फ्रांस के अल्पसंख्यकों का हाल

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 08-12-2025
The condition of minorities in France
The condition of minorities in France

 

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दुनिया मेें कुछ जगह हैं जहां से अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव की खबरें तो आती हैं लेकिन यह सब कितना और कैसे चल रहा है अक्सर पता नहीं पड़ पाता। ऐसा ही एक देश है फ्रांस। फ्रांस की दिक्कत यह है कि यहां धार्मिक या जाति के आधार पर आबादी के आंकड़ें जमा करने पर पूरी तरह पाबंदी है इसलिए किसके साथ क्या हो रहा है इसका अंदाज नहीं लग पाता।

दूसरी तरफ फ्रांस की एक खासियत यह है कि यहां अधिकारों और खासकर मानव अधिकारों पर पूरा जोर दिया जाता है और इसके लिए कईं संस्थागत व्यवस्थाएं हैं। ऐसी ही एक व्यवस्था है राइट एंबुड्समैन की। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अधिकारों के लोकपाल। फिलहाल इस पद पर एक महिला हैं इसलिए उन्हें राइट एंबुड्सवुमन कहा जाता है।

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पिछले हफ्ते फ्रांस की राइट एंबुड्सवुमन ने बताया कि उनके देश में हर तीन में से एक मुसलमान को धर्म के आधार पर भेदभाव का सामाना करना पड़ता है। उन्होंने यह भी बताया कि मुसलमानों में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं भेदभाव का शिकार होती हैं। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि जहां बहुत से पुरुष पश्चिमी पोशाक पहनते हैं वहीं स्कार्फ की वजह से महिलाओं की पहचान जल्दी हो जाती है।

एक बात जो राइट एंबुड्सवुमन ने नहीं बताई पर वह अक्सर ही चर्चा का विषय रहती है। फ्रांस में रहने वाले मुसलमानों में एक बड़ा तबका ऐसे लोगों का है जो उत्तरी अफ्रीका से यहां आकर बसे हैं। वे सिर्फ मुस्लिम होने के कारण ही प्रताड़ित नहीं होते बल्कि चमड़ी के रंग के कारण रंगभेद का शिकार भी बनते हैं।

लेकिन क्या ऐसा सिर्फ फ्रांस में रहने वाले मुसलमानों के साथ ही हो रहा है?फ्रांस में रहने वाले सिखों की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। वे तो अगर पश्चिमी परिधान में भी हों तो भी धार्मिक प्रतीकों के कारण उनकी पहचान आसानी से हो सकती है।

ठीक यहीं पर हमें फ्रांस के 2004 के उस कानून को भी याद कर लेना चाहिए जिसमें सार्वजनिक संस्थाओं और दफ्तरों में काम करने वालों और स्कूल काॅलेज में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं पर रोक लगा दी गई थी कि वे किसी भी तरह के धार्मिक चिन्ह नहीं ग्रहण कर सकते हैं। इसका सिखों और मुसलमानों दोनों पर ही असर पड़ा था।

वहां रहने वाले सिख तो खासतौर पर इससे आहत हुए थे। फ्रांस में रहने वाले सिखों में एक बड़ी आबादी उन सिखों के वंशजों की है जिन्हें दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांस की सेना में भर्ती किया था। उन्हें कम से कम यह उम्मीद नहीं थी कि उनसे साथ ऐसा होगा।

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर लागू किए गए इस कानून में बाद में थोड़ी ढील दे दी गई। लेकिन पूरी तरह से यह तब भी नहीं हटा।एक और बाद ध्यान देने की है कि पेरिस में 2015 में हुई आतंकवादी वारदात के बाद पूरे फ्रांस से ही मुसलमानों के साथ भेदभाव की खबरें आती रहती हैं। उन्हें हर जगह शक की नजर से भी देखा जाता है।

  (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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