हिजाबी पर्वतारोही रिजवाना के हौसले बुलंद, एक दिन एवरेस्ट पर लहराएंगी तिरंगा

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 22-01-2023
रिजवाना खान सैफी ने हिमाचल प्रदेश में 5,158 मीटर ऊंचे माउंट डांगमाचन को फतह किया 
रिजवाना खान सैफी ने हिमाचल प्रदेश में 5,158 मीटर ऊंचे माउंट डांगमाचन को फतह किया 

 

रावी द्विवेदी

रिजवाना खान सैफी ने 25 सितंबर, 2022 को हिमाचल प्रदेश में 5,158 मीटर ऊंचे माउंट डांगमाचन को फतह करके एक और उपलब्धि अपने नाम कर ली. अब उन्हें इंतजार है कि कोई तो आगे आए और कहीं से मदद का हाथ बढ़े, ताकि आर्थिक बाधाएं पार करके वह एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली हिजाबी पर्वतारोही बन सकें.

उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में पिलखुवा के रहने वाले एक साधारण परिवार में जन्मी रिजवाना खान सैफी ने पिछले करीब एक दशक के दौरान न जाने कितने पहाड़ों की ऊंचाई नाप डाली.

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पहाड़ों पर कैंप करना, उन्हें फतह करना कुछ ऐसा है, जिसके आगे रिजवाना बचपन में तमाम अभावों के बीच गुजरी जिंदगी और पर्वतारोहण को लेकर अपने जुनून के कारण मिले तानों का हर गम भूल जाती हैं.

अब रिजवाना की अगली मंजिल है माउंट एवरेस्ट को फतह करना, लेकिन इस पर आने वाला खर्च एक बड़ी चुनौती है. हालांकि, उसके हौसले बुलंद हैं और वह अपना सपना पूरा करने की हरसंभव कोशिश में जुटी हैं. रिजवाना कहती हैं, ‘‘इंशाअल्लाह, अगर सब ठीक रहा, तो इस साल ही एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने में जरूर सफल होऊंगी.’’

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रिजवाना (25 वर्ष) रामपुर स्थित इम्पैक्ट कॉलेज से होम साइंस में ग्रेजुएशन पूरी कर चुकी हैं और प्रथम श्रेणी में पास हुई हैं. पिछले साल सितंबर में माउंट डांगमाचन फतह करने के बाद से उनका ज्यादातर समय अपने परिवार के साथ बीत रहा है.

उनके परिवार में माता-पिता के अलावा तीन भाई और तीन बहनें हैं. रिजवाना की उपलब्धियों पर उसके पूरे परिवार को फख्र है और खुद रिजवाना यह बताते हुए खुशी से फूली नहीं समातीं कि वह एक ऐसे परिवार का हिस्सा हैं, जिसने कभी लड़की-लड़के में भेद नहीं किया और न ही किसी तरह की रुढ़िवादी सोच उन पर थोपी. उल्टे उनके वालिद हर कदम पर पूरी मजबूती से उनके साथ खड़े रहे. दूसरे शब्दों में कहें, तो पिता इंतजार अली सैफी ने ही रिजवाना के सपनों में रंग भरे और उनकी वजह से ही रिजवाना इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं.

बचपन से ही लुभाते रहे पहाड़

रिजवाना ने आवाज-द वॉयस को बताया कि छुटपन में पढ़ाई के दौरान जब उसने अपने पिता से पहाड़ों के बारे में जाना तभी कहीं न कहीं उसके मन में यह बात बस गई कि वहां तक कैसे पहुंच सकती है.

किताबों में छपी पहाड़ों की तस्वीरें देखते ही उसे लगता कि काश उन्हें छू सके. यह पूछे जाने पर पहाड़ों पर चढ़ने के दौरान कभी डर नहीं लगता, रिजवाना एकदम बच्चों की तरह चहककर कहती है, ‘‘डर कैसा!’’.

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चारों तरफ बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच होना तो उन्हें बेहद सुकून देता है. उनका अब एक ही लक्ष्य है कि माउंट एवरेस्ट फतह करके यह उपलब्धि हासिल करने वाली पहली हिजाबधारी महिला बनने का.

छह भाई-बहनों में दूसरे नंबर की रिजवाना अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाली कल्पना चावला से प्रेरित हैं. वह खुद से हमेशा यही सवाल करती रही हैं कि जब कल्पना चावला अंतरिक्ष तक का सफर तय कर सकती हैं, तो वह पहाड़ों को फतह क्यों नहीं कर सकतीं?

रिजवाना ने 2013 में जम्मू-कश्मीर के जवाहर पर्वतारोहण एवं शीतकालीन खेल संस्थान में पहले साल की ट्रेनिंग के दौरान ‘बेस्ट एंड्योरेंस अवॉर्ड’ हासिल किया था. उन्होंने उसी समय तय कर लिया कि उसे पर्वतारोहण में ही अपना करियर बनाना है. रिजवाना ने यह बात जब अपने वालिद इंतजार अली सैफी से कही, तो उन्होंने भी उसका सपना पूरा करने की ठान ली. तबसे ही वह हर छोटे-बड़े कदम पर अपनी बेटी का साथ दे रहे हैं.

पिता ने नहीं की तानों की परवाह

सैफी बैग बनाने वाली एक फैक्टरी में मैकेनिक के तौर पर काम करते थे. वह रिजवाना को पर्वतारोहण स्पर्धाओं में हिस्सा दिलाने के लिए छुट्टी लेकर उनके साथ जाते थे. इस वजह से उन्हें अपनी नौकरी तक गंवानी पड़ी. यहां तक कि रिजवाना के भाइयों ने भी घर चलाने के लिए छोटे-मोटे काम किए.

पर्वतारोहण में करियर बनाने के सफर के दौरान न केवल रिजवाना, बल्कि उनके परिवार को भी समाज को ताने सहने पड़े. फोन पर बातचीत के दौरान रिजवाना ने जब अपने संघर्षों के बारे में बताया, तो उसकी आवाज से जाहिर था कि ये बातें उसे किस हद तक चुभी होंगी.

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रिजवाना को समय-समय पर याद दिलाया जाता था कि वह एक लड़की हैं, लिहाजा उसे सिर्फ पर्वतारोहण जैसे करियर के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए. उसने बताया कि आसपास के लोग ही नहीं रिश्तेदार भी उसके पिता को ताने देते थे कि वह उसे इतनी आजादी क्यों दे रहे हैं.

रिजवाना के मुताबिक, ‘‘वे कहते यह लड़का नहीं, लड़की है. तुम इसको इस सबकी इजाजत क्यों दे रहे हो. लड़की पराया धन होती है, उसकी शादी कर दो. लड़कियां जितनी जल्दी अपने घर चली जाएं, उतना ही बेहतर होता है. यही नहीं वे मुझसे भी कहते कि सड़कों पर दौड़ने और पहाड़ों पर चढ़ने से तुम्हें क्या हासिल होगा?’’

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हालांकि, रिजवाना के मुताबिक, न तो उसके पिता ने ऐसे तानों की परवाह की और न ही उसे इससे परेशान होने दिया. उन्होंने उसे इस सबकी परवाह न करते हुए एक ही बात सिखाई कि जो अच्छा व्यवहार करे, उसके साथ अच्छा व्यवहार करो और जो उल्टा-सीधा बोले, उसे मुंहतोड़ जवाब दो.

उपलब्धियों से भरा है सफर

2013 से अब तक रिजवाना ने कई स्पर्धाओं और टूर्नामेंट में हिस्सा लिया है, जिनमें वे शाबाशी हासिल करने के साथ अवॉर्ड जीतने में भी कामयाब रहीं. इनमें पहली और चौथी वुशु स्पोर्ट्स फेडरेशन एंड स्पोर्ट्स चैंपियनशिप में मिला कांस्य और रजत पदक शामिल है.

उनके खाते में 2013 में 6,135 मीटर ऊंचे माउंट स्टॉक कांगड़ी और 6,125 मीटर ऊंचे माउंट गोल्फ कांगड़ी को फतह करने की उपलब्धि भी दर्ज है. इसके अलावा, वह 2020 में माउंट फ्रेंडशिप पीक एक्सपेडिशन समिट में 5,289 मीटर और 2021 में केदारकांठा ट्रैक समिट में 12,500 फीट चढ़ाई करके 112 फीट लंबा तिरंगा फहराने में कामयाब रही थीं.

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जुलाई 2021 में उन्होंने माउंट यूनम पीक एक्सपेडिशन समिट के तहत 6,111 मीटर ऊंची पर्वत चोटी छुई थी. 25 सितंबर 2022 को हिमाचल प्रदेश में 5,158 मीटर ऊंचे माउंट डांगमाचन की सफल चढ़ाई रिजवाना की हालिया उपलब्धि है.

19 सितंबर को चढ़ाई शुरू करने वाली रिजवाना को माउंट डांगमाचन की चोटी तक के सफर में दो बार खराब मौसम और ओलावृष्टि का सामना करना पड़ा. वर्ष 2021 में दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने रिजवाना को खेल पुरस्कार से नवाजा था.

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अपने सहपाठियों और दोस्तों के बीच रिजवाना ‘हिजाबी पर्वतारोही’ के रूप में मशहूर हैं. उनका एक यू-ट्यूब चैनल भी है, जिस पर वह एक पर्वतारोही के रूप में अपने सफर के बारे में जानकारी साझा करती हैं. रिजवाना कहती हैं, ‘‘एक दिन मेरा यह सफर इतिहास की किताबों में पढ़ाया जाएगा.’’

...लेकिन मिशन एवरेस्ट बना चुनौती

अपने पिता और पूरे परिवार के साथ की बदौलत रिजवाना कई पहाड़ फतह कर चुकी हैं, लेकिन परिवार की वित्तीय स्थिति अब माउंट एवरेस्ट फतह करने के उनके सपने में आड़े आ रही है.

दृढ़ इच्छाशक्ति और लगातार अभ्यास के बलबूते विभिन्न स्पर्धाओं में अपने शहर, जिले और राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुकी रिजवाना के लिए अब बिना किसी बाहरी मदद के एवरेस्ट फतह करना मुमकिन नहीं है. वह कहती हैं, ‘‘मेरे पिता और परिवार ने बहुत कुछ किया है. लेकिन, अब उनके लिए आर्थिक रूप से यह सब संभव नहीं हो पा रहा है. लेकिन, मैं अपनी सालों की मेहनत और सपने को टूटते भी नहीं देख सकती.’’ कुछ नेताओं ने रिजवाना को वित्तीय मदद मुहैया कराने का वादा तो किया, लेकिन इन पर कोई अमल नहीं हुआ. हालांकि, ऐसा नहीं है कि कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया.

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रिजवाना बताती हैं कि क्राउड फंडिंग के जरिए करीब 1.38 लाख की वित्तीय मदद मिली है, लेकिन वह एवरेस्ट फतह के लिए काफी नहीं है. रिजवाना के सपनों को पूरा करने में इंपैक्ट कॉलेज भी हरसंभव मदद कर रहा है.

इंपैक्ट कॉलेज के चेयरमैन सुल्तान अहमद कहते हैं, ‘‘रिजवाना की उपलब्धियों पर हमें बहुत गर्व है. आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण माउंट एवरेस्ट फतह करना उसके लिए एक चुनौती बना हुआ है. हमने उसे वित्तीय मदद मुहैया कराने के लिए अपने स्तर पर भी प्रयास किए हैं.’’

रिजवाना ने भी बताया कि कॉलेज ने हर कदम पर उसका साथ दिया. वहां पढ़ने के दौरान उसकी फीस भी माफ कर दी गई थी.

दूसरों को सक्षम बनाने की चाहत

यह पूछे जाने पर कि पर्वतारोहण के अलावा जीवन में क्या हासिल करने का इरादा रखती हैं. रिजवाना बताती हैं कि उन्होंने इतनी छोटी उम्र में काफी संघर्ष देखा है, इसलिए अपनी जैसी स्थितियों की सामना करने वाले लोगों की आवाज बनना चाहती हैं.

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उनके मुताबिक, जब भी कोई कुछ हासिल करने की कोशिश में लगा होता है, तो लोग उसे नीचे गिराने की कोशिशें करते नहीं थकते. अगर कभी भी लगा कि किसी को उनकी किसी भी तरह की मदद की जरूरत है, तो उससे पीछे नहीं हटेंगी.

रिजवाना बताती हैं कि उनके पिता ने हमेशा यही सिखाया है कि शिक्षा हासिल करने के साथ सक्षम होना भी बहुत जरूरी है. और वह खुद को सक्षम बनाने की हरसंभव कोशिश करेंगी, ताकि जितनी जल्द संभव हो एवरेस्ट फतह का अपना सपना पूरा कर सकें.

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वह जोर देकर कहती हैं, ‘‘मैं एवरेस्ट फतह करना चाहती हूं और एक दिन ऐसा करके रहूंगी. मैं एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा जरूर फहराऊंगी.’’