ग़रीब नवाज़ हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी : मानवता शिक्षा देने वाले शांतिदूत

Story by  एटीवी | Published by  onikamaheshwari | Date 28-01-2023
सुल्तानुल-हिंद ग़रीब नवाज़ हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी
सुल्तानुल-हिंद ग़रीब नवाज़ हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी

 

wasayप्रो. अख़्तरुल वासे

भारत का मस्तक मानवता की शिक्षा देने वाले जिनशांतिदूतों, फ़क़ीरों और महान संतों से रोशन है, उनमें सबसे बड़ा नाम हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का है. हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ जिनका असली नाम हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी है. उन्होंने आठ शताब्दियों से भी अधिक पहले अजमेर की धरती पर क़दम रखा. उनकी उपस्थिति से यह बस्ती इतनी पवित्र हो गई कि अजमेर शहर अजमेर शरीफ़ बन गया और उपमहाद्वीप के लाखों श्रद्धालुओं का तीर्थस्थल बन गया.

हज़रत ख़्वाजा अजमेरी कोई राजा या महान सेनापति या बड़े अमीर नहीं थे. वह अपने आप में दरिद्रता और त्याग की मूर्ति थे और अपने कर्मों से आत्मत्याग और बलिदान के प्रतीक थे. वे अपने 40साथियों के साथ अजमेर आ गये और बड़े ही शान्त भाव से एक ओर बैठ गये और दासता और दरिद्रता के मार्ग का प्रचार करने लगे.

वह ख़ुद तो फ़क़ीर थे लेकिन सुल्तानुल-हिंद की उपाधि उनकी प्रतीक्षा कर रही थी. वे ख़ुद तो ग़रीब थेलेकिन उनकी ग़रीबी ऐसी थी कि उनको ग़रीब नवाज़ (ग़रीबों की मदद करने वाला) बना दिया.

हज़रत ख़्वाजा अजमेरी का जन्म भारती‎से सैकड़ों मील दूर सजिस्तान में हुआ था. हज़रत ख़्वाजा अभी छोटे ही थे जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया. विरासत में एक पनचक्की और एक बाग़ मिला था, जो सहारा देने के लिए काफ़ी था, लेकिन क़ुदरत ने इस अनाथ के सिर से माँ का साया भी उठा लिया.

वह पहले से ही मंगोलों के आक्रमणों से पीड़ित थे, लेकिन एक दूरदर्शी का उन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उनका हृदय संसार की मोह माया से मुक्त हो गया. उन्होंने बाग़ और चक्की को बेचकर ग़रीबों में बांट दिया और अपनी मंज़िल की तलाश में निकल पड़े.

दस्ते-क़ुदरत उन्हें हज़रत ख़्वाजा उस्मान हरूनी रह. की सेवा में ले गई. हज़रत ख़्वाजा ने इनकी क़ाबिलियत को पहचाना और उन्हें अपने साथ इस्लामिक देशों की यात्रा पर ले गए. लंबे दौरे के बाद मुर्शिद (गुरु, पथप्रदर्शक) ने ख़ुद ही उन्हें अकेले यात्रा जारी रखने की इजाज़त दे दी. हज़रत ख़्वाजा ने अकेले ही कई इस्लामिक देशों की यात्रा की.

हज़रत ख़्वाजा अजमेरी ने मदीना से भारत की यात्रा की. जब वे लाहौर आए तो उन्होंने महसूस किया कि लाहौर से आगे फ़ारसी भाषा काफी नहींबल्कि स्थानीय भाषा सीखनी होगी. ख़्वाजा साहब के जीवन की यह एक बड़ी सीख और उदाहरण है कि उनके शिष्यों ने उनके जीवन के इर्द-गिर्द कितने ही गुणों का घेरा बुना हो, लेकिन उनका जीवन केवल गुण नहीं बल्कि कर्म था.

उन्होंने लगभग 20वर्षों तक इस्लामिक देशों की यात्रा की, उसके बाद जब उन्हें भारत की स्थानीय भाषा सीखने की आवश्यकता पड़ी, तो वह इसे सीखने के लिए मुल्तान गए और वहां भारतीय भाषा सीखी. उसके बाद वह लाहौर और दिल्ली होते हुए अजमेर में ठहरे और लगभग चालीस वर्षों तक इस धरती‎को और इसके माध्यम से पूरे भारत को धन्य करते रहे.

हज़रत ख़्वाजा ग़रीबों के बड़े हितैषी थे. यह उपाधि उनके व्यक्तित्व से इस तरह जुड़ गई कि यही नाम उनकी पहचान बन गया. उनको किसी राजा महाराजा ने यह पदवी नहीं दी थी बल्कि निर्धनों की सेवा स्वयं ख़ुदा ने उनकी क़िस्मत में लिखी थी और निर्धनों की सेवा ही उनकी ज़िंदगी का सब कुछ था. हज़रत ख़्वाजा की एक बड़ी उपलब्धि यह भी है कि उन्होंने धर्म और दुनिया के बीच के अंतर को ख़त्म कर दिया.

उनकी दृष्टि में धर्म और दुनिया दो अलग-अलग चीज़ें नहीं हैं, बल्कि दुनिया को ख़ुदा के बताए हुए तरीक़े के अनुसार जीना ही धर्म है. उन्होंने ख़ुदा की इबादत और प्राणियों की सेवा में कोई भेद नहीं किया.

उन्होंने कहा कि मनुष्य के दो कर्तव्य होते हैं. एक है इबादत और दूसरी है आज्ञाकारिता. इबादत का मतलब यह है कि ख़ुदा के सामने पूरी शिष्टता और सम्मान के साथ सज्दा करे और आज्ञाकारिता का अर्थ उन कर्तव्यों को पूरा करना है जो ख़ुदा ने जीवों पर लगाए हैं.

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ एक अनुकरणीय चरित्र और रोल मॉडल थे. उनका जीवन उनके अनुयायियों के लिए एक मिसाल था. उन्होंने अपने सादा जीवन के ज़रिए लोगों को सादगी की सीख दी.

वह अक्सर पैवंद वाले कपड़े (फटे हुए कपड़े पर लगाई जानेवाली चकती ) पहनते थे, ख़ूब रोज़े रखते थे, बहुत कम खाना खाते थे, उनका संदेश था कि कपड़े ओढ़ने के लिए हैं और भोजन मानव जीवन के अस्तित्व के लिए है, भोजन और कपड़े जीवन का उद्देश्य नहीं हैं बल्कि जीवन की आवश्यकताएं हैं.

मनुष्य को एक बड़े उद्देश्य के लिए जीवन दिया गया है. इसी उद्देश्य के लिए जीवन व्यतीत करना चाहिए और वह महान उद्देश्य ख़ुदा की इबादत और ख़ुदा की आज्ञाकारिता है. इबादत का अर्थ है ख़ुदा के कर्तव्यों को पूरा करना और आज्ञाकारिता का अर्थ है प्राणियों के कर्तव्यों को पूरा करना.

हज़रत ख़्वाजा की महान उपलब्धियों में से एक भारत की धरती पर चिश्तिया सिलसिले का प्रकाश फैलाना है. यदि हम भारतीय समाज को ध्यान से देखें तो चिश्तिया हजरात की सेवाएँ इस धरती पर सबसे ज़्यादा नज़र आती हैं. भारतीय समाज के सामाजिक संगठन से लेकर साहित्य, संस्कृति और सभ्यता तथा ज्ञान और धर्म तक चिश्तिया सिलसिले की सेवाएं अद्वितीय हैं.

हज़रत ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी, हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन गंज शकर, हज़रत महबूब इलाही निज़ामुद्दीन औलिया, हज़रत अमीर ख़ुसरो, हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहली, हज़रत ख़्वाजा बंदा नवाज़ गेसू दराज़, हज़रत शेख़ कलीम जहानाबादी, बरेली के उल्मा हों या उल्मा-ए-देवबंद, सबके यहाँ चिश्तिया सिलसिले की रोशनी नज़र आती है.

हज़रत ख़्वाजा अजमेरी को सुल्तानुल-हिंद के रूप में याद किया जाता है. प्रसंग यह है कि यह शब्द उनके वैभव के मुकुट के मणि के रूप में प्रतिष्ठित हो गया.

भारत की धरती ने सैकड़ों राजाओं को देखा, हजारों विद्वानों ने इस धरती को सुशोभित किया और अनगिनत सूफ़ियों और शांतिदूतों ने इस धरती‎के वातावरण को अपने दिव्य गीतों से सजाया, लेकिन यह धरती‎हज़रत ख़्वाजा की महिमा, सम्मान और महानता से धन्य है और निरंतर बनी हुई है और इसकीकोई अन्य मिसाल नहीं है. हज़रत ख़्वाजा निस्संदेह भारतीय सभ्यता, भारतीय समाज और भारतीय इतिहास के सबसे चमकीले रत्न और सबसे चमकते सितारे हैं.

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं).