हरजिंदर
एक कहावत है जो अक्सर व्यंग्य में ही कही जाती है- सच जब तक अपने घर से निकलने के लिए जूते के फीते बांध रहा होता है, झूठ तब तक पूरे शहर के चार चक्कर लगा चुका होता है। सोशल मीडिया के दौर में यह कहावत और भी सच दिखाई देती है। इस मीडिया में बोला गया झूठ काफी तेजी से फैलता है और चारो ओर फैलता है। जो झूठ आज फेसबुक पर बोला जा रहा है वह कल होने से पहले आपको ट्व्टिर पर भी दिख जाएगा, इंस्टाग्राम पर भी मिलेगा, टिक-टाॅक पर भी उसके दर्शन हो जाएंगे और आपके व्हाट्सएप पर भी आ जाएगा। यह भी हो सकता है कि जब उसे लोग भूलने लगें तो वह कुछ समय बाद फिर जिंदा हो जाए।
पिछले दिनों एक ऐसी ही एक सोशल मीडिया पोस्ट चर्चा में आई। यह काफी तेजी से दुनिया भर में फैली। इसमें कहा गया था कि दुनिया के 85 प्रतिशत शरणार्थी मुसलमान होते हैं। आगे इस पोस्ट में कहा गया कि जब ये शरणार्थी अपने देश से निकलते हैं तो दुनिया के जो 59 मुस्लिम बहुत देश हैं उनमें शरण नहीं लेते। इसके बजाए वे गैर मुस्लिम देश में शरण लेने जाते हैं।
भले ही इस बात का कोई बड़ा अर्थ न हो लेकिन ऐसे बातें सामने आते हीं उन पर चर्चा तो शुरू हो ही जाती है।लेकिन असली समस्या उन लोेगों के सामने थी जिन्हें फेक न्यूज़ बस्टर कहा जाता है। पहले तो उन्होंने इसकी जड़ पता लगाने की कोशिश शुरू की।
मालूम पड़ा कि यह पोस्ट सबसे पहले 2019 में टिकटाॅक पर दिखाई दी थी। उस समय सब जगह फैली। तभी कोविड आ गया और कहानी बदल गई। लोग इसे भूल गए। अब फिर किसी ने इसे खोद कर निकाला और यह दोबारा दुनिया भर में फैलने लगी।
मगा असली समस्या इसके सच को समझने की थी। संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है यूनाइटेड नेशल हाईकमिश्नर आॅन रिफ्यूजीज़। दुनिया भर में शरणार्थियों का हिसाब किताब यही संस्था रखती है। इस संस्था के आंकड़ें बताते हैं कि इस समय दुनिया में तकरीबन 4.25 करोड़ शरणार्थी हैं।
लेकिन दिक्कत यह है कि इस संस्था के पूरे हिसाब किताब में यह तो गिना जाता है कि किस देश से कितने शरणार्थी कहां गए लेकिन यह नहीं गिना जाता कि उनका मजहब क्या है।
पिछले दिनों एक अमेरिकी संस्था प्यू रिसर्च ने इस सच को समझने की कोशिश की। पता नहीं उसकी कोशिश के पीछे इस आधारहीन पोस्ट की कोई भूमिका थी या नहीं। उसके अध्यन का विषय था - दुनिया की शरणार्थी आबादी के धार्मिक गठन को समझना।
प्यू रिसर्च ने पाया कि दुनिया भर में जितने शरणार्थी हैं उनमें 47 फीसदी ईसाई हैं। मुसलमानों का प्रतिशत सिर्फ 29 है। बाकी या तो अन्य धर्मों के हैं या उन देशों से आएं हैं जहां स्थापित धर्मों को नहीं माना जाता।
वैसे इस गणित को एक दूसरी तरह से समझा जा सकता है। इसके लिए हमें एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों की ओर लौटना होगा। इस समय दुनिया में सबसे ज्यादा शरणार्थी या तो वेनेजुएला के हैं या फिर यूक्रेन के। इन दोनों ही देशों के ज्यादातर धर्मावलंबी ईसाई हैं।
यह ठीक है कि मुस्लिम देशों के बहुत से लोग भी शरणार्थी बनकर कईं जगहों पर रह रहे हैं। लेकिन वे उतने नहीं है जितना कि बताया जाता है और इस झूठ को बहुत से लोग अक्सर मान भी लेते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)