नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति और दिग्गज सैन्य कमांडर मुहम्मदू बुहारी का लंदन में 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन की पुष्टि रविवार को नाइजीरियाई राष्ट्रपति कार्यालय ने की. बुहारी के इंतकाल की ख़बर ने अफ्रीकी राजनीति से लेकर वैश्विक कूटनीति तक शोक की लहर दौड़ा दी है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने गहरा दुख व्यक्त किया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मदू बुहारी के निधन से दुखी हूं. उन्होंने न केवल नाइजीरिया को नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि भारत-नाइजीरिया संबंधों को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. इस कठिन समय में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और देशवासियों के साथ हैं.”
कब बने थे राष्ट्रपति
साल 2015 से 2023 तक नाइजीरिया के राष्ट्रपति रहे बुहारी का रविवार को लंदन में इलाज के दौरान निधन हो गया. समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला अहमद टीनुबू ने कहा कि उन्होंने उपराष्ट्रपति काशिम शेट्टिमा को बुहारी के पार्थिव शरीर को नाइजीरिया वापस लाने के लिए लंदन जाने का निर्देश दिया है. साथ ही, बोला टीनूबू ने दिवंगत पूर्व नाइजीरियाई नेता के सम्मान में झंडों को आधा झुकाने का आदेश दिया है.
कौन थे मुहम्मदू बुहारी
गौरतलब है कि 17 दिसंबर, 1942 को जन्मे मुहम्मदू बुहारी का सैन्य और नागरिक शासन, दोनों में एक विशिष्ट करियर रहा. 2015 में राष्ट्रपति पद के लिए सफलतापूर्वक चुनाव लड़ने से पहले, वे कई सालों तक राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे और नाइजीरिया के इतिहास में किसी मौजूदा राष्ट्रपति को हराने वाले पहले विपक्षी उम्मीदवार बने. 2019 में उन्हें फिर से चुना गया और 29 मई, 2023 को उन्होंने टीनूबू को सत्ता सौंप दी.
मुहम्मदू बुहारी, जो नाइजीरियाई सेना में मेजर जनरल रहे, पहली बार 1983 में सैन्य तख्तापलट के बाद राष्ट्रपति बने थे. उन्होंने 1985 तक देश पर सैन्य शासन किया. उस समय उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कड़ी मुहिम "War Against Indiscipline" शुरू की, जिससे उन्हें एक कठोर लेकिन अनुशासनप्रिय नेता के रूप में पहचाना गया. तीन दशक बाद, 2015 में वे लोकतांत्रिक तरीके से नाइजीरिया के राष्ट्रपति चुने गए। यह अफ्रीकी देश के इतिहास में पहली बार हुआ था जब किसी विपक्षी उम्मीदवार ने सत्ता में आते हुए सत्तारूढ़ राष्ट्रपति को हराया। वे 2019 में दोबारा निर्वाचित हुए और 2023 तक राष्ट्रपति रहे.
बुहारी के कार्यकाल में उन्होंने Boko Haram जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ़ अभियान चलाया और भ्रष्टाचार विरोधी क़दमों को प्राथमिकता दी। हालांकि, उनके शासन को लेकर कई बार मानवाधिकार उल्लंघन, मीडिया सेंसरशिप, और सामाजिक असंतोष के आरोप भी लगे, जिनमें 2020 का #EndSARS आंदोलन खासा चर्चित रहा. उनकी विरासत को लेकर देश में मिली-जुली राय है. जहां एक ओर समर्थक उन्हें अनुशासित राष्ट्रवादी मानते हैं, वहीं आलोचक उन्हें लोकतंत्र की सीमाओं को लांघने वाला सख्त प्रशासक मानते रहे.
बुहारी की मौत के बाद लंदन स्थित नाइजीरियाई दूतावास और देश भर में कई जगहों पर शोक सभाएं आयोजित की जा रही हैं. रिपोर्टों के मुताबिक, उनकी अंत्येष्टि को लेकर सरकार और परिजनों के बीच समन्वय जारी है. पूर्व राष्ट्रपति का जाना एक युग का अंत है — एक ऐसा नेता जिसने नाइजीरिया को सैन्य शासन से लेकर लोकतांत्रिक नेतृत्व तक की दो धाराओं में नेतृत्व दिया. उनका जीव