क्या कोई नया गुल खिला पाएगी राहुल की यह यात्रा

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 21-01-2024
Will this journey of Rahul be able to blossom into something new?
Will this journey of Rahul be able to blossom into something new?

 

 
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हरजिंदर

राहुल गांधी एक बार फिर निकल पड़े देश की सड़कों को नापने. एक साल पहले उन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर तक की अपनी यात्रा पूरे रास्ते में पैदल चलकर पूरी की थी.इस बार की यात्रा पैदल नहीं है. यह यात्रा मणिपुर से शुरू हो चुकी है. मार्च के महीने में मुंबई में उस समय खत्म होगी जब देश में हर तरफ आम चुनाव का माहौल होगा.

फिलहाल इस समय देश में जिस तरह से राम जन्मभूमि के कार्यक्रमों की चर्चा है उसमें यह यात्रा खबरों में कहीं ठीक से जगह भी नहीं बना पा रही. इसलिए इसके असर की चर्चा करना इस समय बेमतलब लग सकता है.
 
पिछले साल जब कन्याकुमारी से यात्रा शुरू हुई थी तो भी हाल यही था. लेकिन तमिलनाडु पार करते-करते राहुल की यात्रा को सबने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था.
 
दिल्ली पहंुचते-पहंुचते तो उसके लिए एक अच्छा माहौल बन गया था. लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ उससे एक बात साफ हो गई कि इस यात्रा के दौरान मिले समर्थन और प्रचार का कांग्रेस कोई फायदा नहीं ले सकी.
 
अब बस इतना ही कहा जाता है कि एक साल पहले की भारत जोड़ो यात्रा के बाद लोगों ने राहुल गांधी को ‘पप्पू‘ कहना बंद कर दिया है. क्या इस बार भी बहुत लंबी यात्रा का बहुत छोटा सा ही कोई नतीजा निकलेगा ?
 
इस बार असम में दिए गए अपने भाषणों के दौरान राहुल गांधी ने नफरत खत्म करने की बात की. हालांकि उन्होंने पहली बार ऐसी बात नहीं की है. इसके पहले भी उनका एक बयान काफी चर्चा में रहा था कि मैंने नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान खोली है.
 
यह सच है कि पिछले कुछ साल में नफरत और खासकर सांप्रदायिक नफरत काफी बढ़ी है. एक तरफ जब बहुत से लोग इसे बढ़ाकर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं तो इसे खत्म करने के आश्वासन से भी राजनीतिक जमीन तैयार की जा सकती है. लेकिन क्या राहुल इस पर पूरी तरह फोकस कर रहे हैं ?
 
इस समय उनकी भारत जोड़ो न्याय यात्रा असम में है. असम ऐसी जगह है जहां पिछले कुछ साल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण काफी तेजी से और काफी ज्यादा हुआ है.
 
वोट भी इसी आधार पर मांगे जाते हैं और मतदान भी इसी आधार पर होता है। उम्मीद थी कि वहां पर यह यात्रा नफरत खत्म करने पर फोकस करेगी.
 
लेकिन असम में दिए गए राहुल के भाषणों को सुनिये तो वहां मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शार्मा के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को बड़ा मुद्दा बनाया गया है. जिससे नफरत की बात काफी पीछे चली गई.
 
जबकि असम में वे इस मुद्दे को सबसे आगे रख कर अपनी इस 6713 किलोमीटर लंबी यात्रा की टोन सेट कर सकते थे. अगर ऐसा होता तो पूरे देश के अल्पसंख्यक भी उनसे जुड़ाव महसूस करते. जो देश की राजनीति में कुछ बदलाव भी ला सकता था.
  
हालांकि इस यात्रा का बहुत बड़ा हिस्सा अभी बाकी है. जो असम में नहीं कर सके क्या राहुल गांधी उसे आने वाले दिनों में कर सकेगे? यात्रा जैसे जैसे आगे बढ़ेगी इस दौरान मिलने वाले समर्थन को वोटों में बदलने का दबाव भी बढ़ेगा. ऐसे माहौल में अक्सर महत्वपूर्ण मुद्दे नजरंदाज हो जाते हैं.
 
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )