ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
27 अगस्त 2025 को गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जाएगा, और इस बार भी उम्मीद है कि महाराष्ट्र में एक बार फिर देखने को मिलेगी हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता की वही प्रेरणादायक झलक, जैसी हमने पिछले साल (2024) देखी थी. जैसे-जैसे त्योहार की तारीख़ नज़दीक आ रही है, तैयारियाँ पूरे जोश में हैं. पंडाल सजने लगे हैं, मूर्तियाँ अंतिम रूप में हैं, और भक्तों के साथ-साथ समाज का हर तबका इस पर्व की प्रतीक्षा कर रहा है.
पिछले साल गणेश चतुर्थी के दौरान महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों से आईं कुछ ऐसी मिसालें सामने आईं, जिन्होंने यह साबित किया कि धर्म अलग हो सकते हैं, लेकिन दिल और इंसानियत एक ही होती है.
1. मुंबई का वर्ली इलाका – रथ खींचते मुस्लिम भाई
पिछले साल मुंबई के वर्ली इलाके में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल देखने को मिली थी. इस इलाक़े में रहने वाले मुस्लिम युवक, हर साल की तरह, 2024 में भी गणेश जी की मूर्ति वाले रथ को पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ खींचते हुए नज़र आए थे.
वे न सिर्फ रथ को खींचते हैं, बल्कि मूर्ति पर फूल अर्पित करके गणपति बप्पा के प्रति सम्मान भी प्रकट करते हैं. यह दृश्य हर वर्ष यह संदेश देता है कि आस्था दिल से होती है, और प्रेम में कोई दीवार नहीं होती. इस साल भी वर्ली में उसी भाईचारे के साथ पर्व मनाए जाने की तैयारी हो रही है.
2. नटेपुते, सोलापुर – मुलानी बंधुओं की सौगात: 101 गणेश प्रतिमाएँ
2024 में सोलापुर जिले के नटेपुते कस्बे के मुस्लिम समुदाय के मुलानी परिवार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया था. शाहिद, सिकंदर और नौशाद मुलानी ने अपने संगठन 'रज़ा फ़ाउंडेशन' के माध्यम से 101 गणेश प्रतिमाएँ उन लोगों को मुफ़्त में वितरित कीं, जो अपने घरों में बप्पा की स्थापना करना चाहते थे लेकिन साधन सीमित थे.
उनका यह कदम सिर्फ मूर्तियाँ बाँटने का नहीं था, बल्कि धार्मिक सौहार्द्र का एक स्पष्ट संदेश था – "गणपति बप्पा सबके हैं."
शाहिद मुलानी ने उस वक्त कहा था, "हम सभी धर्मों के प्रति समानता बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं. गणपति सबके दिलों के करीब हैं, इसलिए हमने यह पहल की."
इस साल भी नटेपुते में वैसी ही पहल की उम्मीद की जा रही है, जहाँ मुसलमान भाई गणेश उत्सव को दिल से मना रहे हैं.
3. धुले शहर का खूनी गणपति मंदिर – इतिहास से सीख, आज की एकता
महाराष्ट्र के धुले शहर में स्थित “खूनी गणपति मंदिर” का नाम सुनकर अतीत की एक दर्दनाक घटना याद आती है. लगभग 127 साल पहले, गणेशोत्सव के जुलूस को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विवाद हुआ था, जिसमें ब्रिटिश पुलिस ने गोलियाँ चलाईं और कई लोगों की जानें गईं.
मगर समय के साथ दोनों समुदायों ने इस घटना से सीख ली और आज यह स्थान एकता का प्रतीक बन चुका है. पिछले साल भी 2024 में गणेशोत्सव के दौरान दोनों समुदायों ने मिलकर इस मंदिर में पूजा अर्चना की और भाईचारे का संदेश दिया. इस साल भी यहाँ सामूहिक आयोजन की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं.
4. सांगली का गोटखिंडी गाँव – जब मस्जिद बनी गणेश स्थापना स्थल
गणेश चतुर्थी पर सांप्रदायिक सौहार्द्र की सबसे अनोखी मिसाल गोटखिंडी गाँव (सांगली) में देखने को मिलती है. यहाँ पिछले 43 सालों से गणपति की मूर्ति मस्जिद परिसर में स्थापित की जाती है. यह परंपरा तब शुरू हुई थी जब एक बार बारिश के कारण मूर्ति पर पानी टपकने लगा, और मस्जिद के बुज़ुर्ग मुस्लिम भाइयों ने मूर्ति को मस्जिद में स्थानांतरित करने की पेशकश की.
उस दिन के बाद से यह एक परंपरा बन गई है. 2024 में भी, पूरे गाँव ने मिलकर मस्जिद परिसर में गणपति बप्पा की प्राण-प्रतिष्ठा की थी. इस साल 2025 में भी, गोटखिंडी में उसी प्रेम, श्रद्धा और एकता के साथ यह परंपरा निभाई जाएगी.
गणेश चतुर्थी महज़ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और इंसानियत का उत्सव बन चुका है. महाराष्ट्र में हर साल सामने आने वाली ऐसी घटनाएँ यह सिद्ध करती हैं कि जब बात प्रेम, सहयोग और एकता की होती है, तो मज़हब पीछे छूट जाता है और दिल एक हो जाते हैं.
2025 की गणेश चतुर्थी में भी यही उम्मीद है — कि हम सब मिलकर एक-दूसरे की खुशियों में शरीक होंगे, जैसे हमने पिछले साल किया था.
"गणपति बप्पा मोरया! मंगलमूर्ति मोरया!"
भक्ति के साथ-साथ भाईचारे का यह नारा पूरे महाराष्ट्र में गूंजेगा — और फिर से ये साबित करेगा कि भारत की असली ताक़त उसकी विविधता में एकता है.