उच्च शिक्षित आतंकवादी: मिथक, सच्चाई और भारत के लिए सीख

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-11-2025
Highly Educated Terrorists: Myths, Truths and Lessons for India
Highly Educated Terrorists: Myths, Truths and Lessons for India

 

dसाकिब सलीम

“बंदूकों से आप आतंकवादियों को मार सकते हैं, लेकिन शिक्षा से आप आतंकवाद को मार सकते हैं।” मलाला यूसुफ़ज़ई का यह लोकप्रिय उद्धरण अक्सर इस धारणा को मजबूत करता है कि गरीबी और कम शिक्षा ही आतंकवाद की जड़ हैं। लेकिन दिल्ली में हुए हालिया धमाके के बाद गिरफ्तार हुए डॉक्टरों और अन्य उच्च शिक्षित लोगों ने इस मान्यता को गंभीर चुनौती दी है। आमतौर पर माना जाता है कि आतंकवाद में वही लोग फंसते हैं जो कम पढ़े-लिखे हों या मदरसे की शिक्षा पाए हों, लेकिन इतिहास और शोध दोनों इस धारणा का खंडन करते हैं।

नेशनल ब्यूरो ऑफ़ इकोनॉमिक रिसर्च के एक अध्ययन में एलन क्रूगर और जित्का मालेकोवा ने पाया कि आतंकवादी संगठन कम शिक्षित नहीं, बल्कि उच्च शिक्षित व्यक्तियों को अधिक तरजीह देते हैं, यहाँ तक कि आत्मघाती हमलों के लिए भी। विदेशी माहौल में ऑपरेशन चलाने और मुख्यधारा की आबादी में घुलने-मिलने के लिए जो कौशल चाहिए, वह अक्सर उच्च शिक्षित और मध्यम या उच्च वर्ग के लोगों में अधिक मिलता है।

डिएगो गैम्बेटा और स्टीफ़न हर्टोग अपनी पुस्तक ‘इंजीनियर्स ऑफ़ जिहाद’ में लिखते हैं कि उच्च शिक्षा अक्सर सामाजिक सहमति नहीं बनाती, बल्कि आर्थिक या सामाजिक तनाव बढ़ने पर वही वर्ग सबसे अधिक बेचैनी और असंतोष का अनुभव करता है, और ऐसे लोग कट्टर विचारों की ओर जल्दी झुक सकते हैं।

1970 के दशक में इस्लामी कट्टरवादियों की पहली पीढ़ी बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षित युवाओं से भरी हुई थी। इसके बावजूद दुनिया की कई सरकारें आतंकवाद को समाप्त करने के लिए शिक्षा और आर्थिक सहायता को बढ़ाने पर जोर देती हैं, जबकि शोध बताता है कि जब उच्च शिक्षित व्यक्ति उग्रवाद अपनाते हैं, तो वे अधिक संगठित, अधिक घातक और अधिक प्रभावी साबित होते हैं।

डॉक्टरों की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता भी कोई नई बात नहीं है। 2007 में लंदन और ग्लासगो में हुए बम विस्फोटों के बाद गिरफ्तार आठ संदिग्धों में से सात डॉक्टर और एक मेडिकल तकनीशियन था। मुख्य आरोपी बिलाल अब्दुल्ला डॉक्टर था और कफील अहमद भारतीय इंजीनियर। इतिहास में भी अनेक आतंकवादी नेताओं की पृष्ठभूमि उच्च शिक्षा से जुड़ी रही है—अयमान अल-ज़वाहिरी, जॉर्ज हबाश और फती शिकाकी—all डॉक्टर।

नाज़ी जर्मनी के नरसंहार शिविरों में भी डॉक्टरों ने “विज्ञान” के नाम पर मानवता-विरोधी प्रयोगों और हत्याओं को वैधता दी। जापान के टोक्यो मेट्रो सरीन गैस हमले के पीछे भी एक डॉक्टर का हाथ था। खुद ओसामा बिन लादेन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुका था और ऑक्सफोर्ड के संपर्क में रहा था। वाल्टर लैकर लिखते हैं कि आधुनिक आतंकवादी, खासकर वे जो अपने देश से बाहर सक्रिय होते हैं, उन्हें उच्च शिक्षा, तकनीकी दक्षता, भाषाई कौशल और विदेशी समाज में स्वयं को छिपाने की क्षमता की जरूरत होती है।

9/11 हमलों में शामिल लोग इसी श्रेणी के थे—अच्छी शिक्षा पाए हुए, यूरोप-अमेरिका में रहने और पढ़ने वाले। कई अध्ययन बताते हैं कि डॉक्टर और इंजीनियर न केवल इस्लामी उग्रवाद बल्कि दक्षिणपंथी कट्टरवाद की ओर भी अपेक्षाकृत अधिक झुकते हैं।

गैम्बेटा और हर्टोग लिखते हैं कि कई इस्लामी बुद्धिजीवी विज्ञान को “ईश्वर की तर्कसंगतता” का प्रतिबिंब मानते हैं, और अल-कायदा के भर्ती मैनुअल में जिन गुणों का उल्लेख है—अनुशासन, आज्ञाकारिता, बुद्धिमत्ता, विवेक, विश्लेषण क्षमता—वे तकनीकी पृष्ठभूमि वाले युवाओं में अधिक मिलते हैं। किंग्स कॉलेज लंदन के प्रोफेसर डॉ. वेस्ली बताते हैं कि परोपकार, समाज सुधार और ‘दुनिया को बेहतर बनाने’ की इच्छा कभी-कभी विकृत होकर हिंसा का रूप ले लेती है।

जो व्यक्ति एक मरीज का इलाज करना चाहता है, वही आदर्शवाद के भ्रम में पूरी दुनिया को “ठीक करने” के नाम पर हिंसा को उचित ठहराने लगता है। नाज़ी डॉक्टरों ने “बीमार” नस्लों को खत्म करने को चिकित्सा भाषा में जायज़ ठहराया।

अल-ज़वाहिरी ने भी यही विश्वास रखा कि उसकी हिंसा इस्लामी दुनिया के “दीर्घकालिक हित” में है। भारत सहित पूरी दुनिया आज ऐसे गुमराह शिक्षित आतंकवादियों के ख़तरे का सामना कर रही है, जो अच्छे परिवारों, मजबूत आर्थिक स्थिति और उच्च शिक्षा के बावजूद हिंसा के रास्ते पर चल पड़ते हैं। यह मिथक तोड़ने का समय है कि आतंकवाद केवल कम शिक्षित या मदरसे-शिक्षित युवाओं में पनपता है।

लश्कर-ए-तैयबा, अल-कायदा और अन्य संगठनों में शीर्ष भर्तीकर्ता और रणनीतिकार अक्सर पश्चिमी शिक्षित, तकनीकी रूप से दक्ष और सम्पन्न वर्ग से आते रहे हैं। भारत को आतंकवाद के खिलाफ नई नीति की जरूरत है, जिसके केंद्र में केवल तकनीकी शिक्षा नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी, लोकतांत्रिक और बहुलतावादी मूल्यों पर आधारित नागरिक-सचेतना हो।

इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में ऐसी शिक्षा को बढ़ावा देना होगा जो युवाओं को विविधता में रहने, असहमति को लोकतांत्रिक ढंग से व्यक्त करने और समाज के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाने की दिशा में प्रशिक्षित करे। खतरा अनपढ़ों से नहीं, बल्कि ग़लत दिशा में मुड़ चुके शिक्षितों से है—और इसे समझकर ही भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।