अल्पसंख्यकों के बजट की राजनीति

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 04-02-2024
Minority budget politics
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हरजिंदर

एक फरवरी को संसद में पेश किए गए चुनाव पूर्व अंतरिम बजट पर इस बार कोई ज्यादा चर्चा होनी भी नहीं थी. इस बार तो उतनी चर्चा भी नहीं हुई जितनी कि 2019 के अंतरिम बजट पर हुई थी.

पिछले साल के बजट देखते हुए इस बार सबसे ज्यादा चिंता अल्पसंख्यकों के लिए किए जाने वाले प्रावधानों पर थीं. पिछली बार अल्पसंख्यकों के लिए प्रावधान में 38 फीसदी की बहुत बड़ी कटौती कर दी गई थी.

इस बार ऐसा नहीं हुआ. कुछ लोगों को तो इस बात पर ही संतोष हुआ कि अल्पसंख्यकों के लिए प्रावधान थोड़ा सा बढ़ा दिया गया है.हालांकि यह बढ़त बहुत मामूली है.

2023-24 के बजट में यह प्रावधान 3097.6 करोड़ रुपये का था, जो इस बार बढ़ाकर 3183.2 करोड़ रुपये कर दिया गया. आमतौर पर जब किसी भी मद में प्रावधान इतना बढ़ाया जाता है तो इस बढ़त नहीं मानकर यह माना जाता है कि सरकार ने महंगाई के दबाव को एडजस्ट करने की व्यवस्था भर कर दी है.

वैसे भी अंतरिम बजट में पिछले खर्चों के साथ बहुत ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की जाती. उन्हें थोड़े बहुत बदलाव के साथ एडजस्ट भर कर दिया जाता है. कम से कम इसे सरकार की नीति तो नहीं माना जा सकता. उसके लिए हमें आम चुनाव के बाद आने वाले पूर्ण बजट का इंतजार ही करना होगा.

यह ऐसा साल है जब केंद्र ही नहीं राज्यों के बजट में भी अल्पसंख्यकों के लिए प्रावधान पर सबकी नजर रहेगी. खासकर दक्षिण भारत के राज्यों में जहां पिछले दिनों अल्पसंख्यकों के बजट को लेकर काफी कुछ कहा गया.

तेलंगाना के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान पहले कांग्रेस ने वादा किया था कि वह अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए पांच हजार करोड़ का प्रावधान करेगी. बाद में जब चुनावी वादा लिखित तौर पर आया तो यह आंकड़ा घटकर चार हजार करेाड़ रुपये का हो गया.

उसी समय असद्दुदीन ओवेसी ने कहा था कि तेलंगाना सरकार अल्पसंख्यकों के कल्याण पर छह हजार करोड़ रुपये पहले ही खर्च कर रही है. अब जब कुछ ही दिनों में तेलंगाना का बजट आने वाला है तो सबकी नजर इस पर रहेगी कि सरकार इस मसले पर क्या करती है.

इस मामले में नजर तो पड़ोसी राज्य कर्नाटक के बजट पर भी रहेगी. राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पिछली बार ही अल्पसंख्यकों के प्रावधान को काफी बढ़ाया था.

लेकिन जिन दिनों तेलंगाना में इसे लेकर बड़े-बड़े वादे किए जा रहे थे तो सिद्धारमैया ने कहा था कि उनकी सरकार अल्पसंख्यको के बजट को दस हजार करोड़ रुपये कर देगी.

पिछले बजट में सिद्धारमैया ने जो खास चीजें की थीं उनमें सबसे प्रमुख थी अल्पसंख्यकों की शिक्षा पर ज्यादा जोर देना. उन्होंने उस प्री-मैट्रिक वजीफे को फिर से शुरू किया जो काफी पहले ही बंद किया जा चुका था. इसके अलावा उन्होंने और कईं तरह के वजीफों के लिए प्रावधान बढ़ाए थे.

दरअसल, अल्पसंख्यकों के लिए बजट प्रावधान की चर्चा में अक्सर शिक्षा को ही सबसे ज्यादा नजरअंदाज कर दिया जाता है. तमाम रिपोर्ट यही बताती हैं कि तरह-तरह की शिक्षा योजनाओं और वजीफों के लिए प्रावधान लगातार कम हो रहे हैं.

यहां तक कि केंद्रीय स्पर्धाओं के लिए कोचिंग के प्रावधान भी कम किए गए हैं. जबकि सबसे ज्यादा जरूरत उन्हीं पर ध्यान देने की है. इसके मुकाबले शादी-मुबारक जैसी योजनाएं ज्यादा चर्चा और विवाद में आ जाती हैं.

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )


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