता शुरू हुआ था तब और जुबानों में फेस्टिवल्स इतने नहीं होते थे. रेख्ता के बाद बहुत सारी जुबानों में फेस्टिवल्स हो रहे हैं.
 
रेख्ता ने अच्छा काम किया, लेकिन उनका काम करने का दायर अलग है. हम दोनों को एक दूसरे कि जरूरत है. लेकिन ईदारे भी अपने में अलग और अच्छा काम कर रहे हैं. 
 
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अमीना- नौजवान उर्दू शायरी की तरफ आ रहे हैं. आज के अहद की शायरी के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
 
अतहर- शायरी की तरफ आने का मतलब ये कि आप  शायरी पढ़ते हैं. जब तक आप शायरी को संजीदगी से नहीं पढ़ेंगे, कैसे उसकी सराहना करेंगे. अगर आप शायरी को पढ़ना चाहते हैं  तो आपको शायरी की समझ होनी चाहिए. 
 
अमीना- आपके होने वाले फेस्टिवल मीर की दिल्ली के बारे में बताइए ?
 
अतहर- मीर को 300 साल पूरे हो चुके हैं. किसी ईदारे को इसका ख्याल नहीं आया कि जश्न करना चाहिए. इसलिए हम 4 दिन का जश्न कर रहे हैं मीर का. अहम काम हमने ये किया कि मीर कि जीवनी पूरी नहीं छपी थी. उसे पहली बार हमने पूरा छापा है जिसे हम रिलीज करेंगे.