अब्दुल कलाम और एक हिंदुस्तानी मुसलमान की जिंदगी

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 25-07-2021
अब्दुल कलामः सादगी के प्रतीक
अब्दुल कलामः सादगी के प्रतीक

 

साकिब सलीम

वो 2002 की सर्दियाँ थीं। मैं दसवीं क्लास में था और स्कूल की क्विज टीम के तौर पर एक क्विज में हिस्सा ले रहा था। क्विज के पहले राउंड में एक आसान सा दिखने वाला सवाल - एपीजी अब्दुल कलाम का पूरा नाम क्या है? मेरे लिए आसान तो था, लेकिन आम कतई नहीं था। एक भारतीय मुसलमान के तौर पर ये सवाल मुझमें आत्मविश्वास, हिम्मत और हौंसला पैदा करता था।

आज की नस्ल शायद ये बात न समझ सके या कहूं तो पुराने लोग भी ये बात शायद भूल चुके हैं कि भारत रत्न अवुल पाकिर जैनुलआबेदीन अब्दुल कलाम का एक 14 साल के भारतीय मुसलमान बच्चे की जिंदगी में क्या महत्व था। एक भारतीय मुस्लिम बच्चा, जो उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर मुजफ्फरनगर में रहता था, 11 सितंबर 2011 के बाद अचानक से खुद से कई सवाल करने लगा था। टीवी खोलिये, तो अफगानिस्तान की तस्वीरें, बामियान की मूर्तियां, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला और अमरीका का ‘वॉर अगेंस्ट टेरर’। ऐसा मालूम होता था कि दुनिया की सारी परेशानियों का कारण मुसलमान ही हैं। इस बच्चे के आसपास के मुसलमान खुद हर वक्त एक अहसास-ए-कमतरी में डूबे हुए सोचते थे कि मुसलमान कुछ अच्छा नहीं कर सकते।

ये बच्चा जब खुद अपने आसपास नजर दौड़ाता था, तो पाता था कि भारतीय मुसलमानों का हीरो - भारतीय क्रिकेट कप्तान मुहम्मद अजहरुद्दीन मैच फिक्सिंग के चलते देश का विलन ठहरा दिया गया है। गुजरात से आने वाले दंगों की खबर भी इस बच्चे को कोई हौंसला देने वाली न थीं। ऐसे में ये सवाल दिल में उठता था और खुद से पूछता था कि क्या मुसलमान जाहिल और दकियानूस ही हैं। आसपास कोई ऐसी उम्मीद की किरण न थी, जिसका पीछा करते करते ये बच्चा रौशनी की उस मंजिल तक पहुँच सके, जिसको उजाला कहते हैं। इस अंधेरे में कोई चराग तो क्या एक टिमटिमाता हुआ जुगनू भी नजर न आता था। हम किसको रोल मॉडल मानें? किसके जैसा बनना चाहें? कौन है ऐसा, जो सर सय्यद की उस बात पर खरा उतरे कि भारतीय मुसलमान के एक हाथ में कुरान होगी और दूसरे में साइंस?

इसी अंधेरे में उम्मीद की किरण नहीं उभरी, एक सूरज उगा, जिसने मायूसी के अंधेरे को काट कर उस बच्चे के दिल में एक नया सवेरा कर दिया। जुलाई 2002 में कलाम देश के राष्ट्रपति बने। कलाम कोई आम राजनेता नहीं थे। वो एक वैज्ञानिक थे और मुल्क के मिसाइल और न्यूक्लियर प्रोग्राम के लीडर थे। भारत में कोई मुसलमान गरीब घर से आकर, अपनी मेहनत से, अपने धर्म का पालन करते हुए, पढ़-लिख कर, देश के सबसे ऊँचे ओहदे तक पहुँच सकता है, इसका वो जीता-जागता सबूत थे। कलाम वो तलवार थी, जिसने उस बच्चे के दिल से इस मिथक को काट दिया कि मुसलमान पढ़-लिख कर वैज्ञानिक नहीं बनते। कलाम एक वैज्ञानिक, राष्ट्रपति या नेता नहीं हैं, वो एक सबूत हैं कि ईमानदारी आपको कहां से कहां ले जाती है।

बात आती है बच्चे की। इस बच्चे को एक रोल मॉडल मिल गया था। उसने कहीं पढ़ा कि कलाम एक नमाजी मुसलमान हैं, भारतीय साहित्य की समझ भी रखते हैं और मॉडर्न साइंस में भी महारत हासिल है। बच्चा आज तक विचलित था कि भारतीयता, इस्लाम और मॉडर्न विचार एक साथ कैसे चलेंगे। अब उसको एक जीता-जागता रोल मॉडल मिल गया था। आप नमाज पढ़ने के साथ, संस्कृत साहित्य भी पढ़ सकते हैं और मॉडर्न साइंस भी, ये इस बच्चे को समझ आ गया था।

जिंदगी में और भी बहुत से लोगों का असर इस बच्चे पर हुआ, लेकिन ये कहना गलत न होगा कि इस बच्चे में आत्मविश्वास का पहला बीज कलाम साहब से पड़ा, जिसकी कोंपलें बाद में अलग-अलग प्रभावों से फूट कर निकलीं।

वो बच्चा आज एक लेखक है, जिसका लेख आप पढ़ रहे हैं। बहुत से लोग आज ये पूछते हैं कि कलाम कौन थे या उनकी अहमियत क्या है। उनके लिए बता दूँ, एक पूरी पीढ़ी को कलाम ने हौंसला दिया, हिम्मत दी, आत्मविश्वास दिया और रोल मॉडल दिया। हम जैसे लाखों छोटे-छोटे पौधे असल में उस छतनारे पेड़ के नीचे ही फले-फूले हैं, जिसका नाम कलाम था।