मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
गालिब इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित ‘भारत के संविधान के तहत विविधता का प्रबंधन’ विषय पर फखरुद्दीन अली अहमद स्मृति व्याख्यान आयोजित किया गया. जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आफताब आलम ने की. अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा कि भारत गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद का राजनीतिक जीवन देश और राष्ट्र को एकजुट करने में गुजारा.
एकता उनके लिए कोई नारा नहीं था, बल्कि उन्हें एहसास था कि देश के विकास के लिए यही एकमात्र रास्ता हो सकता है. देश के संविधान निर्माताओं ने विविधता के महत्व और सुंदरता को कितनी शिद्दत से महसूस किया था और एक खूबसूरत संविधान देश को दिया. जिस देश में रहने सभी लोगों को जाति, धर्म, संस्कृति आदि के अधिकार के लिए जगहें हैं.
एकता और विविधता परस्पर अनन्य नहीं
वहीं, चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर फैजान मुस्तफा ने कहा कि लोग गलती से एकता को विविधता का विरोधी मानते हैं. हालांकि विविधता के बिना एकता नहीं हो सकती. हमारे संविधान के प्रस्तावना में लिखा है कि हर किसी को अपनी पहचान बनाए रखने का पूरा अधिकार होगा. सभी को एक में मिला देना हमारे संविधान का स्वभाव नहीं है. जिस सिद्धांत पर हमारा संविधान बना है, उसे सलाद की थाली की तरह समझा जा सकता है, जिसमें हर चीज की अपनी पहचान होती है, लेकिन थाली वही होती है.
विषय और व्यक्तित्व का चयन
गालिब इंस्टीट्यूट के सचिव प्रो सिद्दीकी रहमान किदवई ने मेहमानों का स्वागत करते हुए कहा कि फख़रुद्दीन अली अहमद यादगारी खुतबा गालिब इंस्टीट्यूट की एक महत्वपूर्ण गतिविधि है, जिसके लिए हम विषय और व्यक्तित्व दोनों को बहुत सोच-विचार के बाद चयन करते हैं.
प्रो फैजान मुस्तफा को तो हम सभी जानते हैं, वह किसी भी विषय पर अपनी राय बहुत ही जिम्मेदारी से देते हैं. उनकी नजर अक्सर उन कोनों पर जाती है, जहां से आमतौर पर लोग गुजरते हैं. मुझे ख़ुशी है कि उन्होंने हमारा निमंत्रण स्वीकार किया और हमें लाभान्वित होने का पूरा अवसर दिया.
नई पीढ़ी के बच्चों का ज्ञान बढ़ाना है
गालिब इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. इदरीस अहमद ने कहा कि गालिब इंस्टीट्यूट साल में दो यादगारी खुतबा आयोजित करता है. एक फखरुद्दीन अली अहमद यादगारी व्याख्यान और दूसरा बेगम आबिदा अहमद यादगारी व्याख्यान. इन दो ख़ुत्बों में हम उन विषयों को चुनने की कोशिश करते हैं, जिन पर आमतौर पर चर्चा नहीं होती है.
हमारी कोशिश होती है कि नई पीढ़ी के बच्चों को समय-समय पर गुजरे शख्सियतों पर सेमिनार आयोजित कर उनके ज्ञान को बढ़ाया जाए. प्रो. फैजान मुस्तफा की बातचीत से हमारा ज्ञान बहुत बढ़ा है और जब यह उपदेश प्रकाशित होगा, तो इसकी उपयोगिता का दायरा और भी बढ़ जायेगा. इसमौके पर बड़ी संख्या में स्कॉलर और छात्राएं मौजूद थे.