बुलंदशहर में इंसानियत की मिसाल: मुस्लिम दंपति ने कुत्ते के जबड़े से नवजात की जान बचाई

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 24-08-2025
Muslim couple showed humanity in Bulandshahr: saved the life of a newborn found in polythene
Muslim couple showed humanity in Bulandshahr: saved the life of a newborn found in polythene

 

अर्सला खान/नई दिल्ली 

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के गुलावठी कोतवाली क्षेत्र से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने समाज को इंसानियत का सच्चा अर्थ समझा दिया. यहाँ एक मुस्लिम दंपति ने अपनी संवेदनशीलता और साहस से उस नवजात की ज़िंदगी बचा ली, जिसे बेरहमी से सड़क किनारे पॉलीथिन में बंद कर फेंक दिया गया था.

यह वाकया बीती रात करीब 11 बजे का है। कुराना नया बांस गाँव के रहने वाले फहीमुद्दीन अपनी पत्नी शमीना के साथ औरंगाबाद से बाइक पर लौट रहे थे. असावर और ऐंचाना के बीच सड़क किनारे उन्हें एक अजीब दृश्य दिखा. एक कुत्ता झाड़ियों से पॉलीथिन खींचकर बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था. सामान्य स्थिति में यह शायद किसी का कचरा लगता, लेकिन फहीमुद्दीन को कुछ असामान्य महसूस हुआ. उन्होंने तुरंत बाइक रोकी, कुत्ते को भगाया और पॉलीथिन के पास पहुँचे.
 
 
करीब जाने पर जो दृश्य उन्होंने देखा, उसने उनके पैरों तले ज़मीन खींच ली. पॉलीथिन हिल रही थी और उसके भीतर एक नवजात बच्चा था. इंसानियत का फर्ज़ निभाते हुए फहीमुद्दीन ने तुरंत पॉलीथिन खोला और बच्चे को बाहर निकाला. उस समय की घबराहट के बावजूद उन्होंने और उनकी पत्नी ने हिम्मत नहीं हारी और नवजात को तुरंत नज़दीकी डॉक्टर के पास ले गए. प्राथमिक जांच में पता चला कि बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है और जन्म के एक-दो दिन के भीतर का है.
 
डॉक्टर से जांच करवाने के बाद दंपति बच्चे को अपने घर ले आए। पाँच बच्चों की माँ शमीना के लिए यह अनुभव भावनात्मक रूप से बेहद गहरा था. जब सुबह पुलिस को सूचना देकर चाइल्ड लाइन के माध्यम से बच्चे को सौंपने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो शमीना अपने आँसू रोक नहीं सकीं. नवजात से बिछड़ते हुए उनका दिल पसीज गया. मानो रातभर में यह बच्चा उनका अपना हो गया हो.
 
 
इस घटना के सामने आने के बाद पूरे इलाके में चर्चा का विषय यही बन गया. लोग उस निर्दयी कृत्य की निंदा कर रहे हैं, जिसमें मासूम को पॉलीथिन में बंद कर मौत के मुँह में धकेल दिया गया था. कई लोगों का अनुमान है कि यह किसी अविवाहित माँ का बच्चा हो सकता है, जिसने सामाजिक दबाव या डर की वजह से ऐसा कदम उठाया होगा, लेकिन किसी भी परिस्थिति में यह अमानवीय कार्य किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है.
 
दूसरी ओर, फहीमुद्दीन और शमीना की इंसानियत भरी पहल की हर कोई सराहना कर रहा है. समय पर उनकी सतर्कता और साहस ने उस मासूम की जान बचाई, जो अगर कुछ देर और झाड़ियों में पड़ा रहता तो शायद कुत्तों या ठंड के कारण ज़िंदा न बच पाता.
 
यह घटना हमें यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि समाज में अनचाहे बच्चों के प्रति अब भी संवेदनशीलता और व्यवस्था की कमी है. जहाँ एक तरफ कानून और संस्थाएँ ‘चाइल्ड लाइन’ जैसी सुविधाएँ देती हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसे मामले यह बताते हैं कि ज़मीन पर जागरूकता की कमी है. यदि उस माँ को यह पता होता कि बच्चा सुरक्षित रूप से सरकारी संस्थानों को सौंपा जा सकता है, तो शायद वह इतना निर्दयी कदम न उठाती.
 
 
डल झील की तरह बुलंदशहर की यह घटना भी हमें यह एहसास कराती है कि इंसानियत किसी जाति, धर्म या मज़हब की मोहताज नहीं होती. फहीमुद्दीन और शमीना ने न केवल एक मासूम की जान बचाई, बल्कि यह भी साबित किया कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है.
 
आज जब समाज विभाजन और संकीर्णताओं से जूझ रहा है, तब यह घटना उम्मीद की किरण बनकर सामने आई है. इसने यह संदेश दिया है कि यदि हर इंसान अपने दिल में संवेदनशीलता और साहस रखे, तो दुनिया को बेहतर और सुरक्षित बनाया जा सकता है.