ईरान अगर इजरायल पर हमला करेगा, तो भारत का क्या रुख होगा ?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 13-04-2024
Benjamin Netanyahu and Ayatollah Khamenei
Benjamin Netanyahu and Ayatollah Khamenei

 

राकेश चौरासिया

ईरान और इजरायल चिर शत्रु हैं. दोनों देशों में तनातनी इस मुहाने पर आ गई है कि सैन्य विशेषज्ञ इस बात की आशंका जता रहे हैं कि ईरान अब कभी भी इजरायल पर हमला कर सकता है. इस खतरे की गंभीरता इस बात से आंकी जा सकती है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से व्हाइट हाउस में जब पत्रकारों ने शुक्रवार को पूछा कि इजरायल पर ईरान कब हमला कर सकता है, तो उन्होंने कहा, ‘‘कोई पक्की जानकारी नहीं है, लेकिन जल्द होने की संभावना है.’’ बाइडेन ने आगे कहा कि अमेरिका इजरायल की रक्षा के लिए ‘समर्पित’ है. हम इजरायल का समर्थन करेंगे, हम इजरायल की रक्षा में मदद करेंगे और ईरान सफल नहीं होगा.’’

पिछले हफ्ते सीरिया में ईरानी राजनयिक परिसर पर इजरायल के हमले के बाद ईरान की ओर से इजरायल को बड़े हमले का खतरा बना हुआ है. इस इजरायली हमले में तीन ईरानी जनरलों की मौत हो गई थी. ईरान ने कहा कि ‘वह इजरायल को इसकी सजा जरूर देगा.’

जो परिदृश्य बन रहा है, उसमें अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस सहित कई अन्य यूरोपीय देश इजरायल के समर्थन में आएंगे. दूसरी तरफ ईरान को रूस और चीन का सक्रिय सहयोग मिल सकता है. उधर, कतर और कुवैत ने अमेरिका से कहा है कि ‘‘वे ईरान पर हमला करने के लिए अपने क्षेत्र के ठिकानों का उपयोग नहीं करने देंगे.’’ इस तरह खाड़ी देश ईरान से अगर मतभेद भी हों, तो भी वे इस युद्ध से दूरी बनाने की कोशिश कर सकते हैं.

ऐसे में सवाल यह है कि यदि ईरान बदले के तौर पर इजरायल पर हमला करता है, तो भारत का क्या रुख होगा, क्योंकि भारत के इजरायल से बहुत उपयोगी सामरिक संबंध हैं, तो ईरान से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक रिश्ते हैं. ऐसे में भारत सुपरिचित तटस्थता की नीति को चुनना चाहेगा.

भारत अब तक तटस्थता की नीति पर चलता रहा है. गाजा-इजरायल संकट में भारत ने यही रुख अपनाया. भारत ने फिलस्तीन समस्या पर अपने पुराने नजरिये ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ को स्पष्टता से रखने में कोई हिचक नहीं दिखाई. साथ ही इजरायल पर हुए आतंकी हमले की निंदा करते हुए दुनिया में ‘अच्छे’ या ‘बुरे’ यानी किसी भी तरह के आतंकवाद के खिलाफ पुरजोर मजम्मत की है.

इसी तरह, रूस-यूक्रेन युद्ध में तमाम दबावों को दरकिनार करते हुए भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट स्टैंड लिया. पीएम मोदी ने कई मौकों पर स्पष्ट कहा, ‘यह युद्ध का युग नहीं है.’ पीएम मोदी का यह रुख भारतीय दर्शन से मेल खाता है. पांच हजार पहले हुए ‘महाभारत’ से पहले प्रभु श्रीकृष्ण ने मानवता को संदेश दिया कि युद्ध अंतिम उपाय होना चाहिए. युद्ध को टालने का प्रत्येक संभाव्य उपाय किया जाना चाहिए.

आसन्न खतरे में भी भारत किसी भी चाप से अप्रभावित रहकर दृढ़ता से तटस्थता की नीति अपना सकता हैं, जैसा कि रूस-यूक्रेन युद्ध, साउथ चाइना सी और अन्य अवसरों पर देखने को मिला है. 

भारत की तटस्थता नीति

भारत की तटस्थता की नीति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपनाई गई एक विदेश नीति है, जिसे गुटनिरपेक्षता नीति के नाम से भी जाना जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में किसी भी सैन्य गुट से जुड़ने से बचना और सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना है.

इस नीति के मुख्य सिद्धांत इस तरह हैंः

  • भारत सभी देशों की स्वतंत्रता और संप्रभुता का सम्मान करता है, चाहे उनकी राजनीतिक व्यवस्था या विचारधारा कुछ भी हो.
  • भारत युद्ध को हिंसा के अलावा अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने का साधन नहीं मानता है.
  • भारत किसी भी सैन्य गुट या गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल नहीं होता है.
  • भारत बहुपक्षवाद और अंतरराष्ट्रीय कानून के मजबूत होने का समर्थन करता है.
  • भारत सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने और बनाए रखने का प्रयास करता है.

युद्ध में भारत की तटस्थता की नीति की कई आलोचनाएं भी हुई हैं. कुछ लोगों का तर्क है कि यह नीति भारत को अंतरराष्ट्रीय मामलों में कम प्रभावशाली बनाती है. हालांकि, भारत सरकार का मानना है कि तटस्थता की नीति देश के दीर्घकालिक हितों में है. यह नीति भारत को अंतरराष्ट्रीय संघर्षों से बचने और सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने में मदद करती है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत की तटस्थता की नीति गतिशील है और समय के साथ विकसित हुई है. वैश्विक परिदृश्य में बदलाव के साथ, भारत अपनी नीति को समायोजित करना जारी रखेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह देश के सर्वोत्तम हितों में है.

भारत की तटस्थता के कुछ महत्वपूर्ण पहलू

  • भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध में दोनों पक्षों की निंदा करने से इनकार कर दिया है और दोनों के बीच शांति वार्ता का आह्वान किया है. 
  • भारत ने चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता में तटस्थ रहने की नीति अपनाई है. भारत दोनों देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाए रखता है, लेकिन किसी भी गुट के साथ औपचारिक रूप से गठबंधन नहीं करता है.
  • भारत अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. भारत ने ‘क्वाड’ (चतुष्कोणीय सुरक्षा संवाद) जैसे बहुपक्षीय समूहों के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत किया है, जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं.

इस तरह, भारत की तटस्थता की नीति एक जटिल और बहुआयामी नीति है. यह नीति देश के ऐतिहासिक अनुभवों, मूल्यों और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है. भारत सरकार का मानना है कि यह नीति देश को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में मदद करती है. यह नीति आलोचनाओं से मुक्त नहीं है, लेकिन यह भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनी हुई है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

 

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