एक दीवार जो गांव वालों की समझदारी ने ढहा दी

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 14-07-2025
A wall that was demolished by the wisdom of the villagers
A wall that was demolished by the wisdom of the villagers

 

- हरजिंदर

सरकारी जमीन पर धर्मस्थल का होना हमारे देश के लिए कोई नई बात नहीं हैं. ज्यादातर शहरों, कस्बों और गांवों में आपको इस तरह के धर्मस्थल मिल जाएंगे. कभी-कभी तो सड़कों, चैराहों और फुटपाथों पर भी ऐसे धर्मस्थल मिल जाते हैं. बेशक ऐसे धर्मस्थल हटाए ही जाने चाहिए. लेकिन पिछले कुछ समय से जो ट्रेंड चल पड़ा है उसमें इन्हें हटाए जाने से ज्यादा कई लोगों की दिलचस्पी इसे लेकर नफरत फैलाने की होती है.

जब ऐसी कोशिश चल रही हो तो क्या किया जाना चाहिए ? इसकी मिसाल पेश की है उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के एक गांव चिंतामणि गढ़िया ने.इस गांव में ईदगाह के पास एक मस्जिद बनी थी जिसे गढ़िया मस्जिद कहा जाता है.

इस मस्जिद के बारे में पता पड़ा कि यह दरअसल सरकारी जमीन पर बनी है. जल्द ही यह भी साफ हो गया कि यह जमीन राजस्व भूमि के गता नंबर 645 और 648 के तहत आती है.

खबर मिलते ही नफरत फैलाने वाले सक्रिय हो गए. आंदोलन जैसी चीजें शुरू हो गईं. नफरत की यह आग उस गांव तक ही सीमित नहीं रही आस-पास भी फैलने लगी. नफरत के सौदागरों को एक मुद्दा मिल गया था.

इसी बीच जब सक्रियता बढ़ी तो तहसील दफ्तर ने राजस्व कानून के तहत जगह खाली करने का नोटिसव भी जारी कर दिया. कुछ ही समय में एक और नोटिस मस्जिद की दीवारों पर चस्पा कर दिया गया.

इसके खिलाफ जब कुछ स्थानीय लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया तो एडिश्नल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने तहसीलदार को आदेश दिया कि वह छह महीने में मामले को सुलझाएं. तीन महीने के अंदर ही तहसीदार ने भी नोटिस जारी कर दिया.

यह लगने लगा कि अब किसी भी समय बुलडोजर पहंुचेंगे और मस्जिद की इस इमारत को ढहा दिया जाएगा. लेकिन ऐसा होता इसके पहले ही चीजें बदल गईं.गांव के मुसलमान बैठे.

उन्होंने तय किया कि इसके पहले बुलडोज़र अपना काम करें वे खुद ही इस इमारत को गिरा कर जगह खाली कर देते हैं. तुरंत ही खुद ही वे लोग छेनी-हथौड़ी लेकर इमारत को तोड़ने में जुट गए.

मस्जिद कमेटी के लोगों ने कहा कि यह इमारत तो गिराई जा सकती है कि लेकिन गांव की कौमी एकता को हम खत्म नहीं होने दे सकते. जो नफरत फैलाई जा रही है उससे यह एकता खतरे में पड़ गई है.

वहां जो हथौड़े चल रहे थे वे किसी इमारत को नहीं गिरा रहे थे, बल्कि नफरत की उस दीवार को तोड़ रहे थे जो पिछले कुछ समय में चिंतामणि गढ़िया और उसके आस-पास के गांवों में खड़ी की जा रही थी. 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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