गुलाम कादिर /भोपाल
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के युवा कलाकार मोहम्मद काशिफ इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बने हुए हैं। वजह है दुनिया की पहली विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की वह शानदार फ्रेमिंग, जिसे उन्होंने तीन महीने की कड़ी मेहनत से तैयार किया और जो इस समय मुख्यमंत्री निवास के बाहर स्थापित है। मुख्यमंत्री मोहन यादव जब भी इस अनोखी घड़ी का जिक्र करते हैं, काशिफ का नाम गर्व से लेते हैं।

यह घड़ी केवल तकनीक या कला का नमूना नहीं, बल्कि भारतीय कालगणना और सभ्यता का नया पुनर्जागरण है। तीन महीने पहले इसका उद्घाटन हो चुका है, लेकिन आज भी इसके दर्शन के लिए लोग सुबह से देर रात तक कतार में खड़े दिखाई देते हैं। काशिफ कहते हैं कि जब मुख्यमंत्री जी उनकी तारीफ करते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनकी मेहनत सार्थक हुई है और उनका हौसला कई गुना बढ़ जाता है।
इस वैदिक घड़ी को लखनऊ के युवक आरोह श्रीवास्तव ने डिज़ाइन किया है, जिन्होंने वर्ष 2013 में इस पर शोध शुरू किया था। लंबे अध्ययन और लगातार प्रयोग के बाद 2020 में उन्होंने भारत की वैदिक समय प्रणाली का एक सटीक फॉर्मूला तैयार किया।
लेकिन इस शोध को वास्तविक स्वरूप देने का काम भोपाल के काशिफ ने किया, जिन्होंने तीन महीने की लगन और कलात्मक दृष्टि से इस घड़ी की फ्रेमिंग तैयार की। धातु, लकड़ी और भारतीय पारंपरिक कला के अनोखे मिश्रण से बनी यह घड़ी देखते ही बनती है। काशिफ का कहना है कि यह सिर्फ एक फ्रेम नहीं, बल्कि भारतीय विज्ञान और परंपरा का गौरव है और इसे बनाते हुए उन्हें लगता था कि वे इतिहास का हिस्सा बन रहे हैं।
इस घड़ी का नाम राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत की थी। यह वही संवत है जो आज भी हिंदू पंचांग की नींव है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 फरवरी 2024 को उज्जैन में इसका पहला अनावरण किया, और 1 सितंबर 2025 को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भोपाल में इसका आधिकारिक लोकार्पण किया।
यह घड़ी सूरज के साथ चलती है। जहां सामान्य घड़ी दिन को 24 घंटे में विभाजित करती है, वहीं वैदिक घड़ी दिन को 30 समान भागों—अर्थात् 30 मुहूर्तों—में बांटती है। हर मुहूर्त 48 मिनट का होता है।
यह घड़ी तिथि, नक्षत्र, योग, करण, पर्व-त्योहार, सूर्योदय-सूर्यास्त का समय और शहरवार वैदिक समय भी दर्शाती है। इसके साथ एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया गया है जो 7,000 वर्षों तक की धार्मिक और ऐतिहासिक जानकारी देता है, जिसमें महाभारत काल से जुड़े तथ्य भी शामिल हैं। यह ऐप 189 भाषाओं में उपलब्ध है और दुनिया को भारतीय कालगणना की सटीकता से परिचित कराता है।
काशिफ की कला इस घड़ी तक सीमित नहीं है। हाल ही में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2025 में काशिफ और उनकी टीम ने मात्र 90 दिनों में 120 उत्कृष्ट स्कल्पचर तैयार किए थे। इनमें शेर, हाथी, मोर, हिरन, छाते और कई आकर्षक मूर्तियां शामिल थीं। उनका सबसे चर्चित काम शेर की मूर्ति थी, जिसे बनाने में दो दिन लगे और जिसे अतिथियों ने खूब सराहा। कला और संस्कृति से जुड़े ज्ञान को आधुनिक स्वरूप देने में काशिफ की सोच और नेतृत्व काबिल-ए-तारीफ है।

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने घड़ी के लोकार्पण के दौरान कहा कि दुनिया एक नए युग में प्रवेश कर रही है। पहले पश्चिमी विचारों का प्रभाव अधिक था, लेकिन अब समय पूर्व का है। भारतीय संस्कृति, ज्ञान और विज्ञान दुनिया के कल्याण के लिए कीमती धरोहर हैं।
यह घड़ी और मोबाइल ऐप आने वाली पीढ़ी को भारतीय समय-परंपरा और विज्ञान की गहराई से परिचित कराएंगे। उनके अनुसार, यह घड़ी जल्द ही वैश्विक पहचान प्राप्त करेगी।
अंततः विक्रमादित्य वैदिक घड़ी केवल समय दिखाने का उपकरण नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। यह बताती है कि भारत की प्राचीन पद्धतियाँ केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा भी हैं।
भोपाल से उठी यह क्रांति अब पूरे देश में फैल रही है और यह संदेश देती है कि भारत अपने समय पर लौट रहा है—अपने ज्ञान, अपनी पहचान और अपनी वैदिक समय गणना की गौरवशाली विरासत के साथ।