हुमायूं कबीर के लिए अपनी ही सरकार को फंसाने की मजबूरी

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 31-07-2023
हुमायूं कबीर के लिएअपनी ही सरकार को फंसाने की मजबूरी
हुमायूं कबीर के लिएअपनी ही सरकार को फंसाने की मजबूरी

 

 
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हरजिंदर

राजनेता अक्सर जब फंस जाते हैं तो किसी बड़े मकसद को उठा लेते हैं. ऐसे में अक्सर वे धार्मिक समुदायों के मुद्दों को हवा देने लगते हैं. पश्चिम बंगाल में इन दिनों यही हो रहा है.शुक्रवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के विधायक हुमायूं कबीर ने यह मांग की समाज कल्याण योजना लक्ष्मीर भंडार के तहत राज्य की गरीब महिलाओं को जो हर महीने 500 रुपये की धनराशि दी जाती है, उसमें मुस्लिम महिलाओं के लिए अलग प्रावधान किया जाए.

उन्हें एक हजार रुपये दिए जाएं. उन्होंने किसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि बाकी की तुलना में मुस्लिम महिलाओं की स्थिति काफी खराब है. उन्हें दुगनी धनराशि मिलनी चाहिए. सरकार की इस योजना में अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं को एक हजार रुपये की धनराशि ही मिलती है. हुमायूं कबीर चाहते थे कि मुस्लिम महिलाओं को भी यही दर्जा दिया जाए.
 
तर्क में भले ही दम हो, लेकिन यह कह कर हुमायूं कबीर ने अपनी ही पार्टी की सरकार को परेशानी में डाल दिया. इस मांग पर राज्यमंत्री शशि पांजा को कहना पड़ा कि यह धनराशि धार्मिक आधार पर नहीं दी जाती है. अगर हम राज्य के पिछले दो चुनावों को देखें तो वहां अल्पसंख्य समुदाय की पहली पसंद तृणमूल कांग्रेस ही रही है.
 
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ऐसे में सरकार राज्य के अल्पसंख्यकों को नाराज नहीं करना चाहेगी. राज्य के पूर्व मंत्री हुमायूं कबीर राजनीति में आने से पहले आईपीएस अधिकारी थे. मांग का राजनीतिक अर्थ क्या होता है वे इसे अच्छी तरह समझते होंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे बयानों का दुरुपयोग बहुत आसान हो जाता है.
 
अगर हम याद करें तो प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में उनका एक भाषण काफी चर्चा में आया था. इसमें उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है. लोकतंत्र के जो मानक पूरी दुनिया में हैं उसके हिसाब से उन्होंनें कोई गलत बात नहीं कही थी.
 
लोकतंत्र के बारे में माना जाता है कि इसमें सरकार को बहुसंख्यक जनता चुनती है और उसका पहला कर्तव्य होता है कि वह अल्पसंख्यकों की रक्षा करे.लेकिन हम देखतें हैं कि उनके इस बयान का इस्तेमाल उनके और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ किया गया.
 
आज भी कांग्रेस के खिलाफ निशान साधने वाले कुछ नेता इसका जिक्र करते हैं.  हुमायूं कबीर इस बात को नहीं समझते होंगे, ऐसा नहीं माना जा सकता. फिर ऐसा क्या हुआ कि वे अपनी ही सरकार को परेशानी में डाल रहे हैं.
 
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पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हुए थे. इस चुनाव को तृणमूल कांग्रेस ने भारी बहुमत के साथ जीता. लेकिन पूरे देश में इन नतीजों से ज्यादा चर्चा उस चुनाव के दौरान हुई भारी हिंसा की हुई जिसमें कईं लोगों की जान चली गई. इस चर्चा के कारण राज्य सरकार पर कार्रवाई करने का दबाव था.
 
इस क्रम में पुलिस ने जो मामले दर्ज किए हैं, उनमें एक मामला हुमायूं कबीर के खिलाफ भी है. उन पर पंचायत चुनाव के दौरान एक मंत्री को जान से मार देने की धमकी देने का आरोप है. खुद फंस गए इस नेता ने अब अपनी सरकार को ही परेशानी में डाल दिया है. मुमकिन है कि वे इस मुद्दे में ही अपने लिए कोई भविष्य तलाश रहे हों.
 
 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )