श्रीनगर से लेकर उरी तक हर पुलिस स्टेशन पर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के कांस्टेबल मुदासिर अहमद शेख की तस्वीर लगी हुई है. बारामुल्ला में पुलिस लाइन में मेस का नाम उनके नाम पर रखा गया है. बारामुल्ला के एक चौक पर उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है. उनके सम्मान में इस जगह को 'बिंदास चौक' कहा जाता है. मुदासिर अहमद शेख कहते थें 'तुम्हें हर दिन शेर की तरह जीना चाहिए'. इसीलिए हर कोई उन्हें बिंदास कहता था.
बिंदास के नाम से मशहूर 32 साल के मुदासिर अहमद शेख को भारत सरकार की ओर से शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. वह बारामूला जिले में कार में यात्रा कर रहे आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए. उस गोलीबारी में तीन पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गए.
भाई बासित मकसूद शेख कहते हैं, "हर कोई उन्हें बिंदास कहता था क्योंकि वह निडर थे. उन्होंने कहा था, 'तुम्हें हर दिन शेर की तरह जीना चाहिए.'" "उरी में उनके सम्मान में एक बड़ा होर्डिंग लगा है. जब भी मैं उस तरफ से गुजरता हूं तो मुझे लगता है कि वह मुझे देख रहे हैं."
बासित अपने साहसी भाई की अंतिम लड़ाई के बारे में बताते हुए कहते हैं, "भाई ने उन्हें रुकने का इशारा किया. जब वे नहीं रुके, तो उन्होंने एक आतंकवादी को कार से बाहर निकाला और उसे अपनी बांह के नीचे दबा लिया. उन्होंने दूसरे हाथ से एके-47 से गोलीबारी जारी रखी, जो उनकी पसंदीदा बंदूक थी." "मुठभेड़ में उनकी गर्दन और कंधे पर गोली लगी, लेकिन उन्होंने आतंकवादी को नहीं छोड़ा. उन्होंने अस्पताल में अंतिम सांस ली."
आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान में संपर्क का पहला बिंदु, बिंदास एक साहसी व्यक्ति था. वह जम्मू-कश्मीर पुलिस में अपने 8 वर्षों में कई मुठभेड़ों का हिस्सा रहा था और एक असाधारण कमांडो था.
उसके साथ अभियान चलाने वाले सेना के अधिकारी उसकी हिम्मत की तारीफ करते नहीं थकते. उसके गांव में, खासकर युवाओं के बीच उसके बहुत बड़े प्रशंसक थे.
दुबई में एचआर मैनेजर के रूप में काम करने वाले बासित कहते हैं, "उसे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जाने की सलाह दी गई थी, लेकिन उसने मना कर दिया क्योंकि उसे केवल अपना हथियार, वर्दी और मैदान चाहिए था."
प्रभावशाली व्यक्तित्व, फिल्म स्टार जैसी शक्ल और 'साहस' के साथ, बिंदास जहां भी जाता, अलग ही नजर आता. यही बात एक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की नजर में आई.
बासित कहते हैं, "उसकी कार्गो पैंट अलग थी. उसने विदेशी सेनाओं द्वारा पहने जाने वाले जूते पहने थे. इससे वह बाकी लोगों से अलग दिखता था और इसीलिए एसएसपी ने उस पर ध्यान दिया." "एसएसपी को बताया गया कि उसका नाम बिंदास है." वरिष्ठ अधिकारी ने बिंदास को बुलाया.
"जबकि सभी कर्मचारी उससे बात करते समय अपनी आँखें नीचे रखते थे, भाई ने उसकी आँखों में देखा और बात की. उसके हाव-भाव से आत्मविश्वास झलक रहा था. एसएसपी को उसमें एक चिंगारी दिखी."
बिंदास ने कमांडो ट्रेनिंग ली और जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ने वाले विशेष ऑपरेशन समूह में शामिल हो गया.
"एक कारण था कि उसे फ्रंट लाइन योद्धा कहा जाता था - जब भी आतंकवादी गतिविधि की सूचना मिलती थी, तो वह सबसे आगे रहता था."
मौत का नहीं था खौफ
जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सेवानिवृत्त उप-निरीक्षक मुदासिर के पिता मकसूद अहमद शेख ने कहा कि उनका बेटा बहादुर और साहसी था. उन्होंने कहा, "वह मारे जाने से कभी नहीं डरता था और उसका मानना था कि हम सभी को एक दिन मरना है. वह शहीद है और मुझे उस पर गर्व है.'
उन्होंने कहा कि नई चीजें सीखने और असाधारण बनने के उसके जुनून ने उसे पुलिस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने कहा, "चूंकि मेरी पत्नी बारामूला के रफियाबाद इलाके से ताल्लुक रखती हैं, इसलिए वह अपनी छठी क्लास के बाद वहां शिफ्ट हो गया. उसने वहां के एक स्थानीय स्कूल से 10वीं की पढ़ाई पूरी की और परीक्षा में टॉप किया था."
मकसूद ने कहा, "वह पंजाब के एक ट्रक ड्राइवर के साथ हमें बताए बिना घर से भाग गया. उसे ड्राइविंग सीखने का शौक था लेकिन हम इसके खिलाफ थे क्योंकि वह तब बच्चा था. लेकिन छह महीने बाद वह वापस लौट आया. हमने उसे सरकारी नौकरी की तलाश करने के लिए मजबूर किया और आखिरकार 2009 में उसे जम्मू-कश्मीर एड्स कंट्रोल सोसाइटी में ड्राइवर की नौकरी मिल गई. वहां भी उसकी दोस्ती ज्यादातर पुलिस से ही थी. कई लोग सोचते थे कि वह ड्राइवर के बजाय एक पुलिस वाला था."

"वह कहा करता था 'मरना है तो मरेंगे पर हारेंगे नहीं (मैं मर जाऊंगा लेकिन दुश्मन को हरा दूंगा)."
योद्धा की वीरता का एहसास कराते हुए, बासित एक मुठभेड़ का वर्णन करते हैं जब उनके भाई को एहसास हुआ कि एक सहकर्मी ने बुलेट-प्रूफ़ जैकेट नहीं पहनी है. वे दुश्मन से भिड़ने वाले थे और उन्हें अपनी जान की चिंता थी.
"ऑपरेशन के लिए भागते समय सहकर्मी अपनी बुलेट-प्रूफ़ जैकेट भूल गया था. भाई ने उससे पूछा कि उसके परिवार में कौन-कौन है?"
उस आदमी ने उसे बताया कि उसके बच्चे हैं.
"मेरे भाई ने अपनी जैकेट निकाली और उसे देते हुए कहा कि तुम्हारी जान मेरी जान से ज़्यादा महत्वपूर्ण है."
बिंदास कई आतंकवाद विरोधी अभियानों का हिस्सा रहे हैं. एक ऑपरेशन में जब आतंकवादियों ने एक इमारत पर हमला किया था, तो उन्होंने एक सब इंस्पेक्टर को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था, जो गोली लगने से घायल हो गया था.
"उन्होंने घायल अधिकारी को एक कंधे पर रखा था और दूसरे हाथ से AK-47 से फायरिंग कर रहे थे. वे उसे उठाकर एक मंजिल से नीचे कूद गए."
"उनकी बहादुरी कुछ और ही थी. मैं किसी फिल्म स्टार या किसी और का प्रशंसक नहीं हूं, मैं अपने भाई का प्रशंसक हूं," बासित कहते हैं.
फिट रहने के लिए प्रतिबद्ध बिंदास ने घर में जिम उपकरण खरीदे थे और अपने छोटे भाई-बहनों को प्रोत्साहित किया था.
"वे हमेशा कहा करते थे कि जीवन में फिटनेस सबसे महत्वपूर्ण है. वे हमेशा हमसे कहते थे कि जब तक आप फिट नहीं होंगे, तब तक आप जीवन में कुछ भी नहीं कर पाएंगे."
"उनकी बॉडी को देखकर कई लोग जिम जाने लगे. वे किसी फिल्म स्टार की तरह दिखते थे. मैंने एक बार घेराबंदी और तलाशी अभियान से लौटने के बाद वर्दी में उनका एक वीडियो बनाया था. यह वायरल हो गया," बासित कहते हैं.
भाइयों की आखिरी मुलाकात तब हुई थी जब बिंदास दिसंबर 2021 में दुबई जाने से पहले बासित को अलविदा कहने दिल्ली एयरपोर्ट आए थे.
"उसने मुझसे कहा था कि जब वह ड्यूटी पर होता है तो जीवन के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं होता है और यह हमारी आखिरी मुलाकात भी हो सकती है. उसकी आंखों में आंसू थे."
बसित ने भावुक बातचीत को दरकिनार कर दिया.
"मुझे पता था कि वह दुश्मन का सामना करेगा और उसकी आंखों में देखेगा. वह आग का सामना करेगा और दुश्मन को सफल नहीं होने देगा," वह आगे कहता है.
जिस दिन योद्धा बिंदास का शव घर आया, उस दिन उसकी बहन की शादी थी. शादी दो हफ्ते के लिए टाल दी गई.
उसका घर उसकी यादों का संग्रहालय है. घर की दीवारें और परिवार के सदस्यों के मोबाइल फोन उसकी तस्वीरों से भरे पड़े हैं.
बिंदास की पसंदीदा बुलेट मोटरसाइकिल जिस पर उसका नाम लिखा है, उसे संभाल कर रखा गया है.
बसित कहता है, "मैं उसका मोबाइल फोन इस्तेमाल करता हूं और भाई की सभी चीजें इस्तेमाल करता हूं जो वह पीछे छोड़ गया है." "उसकी यादें हर जगह हैं."

वर्दी पहनने का शौक थाः मुदासिर के पिता
मुदासिर के पिता ने कहा, "मुझे याद है कि 2016 में, मेरे रिटायरमेंट से कुछ समय पहले, वह मेरे पास आया और कहा कि वह पुलिस में शामिल होना चाहता है. जब मैंने पूछा कि वह पुलिस में क्यों जाना चाहता है, तो उसने कहा कि वह कश्मीर के लोगों की मदद करना चाहता है, खासकर उरी के अपने लोगों की. वह जनता के बीच जम्मू-कश्मीर पुलिस की सकारात्मक छवि बनाना चाहता था. उसे वर्दी पहनने का शौक था."
फिटनेस से दुश्मन भी घबरा जाए
मकसूद के रिटायर होने के एक दिन बाद मुदासिर को ज्वाइनिंग ऑर्डर मिला. वह विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में शामिल हुए थे. बाद में उनके अच्छे काम और शानदार फिटनेस के आधार पर, उनके सीनियर्स ने उन्हें जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक आतंकवाद विरोधी बल, स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) में ले लिया था. मकसूद ने कहा कि पूरे जम्मू-कश्मीर के लोग उनके घर आते थे, चाहे वह हिंदू हों, सिख हों, मुस्लिम हों या कोई और.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 15 शौर्य चक्रों सहित 412 वीरता पुरस्कारों को मंजूरी दी थी. शौर्य चक्र पाने वालों में एक नाम मुदासिर अहमद शेख का भी है. मुदासिर बारामूला में 25 मई 2022 को आतंकियों से लोहा लेते वक्त शहीद हो गए थे.
लेकिन देश के लिए कुर्बान होने से पहले मुदासिर ने कुछ ऐसा किया जिस पर पूरा भारत हमेशा गर्व करेगा. मुदासिर को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया जाएगा. अशोक चक्र के बाद कीर्ति चक्र भारत में शांतिकाल में दिया जाने वाला दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है. शौर्य चक्र देश का तीसरा शीर्ष शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है.
कहते हैं कि मुदासिर अहमद शेख के शहीद होने के महीनों बाद तक उनके फैंस, दोस्त, परिचित उनके घर पर उनकी मौत का शोक मनाने के लिए आते रहे. पूरी कश्मीर घाटी अपने बहादुर बेटे को खोने के बाद गमगीन थी. उनके पिता ने बताया कि विदेश में भी ऐसे लोग थे जो मुदासिर से प्यार करते थे. वे भी गमगीन हो गए जब उन्होंने मुदासिर की खबर सुनी. मुदासिर का घर उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के सुदूर उरी इलाके में है.
इनपुट:: rediff.com, हिंदुस्तान