जेके त्रिपाठी
पाकिस्तान एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में फंसा हुआ है. इस बार इसके केंद्र में इमरान खान ही हैं. लगभग छह महीनों के प्रयासों के बाद आखिरकार विपक्षी पार्टियां नेशनल असेंबली में प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने में सफल हो गईं. हालांकि इस पर चर्चा 31 मार्च को शुरू होगी और मतदान 4 अप्रैल को होने की उम्मीद है. तब तक इमरान खान अपनी हरचंद कोशिश करेंगे कि सरकार बचा ली जाए.
जहां एक ओर सरकार मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले गई है, वहीं दूसरी ओर सदन में अपनी पार्टी के स्पीकर पर दबाव डाल कर मतदान को अधिकाधिक समय के लिए टालना चाहती है, ताकि इस समय का उपयोग कुछ हेराफेरी करके अपने पक्ष में समर्थन जुटाने में किया जा सके.
इस प्रयास में इमरान खान अपने दल के नेताओं की बलि देने से भी नहीं कराएंगे. जैसा कि इस समाचार से जाहिर है कि अपने सहयोगी दल पीएमएल (क्यू) में पनपे असंतोष को शांत करने के लिए इमरान की पार्टी पीटीआई ने पंजाब प्रांत के अपने मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार से इस्तीफा दिलाया और पीएमएल( क्यू) से स्पीकर रहे चौधरी परवेज इलाही को मुख्यमंत्री बनवा कर 5 संसद सदस्यों वाली असंतुष्ट पीएमएल (क्यू) को पुख्ता तौर पर अपने पाले में कर लिया.
वैसे भी इमरान एक रैली में ऐलान कर चुके हैं कि उनके पास अभी कई तुरुप के इक्के मौजूद हैं. पिछले हफ्ते आहूत संसद के अधिवेशन के पहले दिन की कार्यवाही स्पीकर ने प्रधानमंत्री के इशारे पर एक सदस्य के निधन पर शोक प्रस्ताव लाने की आड़ में स्थगित कर दी थी और अविश्वास प्रस्ताव रखने को तैयार बैठे विपक्ष को बैकफुट पर ला दिया था. लेकिन ऐसा नहीं लगता कि कप्तान इमरान के तरकश में विपक्ष की बॉलिंग के खिलाफ कोई और कारगर स्ट्रोक बचा है.
आंकड़ों पर जाएं तो 341 सदस्यों की नेशनल असेंबली में सामान्य बहुमत के लिए 172 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है. वर्तमान में इमरान खान की पीटीआई के 155 सदस्य हैं. यानी अकेले उनकी पार्टी का बहुमत नहीं है.
उनकी सरकार में सहयोगी अन्य दल हैं - मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट (प) -7 सदस्य, बलूचिस्तान अवामी पार्टी -5 सदस्य, पीएमएल (क्यू) -5 सदस्य, ग्रैंड डेमोक्रेटिक लीग -3सदस्य, अवामी मुस्लिम लीग-1 सदस्य, जम्हूरी वतन पार्टी-1 सदस्य और निर्दलीय- 2 सदस्य. इस तरह सरकार के समर्थकों की कुल संख्या 179 हो जाती है जो सामान्य बहुमत से मात्र 7 अधिक है. दूसरी और विपक्ष में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के पास 84 , पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के 56, मुत्तहिदा मजलिस- ए- अम्माल के पास 15, बलूचिस्तान नेशनल पार्टी (मेंगल ग्रुप) के 4, अवामी नेशनल पार्टी का 1 और निर्दलीय 2 सदस्य हैं जिनकी कुल संख्या 162 है.
अपने सहयोगी दलों में से पीएमएल (क्यू) को तो पंजाब का मुख्यमंत्री पद दे कर इमरान ने कहने उनके असंतोष को खत्म कर दिया, पर बलूचिस्तान अवामी पार्टी (5) ने साफ कर दिया है कि वह विपक्ष के साथ है.
जम्हूरी वतन के एकमात्र सदस्य ने भी सरकार का साथ छोड़ने की घोषणा की है. हालांकि सरकारी नेता इन्हें भी रिझाने में लगे हुए हैं. इस सबसे बड़ा खतरा इमरान की अपनी पार्टी के 24 सदस्यों से है जो अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देना चाहते हैं और सरकार से डर कर सिंध हाउस में पनाह लिए हुए हैं. कहा जा रहा है कि इन असंतुष्टों की संख्या बढ़ कर अब 40 के करीब हो गई है.
इन पर तंज करते हुए इमरान ने अपनी कई रैलियों में विपक्ष के हाथ बिक जाने का आरोप लगाया है. प्रधानमंत्री की हालत अब उस जानवर की सी हो गई है जो चारों ओर से घिर जाने पर हर ओर गुर्राता है और बचाव का रास्ता ढूंढता है.
जहां पिछले साल यही इमरान विश्वास प्रस्ताव के मौके पर अपने सांसदों को कह रहे थे कि आप अपने जमीर के हिसाब से निष्पक्ष रह कर वोट करें, अगर मैं नापसंद हूँ तो बेशक मुझे निकाल बाहर करें, वहीं अब इमरान कहते घूम रहे हैं कि मेरे खिलाफ जाने वाले बिक गए हैं.
वे एक सांस में ही भारतीय विदेश नीति की तारीफ करते हैं और फिर वर्तमान संवैधानिक संकट के लिए बाहरी ताकतों (परोक्ष रूप से भारत ) को जिम्मेदार ठहराते हैं. इमरान खान एक ऐसे बल्लेबाज बन गए हैं जिन्हें न केवल विपक्ष की पूरी टीम परेशान कर रही है, उनकी अपनी टीम के लोग भी उन्हें हूट कर रहे हैं और उनकी बैटिंग के खिलाफ अंपायर से शिकायत कर रहे हैं.
सरकार गिरने से बचाने के लिए इमरान ने सर्वोच्च न्यायालय से संविधान की धारा 63 ए (1) की व्याख्या की प्रार्थना की है. हालांकि न्यायालय में सरकार का पक्ष रखते हुए जोर जोर से अटॉर्नी जनरल की बहस चल रही है, पर इस धारा के प्रावधानों को देख कर सामान्य बुद्धि वाला भी आसानी से समझ सकता है कि सरकारी पक्ष ठोस धरातल पर नहीं है.
यह धारा कहती है कि यदि किसी संसदीय दल का सदस्य अपने दल के निर्देशों के विरुद्ध जा कर मतदान करता है तो वह सदन की सदस्यता से वंचित कर दिया जाएगा. इसके लिए पार्टी के नेतृत्व उसे पहले कारण बताओ नोटिस देगा फिर जवाब न आने की दशा में दो दिन बाद स्पीकर को लिख कर सूचित करेगा.
स्पीकर चुनाव आयुक्त को लिखेगा और तब वह सदस्य सदस्यता से वंचित किया जाएगा. स्पष्ट है कि यह सारी प्रक्रिया तभी शुरू होगी जब मतदान का परिणाम आ जाएगा और उससे यह निश्चित हो जाएगा कि उक्त सदस्य ने पार्टी नेतृत्व के निर्देश न मानते हुए कार्य किया है.
स्पष्ट है कि उसका मत तो वैध होगा जिससे सरकार तो गिर ही जाएगी. बाद में भले ही उसके खिलाफ पार्टी नेतृत्व की अनुशंसा पर कार्रवाई की जाती रहे. इन परिस्थितियों में तो यही लगता है कि पीटीआई की सरकार नहीं बच पाएगी.
यदि सरकार सांसदों की गिरफ्तारी या आपातकाल की घोषणा जैसा कोई चरम कदम न उठा ले. किन्तु सम्भावना इसकी नहीं है, क्योंकि पाकिस्तानी सेना का अब इमरान से मोहभंग हो चुका है. वह नवाज शरीफ की पार्टी से फिर से दोस्ती की पेंगें बढ़ा चुकी है.
अब यह विचारणीय है कि अगर सरकार गिरी तो उसके बाद क्या होगा? तीन विकल्प संभावित हैं- पहला नई सरकार बनाने के लिए दूसरी सबसे बड़ी पार्टी यानी पीएमएल ( नवाज) के शहबाज शरीफ को आमंत्रित किया जाए, जो अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाएं.
दूसरा, विकल्प है कि इमरान जाते जाते नेशनल असेंबली को भंग करवा कर मध्यावधि चुनाव कराएं और तीसरा यह कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा सरकार न बना पाने की स्थिति में सेना सत्ता पर काबिज हो कर मार्शल लॉ के द्वारा शासन करे.
पहला विकल्प पूरी तरह संवैधानिक है, लेकिन इसमें समस्या यह है कि विपक्ष भानुमति का कुनबा है जिसमें अलग-अलग विचारधाराओं और निहित स्वार्थों वाले दल हैं जो अधिक समय तक शायद ही साथ रह सकें.
दूसरे विकल्प का इस्तेमाल इमरान धमकी के तौर पर कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि अधिकांश सांसद इतनी जल्दी फिर से जनता के बीच वोट मांगने नहीं जाना चाहेंगे. तीसरा विकल्प फौज के अनुकूल तो होगा, पर लोकतंत्र का स्वाद चख चुकी जनता शायद इतनी जल्दी सेना का शासन न स्वीकार करें.
सम्भावना है कि सेना विपक्ष को सरकार बनाने देगी और कुछ समय तक देखने के बाद जनता को लोकतंत्र से विमुख देख कर स्वयं सत्ता हथिया लेगी.अंत में, भारत पर इस का क्या असर पड़ेगा ?हमारे पड़ोस में एक स्थिर सरकार हमें कई चिंताओं से मुक्त रखती है. हमें यह पता रहता है कि वर्तमान सरकार में किस्से बात करनी है. उसकी नीतियां क्या हैं और उसका झुकाव किस ओर है ?
जिससे हमें अपनी विदेश नीति, और एक हद तक गृह नीति, के उपकरण निर्धारित करने में सहायता मिलती है. यदि पकिस्तान में अस्थिर सरकार हुई तो सीमा पार से आतंकवाद का खतरा बढ़ जाएगा .जो भी हो, अभी तो यह देखना है कि क्रिकेट का यह धुरंधर बल्लेबाज मैच के आखिरी ओवरों में कैसे बैटिंग कर पता है -बोल्ड होता है, रन आउट होता है या नाबाद रहता है?
लेखक पूर्व राजनयिक हैं.