यह नए भारत के निर्माण का वक्त है

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 12-08-2022
यह नए भारत के निर्माण का वक्त है
यह नए भारत के निर्माण का वक्त है

 

आतिर खान

अब से कुछ दिनों में, भारत आजादी के75 साल का जश्न मनाएगा.यह एक महत्वपूर्ण अवसर है कि भारतीय अपने देश को एक नए नजरिए से देखें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 2017के लाल किले के भाषण में एक 'नए भारत' के बारे में बात की, जिसमें समान अवसरों, जातिवाद की जंजीरों और सांप्रदायिक तनाव से मुक्त देश की बात कही गई थी.

एक ऐसा देश जो भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और आतंकवाद की अपनी स्थानीय समस्याओं को सफलतापूर्वक हल करता है, एक ऐसा देश जहां हर महिला, पुरुष और बच्चे को एक सशक्त और सम्मानजनक जीवन स्तर दिया जाएगा.

इस भाषण को नेहरू के नियति के साथ साक्षात्कार के बाद किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का दूसरा सबसे बड़ा भाषण बताया गया था. कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि अन्य प्रधानमंत्रियों द्वारा बीच में दिए गए भाषण कम महत्वपूर्ण थे.

मुद्दा यह है कि जब भारत स्वतंत्रता के 75वर्ष मनाता है तो इस संदर्भ में यह दो भाषण विशिष्ट हैं और आज अन्य की तुलना में अधिक प्रासंगिक हैं. और तब और, जब भारत एक अलग तरह की राजनीति से दरपेश है.

जैसा कि भारतीय इस 15अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी के भाषण की प्रतीक्षा कर रहे हैं,और उसे लेकर हमें आशावादी होना चाहिए. वह एक महान राजनेता हैं, जिनके भाषण शक्तिशाली होते हैं और लंबे समय तक लोगों के जेहन में बने रहते हैं.

भारत एक ऐसा देश रहा है, जहां असहमति एक नियमित विशेषता रही है, जो विभिन्न रूपों और विश्वासों में प्रकट हुई है, और फिर भी यह समय की कसौटी पर खरा उतरते हुए अपने विशाल लोकतंत्र के साथ मजबूत बना हुआ है, जबकि दुनिया के अन्य लोकतंत्र मुरझा गए हैं.

ऐसे ऐतिहासिक क्षण थे जब भारत के चरित्र को हमेशा के लिए लोकतंत्र से निरंकुशता में बदल दिया जा सकता था. लेकिन इसके नेताओं ने इसके संविधान में निहित मूल्यों में दृढ़ता से विश्वास किया है. इसलिए उसके पड़ोसियों के रूप में उसका भाग्य नहीं है.

इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया, वह निरंकुश शक्तियों के साथ आगे बढ़ सकती थीं लेकिन निश्चित रूप से उनकी अंतरात्मा ने उन्हें बेलगाम शक्तियों के साथ आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी, जो आम आदमी की स्वतंत्रता को रौंद रही थीं. इसलिए, 1977में उन्होंने फैसला किया कि भारत में लोकतंत्र ही एकमात्र बंधन है जो इसे एक साथ रखता है, और चुनावों की घोषणा की गई.

बुद्धिजीवियों का मत है कि एक राष्ट्र की अवधारणा हमारे देश में अंतर्निहित थी. भारतवर्ष की अवधारणा ऋग्वेद में मौजूद है, जो हिमालय से समुद्र तक फैली भूमि है, जिसमें भारत की मूल क्षेत्रीय धारणा है.

मानव अधिकारों और नागरिकता की एक निश्चित अवधारणा के आधार पर एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में भारत का विचार, कानून की उचित प्रक्रिया और कानून के समक्ष समानता द्वारा समर्थित, अपेक्षाकृत हाल ही में और आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक है. भारत को गांधी की भूमि के रूप में जाना जाता है.

आधुनिक भारत में, हमारे पास मुस्लिम लीग के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के विपरीत अखंड मुक्त भारत के लिए संघर्ष का नेतृत्व करने वाले प्रमुख उलेमाओं का साथ का इतिहास है. जबकि लीग कोअंग्रेजों ने जबरदस्ती समर्थन दिया था. इस प्रकार, इन उलेमा जैसे विविध लोगों ने देश को ब्रिटिश राज की बेड़ियों से मुक्त कराने में एक बड़ी भूमिका निभाई.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसके अस्तित्व में आने से पहले हमारे पूर्वजों ने बड़ी कुर्बानियां दी थीं, कुछ ने तो अपने जीवन को भी ताकि हम एक स्वतंत्र भारत में सांस ले सकें, कानून के दायरे में जो कुछ भी हम करना चाहते हैं वह करें और एक ऐसा जीवन जिएं जिसे हम जीने के लिए चुनते हैं.

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण भारी खून-खराबा हुआ, जिसके दाग आज भी हम साफ नहीं कर पा रहे हैं. यह धर्म के आधार पर भारत के विभाजन का भूत है जिसने सांप्रदायिक विभाजन के बीज बोए. यह शायद आज एक सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है और भारतीय राजनीति का केंद्र चरण बन गया है.

आज के मतदाता आकांक्षी और वैचारिक दोनों हैं. राजनेताओं को उस विचारधारा से सावधान रहने की जरूरत है जो वे अपने मतदाताओं को देते हैं.

यह अच्छा है कि सरकार ने 14अगस्त को विभाजन विभीषिका दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है, जब देश मानव जाति की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक को याद करेगा. ठीक है, जब भीषण अतीत के कृत्यों को याद किया जाता है, तो सबक मिलता है, इस देश का एक और विभाजन न होने दें, किसी भी कीमत पर नहीं. उस दिन सभी भारतीयों को एक संकल्प लेना चाहिए.

पीएम मोदी ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं, नेतृत्व की स्थिति में अन्य लोगों को समय रहते संकेत लेना चाहिए. उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि राष्ट्रीय हितों को उनकी राजनीतिक मजबूरियों का स्थान लेना चाहिए.

मुसलमानों सहित सभी भारतीयों को यह समझने की जरूरत है कि वे किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में रहने से बेहतर हैं. याद रखें कि कोई वास्तविक यूटोपिया नहीं है. भारत कई संस्कृतियों और एक राष्ट्र में उनके समामेलन का देश है.

भारत संस्कृतियों के गुलदस्ते के रूप में जाना जाता है, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख और बौद्ध सभी अपनी आध्यात्मिक और धार्मिक प्रथाओं के लिए अगरबत्ती का उपयोग करते हैं. विविधता भारत की ताकत है और आधिपत्य इसका स्वभाव नहीं हो सकता. यहाँ तक कि भारत में आए विभिन्न धर्मों का भी किसी न किसी रूप में भारतीयकरण हो गया.

कुछ वर्षों का ध्रुवीकरण इतिहास की अमिट स्याही को नहीं मिटा सकता, इस तथ्य से समृद्ध कि भारत हमेशा एक समावेशी देश रहा है. भारत को आजादी मिलने से पहले ही सांप्रदायिक दंगे हो गए थे , लेकिन विभाजन के बाद आवृत्ति में वृद्धि हुई.

संविधान की प्रस्तावना दृष्टि की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति है. भारतीय गणतंत्र की मुख्य विशेषताएं और न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की इसकी अवधारणा, दृढ़ता से घोषणा करती है कि कानून राष्ट्र का आधार होगा.

आइए हम सांप्रदायिक दंगों को कानूनी दृष्टिकोण से देखना सीखें न कि हमेशा सांप्रदायिक चश्मे से. एक परिवार के भीतर मतभेद होना लाजिमी है, अगर अलग-अलग समुदाय एक साथ रहते हैं तो जाहिर है कि संघर्ष होना तय है. हमें उनका सामना करना और उनका समाधान करना सीखना होगा. इसके लिए इससे अच्छा समय नहीं हो सकता.

महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग कानून बनाते हैं और जो उन्हें लागू करते हैं, उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे पहले अपने या अपने समुदाय के हितों से पहले भारत के हितों की रक्षा कर रहे हैं.

भारत महान अवसर प्रदान करता है. वह जीवन जीने की अत्यधिक स्वतंत्रता जिसे लोग नेतृत्व करना चाहते हैं, न कि वह जो सम्राट या राज्य चाहता है कि वह नेतृत्व करे. वे धार्मिक, आध्यात्मिक या नास्तिक भी हो सकते हैं. उन्हें जो अच्छा लगे वो करें लेकिन अपने साथी नागरिकों के जीवन को किसी भी तरह से परेशान न करें.

हर हाथ में राष्ट्रीय ध्वज और हर घर से फहराना अच्छी बात है. लेकिन सिर्फ झंडा फहराने से कोई अच्छा नागरिक नहीं बन जाता. हमें अपने राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना सीखना होगा. देशभक्ति का भावनात्मक विस्फोट भी जरूरी है लेकिन राष्ट्र केवल भावनाओं पर नहीं चलते हैं. भारत को प्रत्येक नागरिक के लिए एक सतत भावनात्मक लगाव की आवश्यकता है.

सच्चा आनंद तब अनुभव किया जा सकता है जब विशेषाधिकार प्राप्त भारतीय अपना स्वतंत्रता दिवस वंचितों के साथ बिताते हैं.

एक अनाथालय, एक वरिष्ठ नागरिक के घर पर झंडा फहराएं और वहां के लोगों के साथ समय बिताएं, उनके चेहरे पर मुस्कान लाएं.

राष्ट्र महान तब बनते हैं जब उनके सभी लोग भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ जाते हैं. 2017में जब प्रधानमंत्री ने लाल किले से बात की तो उन्होंने कहा कि अमीर और गरीब के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.

भारत को आज अपने नेतृत्व पर भरोसा करने की जरूरत है और नेताओं को लोगों का विश्वास बनाए रखने की जरूरत है. एक राष्ट्र के रूप में इसे एक ऐसा देश बनने की जरूरत है जहां गरीबों को ढूंढना मुश्किल हो. एक ऐसा देश जहां ईमानदार व्यापारियों को पुरस्कृत किया जाता है. व्यवसायियों को उनकी कड़ी मेहनत और निवेश के लिए लाभ कमाने के लिए निराश नहीं किया जाता है और उन्हें बिना किसी अपराधबोध के अपने पुरस्कारों का आनंद लेने की अनुमति दी जाती है.

हम हमेशा इस तथ्य को खारिज करते रहे हैं कि निजी व्यवसाय अर्थव्यवस्था की जीवनदायिनी है. मेक इन इंडिया और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस एक बड़ी सफलता की कहानी बन गई है. इसे एक ऐसा देश बनने की जरूरत है जो तेजी से ढांचागत विकास देखे.

बेईमान व्यापारियों को कड़ी सजा दी जाती है. लेकिन वास्तविक व्यावसायिक विफलताओं और बेईमान कार्यों के बीच एक स्पष्ट अंतर किया जाना चाहिए. यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि हम उद्यमिता को प्रोत्साहित करें और इसे हतोत्साहित न करें. सकारात्मक व्यावसायिक भावना लाने के लिए सरकारों और कानून लागू करने वाली एजेंसियों द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना चाहिए.

जहां एक ओर व्यापारियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाना चाहिए, वहीं गरीबों को रोजगार के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करें और कृपया भारत को मुफ्त का देश न बनाएं अन्यथा हम अपने पड़ोसी देशों की तरह हो जाएंगे.

आज राय बनाने पर सोशल मीडिया का बहुत प्रभाव है. ऐसे प्लेटफ़ॉर्म के उपयोगकर्ताओं को अपने द्वारा साझा की जाने वाली सामग्री को स्व-विनियमित करना चाहिए और उन चीज़ों से दूर रहना चाहिए जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभाजन, वैमनस्य, घृणा और कट्टरता को बढ़ावा दे सकती हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश की रक्षा करने वाले आज भी हमारे लिए कई बलिदान कर रहे हैं.

जब भारतीय विदेश यात्रा करते हैं, उनकी पहचान उनके पासपोर्ट से होती है, तो देश के भीतर उनकी पहचान उनकी जाति और धर्म से क्यों की जाती है? भारत सपनों का गंतव्य तभी बनेगा जब सभी भारतीय इसके मूल्यों और इसके संविधान का सम्मान करेंगे.

हमें एक ऐसे नए भारत की ओर देखना चाहिए जो बहुलवाद का जश्न मनाए, एक ऐसा विचार जिसकी पुष्टि इतिहास ने की है. भारत को एक बड़ा राष्ट्र बनाने के लिए समावेशी दृष्टि को समावेशी विकास द्वारा पूरक बनाया जाना चाहिए.