वडोदरा की ख़ुशी पठान का कमाल, अब सेना के जवान रहेंगे ‘पावर फुल’

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 24-08-2025
Amazing feat of Vadodara's Khushi Pathan, now army soldiers will remain 'powerful'
Amazing feat of Vadodara's Khushi Pathan, now army soldiers will remain 'powerful'

 

 मलिक असगर हाशमी/नई दिल्ली 

भारत की युवा पीढ़ी किस तरह से नई सोच और तकनीक के दम पर देश की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता में योगदान कर सकती है, इसका ताज़ा उदाहरण गुजरात के वडोदरा की 21 वर्षीय फैशन डिज़ाइन छात्रा ख़ुशी पठान ने पेश किया है. फैशन डिज़ाइन की पढ़ाई कर रही यह युवा छात्रा अब देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है. उसने भारतीय सैनिकों के लिए एक ऐसी वर्दी डिज़ाइन की है जो सौर ऊर्जा से संचालित होती है. 


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इस वर्दी की सबसे ख़ास बात यह है कि यह सैनिकों को दुर्गम इलाक़ों में भी अपने उपकरणों को चार्ज करने की सुविधा देती है, जिससे वे लगातार अपनी इकाई से जुड़े रह सकें और किसी भी परिस्थिति में निर्भरता महसूस न करें.

ख़ुशी ने इस साल फरवरी में अपनी स्नातक शोध परियोजना के हिस्से के रूप में इस विचार पर काम शुरू किया था. छह महीनों की अथक मेहनत, प्रयोग और डिज़ाइनिंग के बाद उन्होंने इस अनूठी वर्दी को तैयार किया.

इसके प्रोटोटाइप को अंतिम रूप देने से पहले उन्होंने 10–12 आम नागरिकों और 4–5 सेवारत सैन्य अधिकारियों से सुझाव लिए. इन सभी प्रतिक्रियाओं ने उन्हें वर्दी को और व्यावहारिक, हल्का और टिकाऊ बनाने में मदद की.


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वर्दी की बनावट इस तरह की गई है कि इसमें तारों और सौर पैनलों के लिए अलग-अलग जगह बनाई गई है. इसके बावजूद यह वर्दी सैनिकों के लिए भारी या असुविधाजनक नहीं होती, बल्कि पूरी तरह लचीली और सैन्य गरिमा के अनुरूप बनी रहती है.

भारतीय सेना के जवान अक्सर ऐसे इलाक़ों में तैनात रहते हैं, जहाँ बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं होती. कई बार उन्हें अपने उपकरणों—रेडियो, जीपीएस, नाइट विज़न डिवाइस और मोबाइल कम्युनिकेशन सेट को चार्ज करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. ऐसे में ख़ुशी द्वारा डिज़ाइन की गई सौर ऊर्जा चालित वर्दी उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं मानी जा रही.

अगर यह वर्दी व्यापक स्तर पर परीक्षण पास कर लेती है और सेना इसे अपनाती है, तो यह भारतीय रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी तकनीकी छलांग साबित होगी. यह न सिर्फ सैनिकों की परिचालन दक्षता बढ़ाएगी बल्कि भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में भी एक अहम कदम होगी.

ख़ुशी पठान का यह नवाचार सामने आते ही सोशल मीडिया पर उनकी तारीफ़ों का सिलसिला शुरू हो गया है. लोग उन्हें देश की असली ‘चेंज मेकर’ कह रहे हैं. कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के प्रयोगों को तुरंत डीआरडीओ जैसी संस्थाओं को अपनाना चाहिए ताकि इसे बड़े स्तर पर विकसित करके सैनिकों तक पहुँचाया जा सके.
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खुशी की डिजाइन की हुई सेना की वर्दी

एक उपयोगकर्ता ने लिखा,“डीआरडीओ को तुरंत ख़ुशी को नियुक्त करना चाहिए. जो भी हमारे सशस्त्र बलों के लिए उपयोगी उपकरण बनाए, उसे योग्यता की औपचारिकताओं में उलझाए बिना भर्ती करना चाहिए.”दूसरे ने सुझाव दिया—“भविष्य में सैनिक रोबोटिक खच्चरों का इस्तेमाल करेंगे, इसलिए इस वर्दी की तकनीक को उन पर भी लागू किया जा सकता है.”

ख़ुशी का यह प्रयोग दिखाता है कि देश की युवा पीढ़ी किस तरह तकनीक और रचनात्मकता को मिलाकर ऐसे समाधान खोज सकती है, जो न केवल सैनिकों की ज़रूरतें पूरी करें बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर तकनीकी रूप से मज़बूत भी बनाएं.

सिर्फ़ 21 साल की उम्र में ख़ुशी पठान ने जिस दूरदर्शिता और लगन के साथ इस शोध परियोजना पर काम किया है, वह इस बात का सबूत है कि भारतीय युवाओं में नवाचार की कोई कमी नहीं है. उनकी यह सोच फैशन और तकनीक के अनूठे मेल की मिसाल है.
 

आज जब देश स्वदेशी तकनीक और रक्षा उपकरणों में आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ऐसे समय में ख़ुशी पठान जैसी छात्राओं के प्रयास नई उम्मीद जगाते हैं. यह पहल केवल भारतीय सैनिकों के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव की बात है.

ख़ुशी ने खुद भी उम्मीद जताई है कि उनकी कृति को जल्द ही भारतीय सेना द्वारा अपनाया जाएगा. अगर ऐसा होता है तो यह निश्चित ही न सिर्फ़ उनकी मेहनत की जीत होगी बल्कि यह भारत की उस सोच की भी जीत होगी जो कहती है,“युवा ही भविष्य हैं.”

ख़ुशी पठान की कहानी इस बात का प्रमाण है कि सही सोच और दृढ़ निश्चय से कोई भी युवा अपने क्षेत्र से आगे बढ़कर देश के लिए अभूतपूर्व योगदान दे सकता है. उनकी यह उपलब्धि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है कि कल्पनाशीलता, मेहनत और देशभक्ति का संगम किस तरह इतिहास रच सकता है.