चुनाव में मुसलमानों को टिकट नहीं देने का मतलब ?

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 26-05-2024
What does it mean to not give tickets to Muslims in elections?
What does it mean to not give tickets to Muslims in elections?

 

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भारतीय जनता पार्टी की इस बात को लेकर काफी आलोचना होती रही है कि पूरे देश में पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले मुस्लिम नुमाइंदों की संख्या काफी कम हैं. संसद के दोनो सदनों में तो उसका एक भी मुस्लिम संसद सदस्य नहीं है. पूर्व मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी पार्टी के आखिरी मुसलमान सांसद थ. दो साल पहले जब उनकी राज्यसभा सदस्यता खत्म हुई तो उसके बाद पार्टी के पास कोई मुस्लिम सांसद नहीं बचा.

इस बार भाजपा ने केरल के मल्लापुरम से अब्दुल सलाम को टिकट दिया है. पूरे देश में वे पार्टी के अकेले मुस्लिम उम्मीदवार है. कालीकट यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे अब्दुल सलाम साइंसदां हैं और भाजपा से उनका जुड़ाव बहुत पुराना नहीं है.केरल में मतदान काफी पहले ही हो चुका है, वहां भाजपा का पिछला रिकाॅर्ड कोई बहुत अच्छा नहीं रहा, इसलिए वे चुनाव जीतेंगे या नहीं यह कहा नहीं जा सकता.

अगर हम भाजपा से अलग जाकर भी देखें तो सच यही है कि इस बार सभी पार्टियों ने मुस्लिम उम्मीदवार बहुत कम दिए है. उन पार्टियों ने भी जिन पर इसे लेकर कईं तरह से आरोप लगते रहे हैं.शुरुआत अगर हम कांग्रेस से करें, जो भाजपा के बाद देश की दूसरी बड़ी पार्टी है, तो उसने भी पार्टी के मुस्लिम नेताओं को टिकट देने में इस बार कंजूसी बरती है.

पार्टी ने 2014 के आम चुनाव में 31 मुसलमानों को टिकट दिया था. 2019 के चुनाव में यह संख्या बढ़कर 34 हो गई. इस बार यह संख्या काफी तेजी से घटकर 19 पर आ गई है.कांग्रेस अकेली नहीं है, यह कटौती सभी बड़े दलों में देखी जा सकती है. बहुजन समाज पार्टी ने सबसे ज्यादा जगहों से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे है. उनकी संख्या 35 है.

हालांकि पिछली बार इस पार्टी ने 39 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थ. यह कटौती समाजवादी पार्टी में भी देखी जा सकती है और राष्ट्रीय जनता दल में भी.यह कटौती क्यों की गई? कांग्रेस के एक नेता ने हाल ही में एक पत्रिका से कहा कि ऐसा जानबूझ कर किया गया, ताकि भाजपा के प्रचार के कारण लोगों का यह न लगे कि कांग्रेस हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों को तरजीह देती है.

इस बात में कितना दम है इसे हम समाजवादी पार्टी के उदाहरण से समझ सकते हैं. पिछली बार समाजवादी पार्टी ने सिर्फ 49 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें आठ मुस्लिम उम्मीदवार थे. इस बार पार्टी 71 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि उसने सिर्फ चार मुस्लिम उम्मीदवारों को ही टिकट दिए हैं.

भाजपा समाजवादी पार्टी पर दो आरोप लगाती रही है. एक तो वह मुस्लिम परस्त है और दूसरे उसमें सबसे ज्यादा महत्व यादव जाति के लोगों को दिया जाता है.समाजवादी पार्टी ने इस बार यादव उम्मीदवारों की संख्या में भी काफी कटौती की है.

अगर हम इस तर्क को सही मान लें तो इसका अर्थ हुआ कि इस बार खेल के नियम भाजपा के हिसाब से ही तय हो रहे है.बहुजन समाज पार्टी ने सबसे ज्यादा संख्या में मुसलमानों को टिकट दिए हैं और कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के नेता आपको यह कहते हुए मिल जाएंगे कि इसका मकसद सिर्फ मुस्लिम मतों में बंटवारा करके भाजपा को जिताना हैं.

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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