गुलज़ार हुसैन: कश्मीर में शिव मंदिर के मुस्लिम संरक्षक

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 04-06-2025
Keeper of Shiva Temple: The Unique Story of Gulzar Hussain
Keeper of Shiva Temple: The Unique Story of Gulzar Hussain

 

अर्सला खान/नई दिल्ली
 
'हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में हैं भाई-भाई'..हम बचपन से ही ऐसी एकता और भाईचारे से भरी कहानियां सुनते आ रहे हैं, लेकिन कैसा हो जब ये कहानी सच हो जाए तो, ऐसी एक मिसाल पेश की जम्मू-कश्मीर के बडगाम में रहने वाले गुलज़ार हुसैन ने...,दरअसल  जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक सद्भाव की एक अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं बडगाम के गुलज़ार हुसैन, जो पिछले कई वर्षों से एक शिव मंदिर की देखभाल कर रहे हैं. यह कहानी न केवल धार्मिक सहिष्णुता की है, बल्कि मानवीय मूल्यों और भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत की भी गवाह है.

गुलज़ार हुसैन रोज सुबह मंदिर की सफाई करते हैं, दीप जलाते हैं और मंदिर परिसर की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं. 1990 के दशक में जब कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर जाने को मजबूर हुए, तब से गुलज़ार हुसैन ने यह जिम्मेदारी स्वेच्छा से अपने कंधों पर ली. उनका मानना है कि धर्म इंसानियत से कभी ऊपर नहीं हो सकता.
 
 
मंदिर की देखभाल के अलावा, गुलज़ार हुसैन स्थानीय लोगों को भी प्रेरित करते हैं कि वे धार्मिक स्थलों की सुरक्षा में अपना योगदान दें. उनका कहना है कि हर धर्म का सम्मान करना हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है. वे अक्सर युवाओं को बताते हैं कि कैसे कश्मीर की पहचान इसी गंगा-जमुनी तहजीब से बनी है.
 
स्थानीय लोगों भी बताते हैं कि हर साल शिवरात्रि के अवसर पर, गुलज़ार हुसैन मंदिर को विशेष रूप से सजाते हैं और दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं का स्वागत करते हैं. वे कहते हैं कि जब कोई कश्मीरी पंडित परिवार मंदिर में पूजा करने आता है, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता.
 
 
स्थानीय मुस्लिम समुदाय भी गुलज़ार हुसैन के इस काम का सम्मान करता है. उनके इस कार्य ने दिखाया है कि धार्मिक सद्भाव कैसे समाज को मजबूत बनाता है. कई स्थानीय निवासी उनकी मदद के लिए आगे आते हैं, खासकर त्योहारों के दौरान.
 
गुलज़ार हुसैन का यह प्रयास राष्ट्रीय एकता और धार्मिक सद्भाव का एक जीवंत उदाहरण है. उनका कहना है कि मंदिर की देखभाल करना उनके लिए केवल एक कर्तव्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संतुष्टि का स्रोत भी है. वे मानते हैं कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं. उनकी इस सेवा को देखते हुए कई सामाजिक संगठनों ने उन्हें सम्मानित भी किया है. लेकिन गुलज़ार हुसैन के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार लोगों का प्यार और सम्मान है. वे कहते हैं कि जब तक उनमें ताकत है, वे मंदिर की सेवा करते रहेंगे. 
 
 
गुलज़ार हुसैन ने क्या कहा?
 
एक उर्दू अखबार से बातचीत करते हुए गुलज़ार हुसैन कहते हैं, “मैं हर रविवार मस्जिद में नमाज अदा करता हूं, और उसके बाद इस मंदिर में आता हूं. यहां दीपक जलाता हूं, सफाई करता हूं और ईश्वर से सभी के लिए शांति की प्रार्थना करता हूं.” वे आगे कहते हैं, “जो कश्मीरी पंडित इस घाटी से चले गए, वे भले ही अभी न आ सकें, लेकिन जब भी लौटें, उन्हें यह मंदिर वैसा ही मिलेगा, जैसा उन्होंने छोड़ा था."
 
गुलज़ार हुसैन की यह कहानी हमें सिखाती है कि धर्म कभी बंधन नहीं बनना चाहिए, बल्कि यह मानवता और प्रेम का पुल बनना चाहिए. उनका जीवन साबित करता है कि सच्ची श्रद्धा धार्मिक सीमाओं से परे होती है.