'देखन' में कॉटन लगे, घाव करे गंभीर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 11-06-2025
'Dekhan' feels like cotton, can cause serious injury
'Dekhan' feels like cotton, can cause serious injury

 

मंजीत ठाकुर 
 
कुछ वक्त हुआ जब यूरोपीय संघ ने सिंगल यूज़ यानी एक बार इस्तेमाल किये जाने लायक प्लास्टिक उत्पादों पर बंदिश आयद कर दी. इसके साथ ही यह प्रतिबंध प्लास्टिक की प्लेटों, कटलरी, खाने के डब्बों और कॉटन बड्स पर भी लागू है.
 
आप हैरत में हो सकते हैं कि प्लास्टिक पर बंदिश तो समझ में आती है, पर कॉटन बड्स क्यों? आखिर कान साफ करने के लिए इस्तेमाल होने वाले इस छुटकी-सी डंडी और उस पर चिपकी छटांक भर रुई से समंदर कैसे गंदा होता होगा? 
 
आखिर, हम हिंदुस्तानी ठहरे! सड़क के किनारे खड़े होकर मूत्र विसर्जन करने से भी हमें यह लगता है कि 50 मिलीलीटर अपशिष्ट जल से आखिर बीमारी कैसे फैलेगी या प्रदूषण कैसे बढ़ेगा!
 
अगर दफ्तर से लौटते हुए सब्जीवाले के पास से हरी-हरी ताजी भिंडी खरीद ली तो उसको प्लास्टिक की थैली में न लाएं तो क्या कपड़े का थैला ले जाएं? कपड़े या जूट का थैला तो वैसे भी आपको 'आउटडेटेड' लगता होगा. कपड़े का थैला हाथ में लेकर मार्केट जाएंगे तो मुहल्ले वाले भी जाने किस निगाह से देखेंगे! 
 
यूरोपीय कमीशन ने आकलन किया है कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल पर बैन लगने से कम से कम 3.4 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन रुकेगा. इन सिंगल यूज प्लास्टिकों में पॉलीथिन बैग, प्लास्टिक की बोतलें, कप, खाने के पैकेट, सैशे, रैपर, स्ट्रॉ, थर्मोकोल से बने थाली-कप-ग्लास भी शामिल हैं.
 
हिंदुस्तान ने 2022 तक सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्त होने का फैसला किया था, पर अभी तक देश में कहीं से संपूर्ण प्रतिबंध लगाने की किसी योजना पर फैसला नहीं लिया गया है क्योंकि लोगों का रवैया बदलता नहीं दिख रहा. इस तय समय सीमा के तीन साल बाद तक कहीं कोई सुधार दिखा तो नहीं है. 
 
विश्वास न हो तो अपने सब्जीवाले के पास थोड़ी देर खड़े होकर देख लीजिए. और गरीब सब्जीवाले को छोड़िए, आप अपने पास के कूड़ेदान में झांक लीजिए.
 
विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के मुताबिक प्लास्टिक जैविक रूप से अपघटित नहीं किये जा सकते और उन्हें गलने-पचने में कई साल लग जाते हैं. अगर यह तापमान-हवा के संपर्क में कुदरती तौर पर अपघटित हो भी जाएं तो मिट्टी का हिस्सा बनने के बजाय माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाते हैं.
 
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक यह माइक्रोप्लास्टिक हमारी मिट्टी और पानी को संदूषित (कंटैमिनेट) करते हैं. इसके ज़हरीले घटक रसायन जीव कोशिकाओं में और उसके जरिये खाद्य श्रृंखला में आ जाते हैं.
 
इसका असर वन्य जीवन पर भी पड़ता है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के आकलन के मुताबिक एक व्यक्ति हर हफ्ते करीबन पांच ग्राम प्लास्टिक खा रहा है. हर साल प्लास्टिक की वजह से 10 लाख समुद्री परिंदे मारे जा रहे हैं और पाचनतंत्र में मौजूद प्लास्टिक कचरे की वजह से 700 नस्लों पर असर पड़ा है.
 
अन-प्लास्टिक कलेक्टिव रिपोर्ट के मुताबिक 1950 के दशक के बाद से करीबन 8.3 अरब टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जा चुका है और इसका करीब 60 फीसद हिस्सा या तो गाजीपुर या भलस्वा जैसे देश (और दुनिया) के हर हिस्से में मौजूद लैंडफिल साइट्स में जमा है या फिर यह खुली जगहों पर पड़ा है.
 
अकेले हिंदुस्तान में 90.46 लाख टन प्लास्टिक कचरा हर साल पैदा होता है, जिसमें से 43 फीसद कचरा एक बार इस्तेमाल किये जाने वाले प्लास्टिक का है. हिंदुस्तान में यह समस्या और गंभीर इसलिए है क्योंकि देश में 40 फीसद प्लास्टिक कचरा उठाया ही नहीं जाता.
स्वास्थ्य संबंधी मसलों की जटिलताएं तो हैं ही, जिस पर विस्तार से समझने की जरूरत है कि आखिर प्लास्टिक का इस्तेमाल क्यों रोका जाना चाहिए, लेकिन पटना, दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में- जहां बारिश के पानी के जमाव की समस्या रहती है- उसकी एक बड़ी वजह यह प्लास्टिक ही है. यह प्लास्टिक कचरा नालियों में जाकर जमा रहता है और फिर नालियों और सीवर को जाम कर देता है.
 
जहां तक कॉटन बड्स का सवाल है यूरोपीय संघ ने 3 जुलाई 2021 से प्लास्टिक से बने कॉटन बड्स पर प्रतिबंध लगा दिया था. यह प्रतिबंध उस व्यापक नीति का हिस्सा था जिसे ‘सिंगल यूज प्लास्टिक डायरेक्टिव’ कहा जाता है, जिसका उद्देश्य समुद्रों और तटीय क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना था. 
 
लेकिन, यह कदम झटके में नहीं उठाया गया. यूरोपीय आयोग ने मई, 2018 में प्लास्टिक से बने कॉटन बड्स, स्ट्रॉ, प्लेट, कटलरी, और अन्य एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा था. अनुमोदन में एक साल लगे और मार्च, 2019 में, यूरोपीय संसद ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी, और इसके करीब दो साल बाद यह कानून 3 जुलाई, 2021 से लागू हुआ.
 
असल में, कॉटन बड्स समुद्रों में प्लास्टिक प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बन गए थे. ये छोटे प्लास्टिक उत्पाद समुद्रों में आसानी से टूटकर माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाते हैं, जिन्हें समुद्री जीव निगल सकते हैं, जिससे खाद्य श्रृंखला में प्रदूषण फैलता है. यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी के अनुसार, यूरोपीय समुद्र तटों पर पाए जाने वाले प्लास्टिक कचरे में कॉटन बड्स लगभग 4 फीसद का योगदान करते हैं. 
 
इसलिए कान साफ करने के लिए इस्तेमाल में आने वाले कॉटन बड्स को छोटा मत समझिए। ये देखन में ‘कॉटन’ लगे, घाव करे गंभीर ही है!
 
(लेखक आवाज द वाॅयस में सोशल मीडिया संपादक हैं)