ब्रूस ली की दीवानगी से जॉर्डन तक: बारामूला के दानिश ने ताइक्वांडो में भारत के लिए जीता पदक

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 24-08-2025
From Bruce Lee's passion to Jordan: Baramulla's Danish won a medal for India in Taekwondo
From Bruce Lee's passion to Jordan: Baramulla's Danish won a medal for India in Taekwondo

 

आवाज़ द वाॅयस/ श्रीनगर

कभी टीवी पर ब्रूस ली की फ़िल्में देखकर उनके मूव्स की नकल करने वाला एक कश्मीरी लड़का आज भारत का नाम वैश्विक मंच पर रोशन कर रहा है. यह कहानी है बारामूला के दानिश मंज़ूर की, जिन्होंने जॉर्डन में आयोजित प्रतिष्ठित 13वीं एलीट कप अंतर्राष्ट्रीय ताइक्वांडो चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया है.

sदानिश का मार्शल आर्ट्स सफर महज़ 13 साल की उम्र में शुरू हुआ. तब वे गलियों में नंगे पाँव या कभी चप्पल पहनकर किक और पंच की प्रैक्टिस करते थे. पेशेवर सुविधा न होने के बावजूद उनका जुनून कम नहीं हुआ. टीवी पर ब्रूस ली की फिल्में देखकर वे घंटों अभ्यास करते. यही जुनून उन्हें प्रतियोगिता की दुनिया तक ले गया.

उनकी प्रतिभा को सबसे पहले कोच अशफ़ाक अहमद वानी ने पहचाना और उन्हें मुकाबलों के लिए प्रोत्साहित किया. पहला मौका जिला स्तर पर मिला, जहाँ दानिश ने कांस्य पदक जीता. इसके तुरंत बाद राज्य चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया. फिर 2013 में वे पुडुचेरी में जूनियर नेशनल्स में चौथे स्थान पर आने वाले पहले कश्मीरी बने..

राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय मंच तक

इसके बाद दानिश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. घरेलू स्तर पर उन्होंने ओपन कश्मीर, गुलमर्ग कप और राज्य चैंपियनशिप में लगातार पदक जीते. 2016 में महावीर राष्ट्रीय ताइक्वांडो चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर उन्होंने एशियाई खेलों और अंतरराष्ट्रीय ट्रायल के लिए क्वालीफाई किया.

यही वह दौर था जब दानिश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कोच अतुल पंगोत्रा के साथ प्रशिक्षण का मौका मिला. अतुल इंटरनेशनल ताइक्वांडो अकादमी में उनकी स्किल्स निखरीं और वैश्विक मंच पर उतरने की तैयारी हुई.

2018 में प्रोफेशनल बनने के बाद दानिश ने हैदराबाद में G1 ओलंपिक रैंकिंग टूर्नामेंट से लेकर इज़राइल ओपन G2 तक में भारत का प्रतिनिधित्व किया.

दक्षिण कोरिया में वर्ल्ड ताइक्वांडो ऑक्टागन डायमंड G4 इवेंट में पाँचवाँ स्थान उनके करियर का अहम पड़ाव साबित हुआ.

2021 में वे टोकी मेमोरियल चैंपियनशिप में सर्वश्रेष्ठ पुरुष एथलीट चुने गए और अगले ही साल फिट इंडिया मूवमेंट के एम्बेसडर बने.

गौर करने वाली बात यह है कि यह सम्मान पाने वाले वे पहले भारतीय ताइक्वांडो खिलाड़ी थे. इसी दौरान उन्होंने बल्गेरियाई कंपनी फाइट स्काउट के साथ पेशेवर अनुबंध किया, जिसने उनके अंतरराष्ट्रीय करियर को और गति दी.

जॉर्डन की ऐतिहासिक जीत

13वीं एलीट कप से पहले दानिश ने खुद को पूरी तरह तैयार करने का बीड़ा उठाया. 6 से 20 अगस्त 2025 तक उन्होंने अम्मान में जॉर्डन ओलंपिक टीम के कोच अयमान अलहुसामी के मार्गदर्शन में कड़ा प्रशिक्षण लिया.

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इस अंतरराष्ट्रीय शिविर को जम्मू-कश्मीर ताइक्वांडो संघ और हेल्प फाउंडेशन ने समर्थन और प्रायोजन दिया. कठिन अभ्यासों ने उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता को परख लिया और निखार भी दिया.

परिणाम सबके सामने था,21 से 24 अगस्त तक आयोजित चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीतकर भारत का गौरव बढ़ाया. यह न केवल उनका पहला अंतरराष्ट्रीय पदक था, बल्कि कश्मीर की धरती से उठे एक युवा की मेहनत और संघर्ष का फल भी था.

जीत के बाद दानिश ने कहा,"यह पदक मेरे कोच मास्टर अतुल पंगोत्रा के मार्गदर्शन और मुझ पर विश्वास करने वाले सभी लोगों के समर्थन का नतीजा है. मैं यह उपलब्धि अपने कोच, अपने परिवार और अपने देश को समर्पित करता हूँ."
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कश्मीर में जश्न

दानिश की इस सफलता ने बारामूला ही नहीं, पूरे कश्मीर को गर्व से भर दिया. उनके परिवार, दोस्तों और स्थानीय लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई. जम्मू-कश्मीर ताइक्वांडो संघ के अध्यक्ष ने उन्हें बधाई दी और कहा कि दानिश की उपलब्धि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है. वहीं, जम्मू-कश्मीर खेल परिषद की सचिव नुज़हत गुल ने भी भारत के लिए पदक जीतने पर उन्हें शुभकामनाएँ दीं.
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जुनून जो प्रेरणा बना

दानिश की कहानी इस बात का सबूत है कि जुनून और मेहनत से किसी भी सपने को हकीकत में बदला जा सकता है.. जिस लड़के ने ब्रूस ली के पोस्टर देखकर किक-पंच सीखा, वही आज अंतरराष्ट्रीय ताइक्वांडो मंच पर भारत का झंडा बुलंद कर रहा है.

उनकी सफलता न केवल विश्व ताइक्वांडो में भारत की उपस्थिति को मजबूत करती है, बल्कि कश्मीर के युवाओं के लिए एक नई उम्मीद भी जगाती है. आज दानिश मंज़ूर सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि उस पीढ़ी के प्रतीक हैं जो संघर्षों के बीच भी सपनों को पंख देना जानती है.