हरजिंदर
पिछले महीने एक अमेरिकी संस्था कारनेगी एंडोवमेंट फाॅर इंटरनेशनल पीस ने भारत के मुसलमान मतदाताओं के व्यवहार पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी. वैसे यह रिपोर्ट कोई नई बात नहीं कहती. बहुत सी उन्हीं बातों को दोहराती है जो पहले भी कईं शोध में सामने आ चुकी है.
रिपोर्ट इस धारणा पर मुहर लगाती है कि भारत में मुस्लिम वोट बैंक जैसी कोई चीज नहीं है. देश के ज्यादातर मुसलमान अपने तरह से अलग-अलग ढंग से वोट डालते हैं. हालांकि यह रिपोर्ट यह रुझान भी बताती है कि ज्यादातर मुसलमान भारतीय जनता पार्टी के समर्थन नहीं है, लेकिन विरोध के ज्यादातर वोट एक ही जगह पड़ते हैं ऐसा नहीं है.
यह तो हुई रिपोर्ट की बात, लेकिन हमारी राजनीति अभी भी अल्पसंख्यकों आौर खासकर मुसलमानों को एक वोट बैंक मान कर ही चलती है. लोकसभा चुनाव आने वाले हैं. उत्तर प्रदेश में इसकी राजनीति अभी से शुरू हो गई है.
प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी यह मानकर चलती रही है कि प्रदेश के मुसलमान साईकिल चुनाव चिन्ह का ही बटन दबाएंगे. राजनीतिक क्षेत्रों में आमतौर पर पार्टी का मुख्य आधारा माई समीकरण को ही माना जाता है- यानी मुस्लिम और यादव.
ध्यान रखते हुए कांग्रेस से गंठजोड़ के दौरान पार्टी ने अल्पसंख्यक बहुल इलाकों की ज्यादातर सीटें अपने पास रखी हैं. इस बीच हैदाराबाद के नेता असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिसे इत्तहादुल मुसलमीन ने सात सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. ये सातों सीटें वही हैं जिनसे समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा उम्मीद बांधी थी. इस पार्टी के नेताओं का यह भी कहना है कि वे प्रदेश की 20 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं.
वैसे कुछ लोग भारतीय जनता पार्टी की बी टीम भी कहते हैं. वहीं अपने उम्मीदवार खड़े करती है जहां इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिल जाता है. वैसे यह भी एक धारणा ही है. ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने की घोषणा तब की है जब वह अपने प्रदेश तेलंगाना में ही कमजोर दिख रही है.
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद आई कईं रिपोर्टों के अनुसार कुछ सीटों पर तो उसका कब्जा रहा लेकिन बाकी जगह कांग्रेस ने उसके आधार में सेंध लगा दी.इन दोनों पार्टियों से अलग मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी मुस्लिम मतदाताओं से ही उम्मीद बांध रही है.
प्रदेश में 2022 का विधानसभा चुनाव पार्टी के बहुत बुरा साबित हुआ था. इसके नतीजे अपने के बाद मायावती ने कहा था कि मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी की ओर चले गए इस वजह से उनकी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. इस बार उनकी नजर भी मुस्लिम मतदाताओं पर ही है.
हिंदुस्तान टाईम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी की एक मीटिंग में मायावती ने कहा कि इस बार उनका सारा फोकस दलित-मुस्लिम-ओबीसी वोटों पर ही रहेगा. हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव ने यह बताया था कि उनकी पार्टी का दलित आधार भी अब कमजोर पड़ गया है. कुछ सर्वेक्षणों में यह भी पाया गया कि कईं दलित समुदायों की पहली पसंद अब भाजपा ही है.
इन राजनीतिक दलों की सारी सक्रियता यही बताती है कि प्रदेश की 19 फीसदी मुसलमान आबादी को लुभाने में यह पार्टियां कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। भले ही पूरी सफलता किसी को न मिले.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
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