अभिभावक बनना कभी आसान नहीं रहा.आज यह एक बिल्कुल नया संघर्ष है.हम परंपराओं को बचाने और तकनीक को अपनाने के बीच झूलते हैं—मार्गदर्शन देने और स्वतंत्रता देने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं.और इसी कोशिश में हममें से कई लोग सोचने लगते हैं: क्या हम सही कर रहे हैं?इस तीन भागों की श्रृंखला में हम आधुनिक अभिभावकत्व की वास्तविक चुनौतियों को समझने की कोशिश करेंगे.
आधुनिक अभिभावक, प्राचीन मूल्य और एक महान संतुलन का संघर्ष
सपना वैद्य
लेकिन हम जिस चीज़ को अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं, वह है हमारे आस-पास का वातावरण—जो चुपचाप, लगातार और गहराई से हमारे बच्चों को प्रभावित कर रहा है.सच तो यह है कि हम अब अकेले माता-पिता नहीं हैं.एल्गोरिद्म, विज्ञापन, ट्रेंड्स और सामाजिक तुलना के ज़रिए. दुनिया भी हमारे बच्चों की परवरिश में हिस्सा ले रही है.
हर बार जब कोई बच्चा इंस्टाग्राम स्क्रॉल करता है, कोई रील देखता है या यूट्यूब वीडियो ब्राउज़ करता है, वो संदेश ग्रहण कर रहा है—कुछ प्रत्यक्ष, कुछ अचेतन.उसे बताया जा रहा है कि क्या पहनना है, कैसे दिखना है, सफलता का मतलब क्या है और ‘कूल’ किसे माना जाता है.
इन सबके बीच, विज्ञापन, प्रभावशाली लोग और ग्लैमर से भरी ज़िंदगी एक ऐसा दबाव बना रहे हैं जो न केवल बच्चों की सोच बल्कि उनकी आत्म-छवि तक को आकार दे रहे हैं.आज की पीढ़ियों के बीच का अंतर केवल संगीत या फैशन तक सीमित नहीं है.
अब यह अंतर एक रील से शुरू होता है.डिजिटल पसंद-नापसंद से शुरू होकर यह अंतर शिक्षा, जीवनशैली और मूल्यों तक फैल जाता है.जहाँ पहले परंपरा सहारा देती थी. अब वही परंपरा कई बार बेगानी लगने लगी है.
आज का अभिभावकत्व एक अदृश्य प्रतिस्पर्धा बन चुका है.यह केवल यह नहीं है कि आप अपने बच्चे के साथ क्या कर रहे हैं, बल्कि यह भी है कि वो समाज को कैसा दिख रहा है.कौन बेहतर जन्मदिन मनाता है? किसका बच्चा ज़्यादा अंक लाता है?स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप्स और मॉम ब्लॉग्स में किसकी परवरिश की तारीफ़ हो रही है?
इन सामाजिक दबावों के साथ-साथ पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी जटिलता को और बढ़ा देती हैं.हरियाली की कमी, बढ़ते प्रदूषण, सुरक्षा की चिंता और शहरी जीवन की भागदौड़ ने बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाला है.जहाँ पहले पार्क खेल का मैदान थे, आज वे खतरों से भरे क्षेत्र बन चुके हैं.प्रकृति, जो कभी शिक्षक और उपचारक हुआ करती थी, अब दुर्लभ होती जा रही है.
इन हालातों में बच्चे आराम पाने के लिए गैजेट्स की दुनिया में चले गए हैं.यह डिजिटल संसार उन्हें एक सुरक्षित कोना देता है,जहाँ वे खुद को व्यक्त कर सकते हैं. मज़ा ले सकते हैं. नियंत्रण महसूस कर सकते हैं.लेकिन यह डिजिटल शरण स्थायी नुकसान छोड़ रही है.
इसका सबसे गहरा प्रभाव परिवार पर पड़ा है.बातचीत अब मैसेज में सिमट गई है, भावनाएँ इमोजी में व्यक्त हो रही हैं, और आँखों का मिलना स्क्रीन की रोशनी में खो गया है.माता-पिता बच्चों की भावनात्मक दुनिया से कटते जा रहे हैं—न तो उन्हें समझ पा रहे हैं, न ही उनका दर्द पढ़ पा रहे हैं.
बच्चों को आज जितनी आज़ादी मिली है, उतने ही विकल्प भी हैं—करियर, दोस्ती, रुचियाँ, जीवनशैली—हर जगह विकल्प हैं.बहुत ज़्यादा विकल्प भ्रम पैदा करते हैं.वे खुद पर संदेह करने लगते हैं. दूसरों से तुलना करते हैं, और हर समय बेहतर विकल्प चूक जाने का डर सताता है.यह 'पैरालिसिस बाय एनालिसिस' उनके आत्मविश्वास और मानसिक स्पष्टता को चुपचाप खा रहा है.
तो ऐसे में माता-पिता क्या करें?
1. सहानुभूति (Empathy)
सहानुभूति का अर्थ है संवेदनशील और सक्रिय श्रोता बनना.आदेश देने या कहने की बजाय कि "मैंने कहा था ऐसा मत करो", हम कह सकते हैं "शायद तुम ऐसा भी कर सकते थे."सहानुभूति वह जगह देती है जहाँ बच्चा बिना जज किए बोल सकता है.
सलाह तभी दें जब बच्चा मांगे—और तब भी सरल और स्पष्ट रखें.बीते समय की बातों पर नहीं, वर्तमान स्थिति पर ध्यान दें.सहानुभूति रिश्ते को सबसे जल्दी और गहराई से जोड़ती है.
2. धैर्य (Patience)
बच्चे केवल पढ़ाई या दोस्ती की चिंता नहीं कर रहे हैं.वे कम उम्र में ही जटिल सामाजिक दबाव और भावनात्मक उलझनों का सामना कर रहे हैं.उन्हें ऐसे माता-पिता चाहिए जो उन्हेंबिना 'ठीक' किए सुने.उन्हें अपने विचार प्रकट करने, गलतियाँ करने और खुद को जानने का अवसर दें.
3. दुनिया को भी पालें (Parent the World)
केवल बच्चों को नहीं, बल्कि हम उन्हें जो दुनिया दे रहे हैं, उसकी भी परवरिश करें.सुरक्षित शहर, हरियाली, स्वच्छ हवा के लिए आवाज़ उठाएँ.डिजिटल कंटेंट के बेहतर नियंत्रण की माँग करें.बच्चों को सिखाएँ कि वे इस दुनिया में केवल 'समायोजित' न हों, बल्कि इसे प्रश्न करें, आकार दें, और एक दिन नेतृत्व करें।.
इस 'शोर' से भरी दुनिया में, एक मौन, जागरूक और उपस्थित माता-पिता होना एक शांत विद्रोह जैसा है.आइए हम वही विद्रोह चुनें.संकल्प लें कि हम केवल अच्छे बच्चे नहीं, बल्कि उनके साथ मिलकर एक बेहतर दुनिया बनाएँगे.