इस्लाम में सहिष्णुता: डॉ. ज़ाकिर हुसैन की विरासत और शांति का संदेश

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-11-2025
Tolerance in Islam: Dr. Zakir Hussain's Legacy and Message of Peace
Tolerance in Islam: Dr. Zakir Hussain's Legacy and Message of Peace

 

डॉ. ज़फ़र दारिक क़ासमी

भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन सहिष्णुता और धैर्य के प्रतीक थे। उन्होंने अपने जीवन भर दया, शांति और विनम्रता को व्यवहार में उतारा। अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस के अवसर पर उनके व्यक्तित्व और उनके संदेश को याद करना बेहद महत्वपूर्ण है। जब वे राष्ट्रपति चुने गए, तो कुछ लोगों ने उन पर आरोप लगाए और आलोचना की, लेकिन उन्होंने कभी कठोर प्रतिक्रिया नहीं दी। एक बार एक अख़बार ने उनके बारे में गलत बातें लिखीं, तो उनके साथियों ने जवाब देने का सुझाव दिया, मगर डॉ. ज़ाकिर हुसैन मुस्कुराए और बोले कि समय खुद सच दिखा देता है, हमें शोर मचाने की ज़रूरत नहीं होती। यह सरल-सा वाक्य उनकी बुद्धिमत्ता, सहनशीलता और गहरी समझ को दर्शाता है।

हर साल 16 नवंबर को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस हमें याद दिलाता है कि मानवाधिकारों, विविध संस्कृति और शांतिपूर्ण समाज के लिए सहिष्णुता कितनी आवश्यक है। दुनिया के कई हिस्सों में नफ़रत, विभाजन और उग्रवाद बढ़ रहे हैं, ऐसे में मतभेदों के बजाय संवाद को चुनना और आपसी सम्मान बढ़ाना इस दिन का सबसे बड़ा संदेश है।

यूनESCO ने 1995 में इस दिन की शुरुआत इसलिए की थी ताकि विभिन्न समुदायों के बीच भरोसा और सम्मान को मज़बूत किया जा सके। सहिष्णुता का अर्थ सिर्फ़ दूसरों को सहन करना नहीं, बल्कि एक नैतिक मूल्य के रूप में उन्हें स्वीकार करना, समझना और उनकी गरिमा को पहचानना है।

इस्लाम में सहिष्णुता की जड़ें बेहद गहरी हैं। चौदह सदियों पहले इस्लाम ने जिन सिद्धांतों को पेश किया, वे आज भी इंसान को नैतिकता, सम्मान और सद्भाव की राह दिखाते हैं। इस्लाम सिखाता है कि दुनिया में मौजूद विविध आस्थाएँ और संस्कृतियाँ अल्लाह की रचना हैं, इसलिए उनका सम्मान करना इंसानी परिपक्वता की निशानी है।

किसी भी समाज में विचारों का मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन असहमति को नफ़रत में बदल देना समस्या पैदा करता है। आज जब धार्मिक उग्रवाद और पूर्वाग्रह समाजों को बाँट रहे हैं, इस्लाम की सहिष्णुता की शिक्षा एक उपचार की तरह सामने आती है।

कुरआन स्पष्ट रूप से बताता है कि धर्म में कोई ज़बरदस्ती नहीं होनी चाहिए और हर इंसान को अपनी राह चुनने की स्वतंत्रता है। दूसरों के देवताओं और धार्मिक प्रतीकों का अपमान न करने का निर्देश भी इसलिए दिया गया है ताकि समाज में अनावश्यक तनाव न फैले। इस्लाम सभी इंसानों को सम्मान देने का संदेश देता है—चाहे उनका धर्म, रंग या पृष्ठभूमि कुछ भी हो।

पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का जीवन सहिष्णुता का सबसे व्यावहारिक उदाहरण है। उन्होंने हमेशा विभिन्न धर्मों वाले समुदायों के साथ न्याय, दया और सम्मान का व्यवहार किया।

मदीना पहुँचने पर उन्होंने जो चार्टर बनाया, उसमें यहूदियों, ईसाइयों और अन्य समुदायों के अधिकारों को बराबर मान्यता दी गई। नज़रान से आए ईसाइयों को मस्जिद में अपनी प्रार्थना करने की अनुमति देना इस बात का प्रमाण है कि धार्मिक स्वतंत्रता इस्लाम की नींव में शामिल है। पैगंबर का आचरण यह सिखाता है कि मतभेदों के बीच भी दूसरों के अधिकारों, उनकी सुरक्षा और सम्मान का ध्यान रखना चाहिए।

आज दुनिया सांप्रदायिक तनाव, नस्लीय भेदभाव, राजनीतिक कट्टरता और सामाजिक बँटवारे जैसी चुनौतियों से जूझ रही है। इस्लामी दृष्टिकोण यह नहीं कहता कि अपनी आस्था छोड़कर दूसरों की बात मान ली जाए, बल्कि यह सिखाता है कि असहमति होने पर भी संयम, न्याय और सम्मान बनाए रखा जाए। यही मूल्य समाज को नफ़रत से बचाते हैं और इंसानों के बीच भरोसा और भाईचारा बढ़ाते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम आपसी समझ को बढ़ाएँगे, पूर्वाग्रहों को कम करेंगे और ऐसे समाज को मजबूत करेंगे जिसमें हर इंसान की गरिमा सुरक्षित हो। डॉ. ज़ाकिर हुसैन की सहिष्णुता, पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाएँ और इस्लाम के सिद्धांत आज भी दुनिया को वह रास्ता दिखाते हैं जिससे हम शांति और सद्भाव की ओर बढ़ सकते हैं। डॉ. ज़फ़र दारिक़ क़ासमी, जो अलीगढ़ के एक प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वान और लेखक हैं, इसी संदेश को अपने लेख में स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करते हैं।

(डॉ. ज़फ़र दारिक क़ासमी इस्लामी विद्वान और लेखक हैंI अलीगढ़ में रहते हैं।)