सहिष्णुता को अक्सर उदासीनता या कमजोरी समझा जाता है। हकीकत उलट है: यह मानवता की सबसे बड़ी नागरिक शक्तियों में से एक है — एक जानबूझकर, सक्रिय शक्ति जो विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों को साथ बाँधती है। इस अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस पर 622 ईस्वी का मदीना चार्टर इस बात का ऐतिहासिक सबूत है कि समावेशी शासन कोई नया आविष्कार नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपरा है।
सहिष्णुता निष्क्रिय नहीं, बल्कि एक कौशल-शक्ति है
बहुतों की धारणा है कि सहिष्णुता का मतलब है सब कुछ सह लेना। यह गलतफहमी है। सच्ची सहिष्णुता नैतिक नेतृत्व है: मतभेदों का सम्मान, अधिकारों की रक्षा और हर इंसान की गरिमा बनाये रखना। एक जैसे गुलाबों का बगीचा तो स साफ़-सुथरा होता है, मगर जंगली फूलों से भरा उपवन जीवन से भरपूर होता है—विविधता समाज को कमज़ोर नहीं करती, वह उसे ऊर्जा देती है।
एक शिक्षक ने कहा था: “हम सब अलग-अलग पेंसिल हैं—कोई पतली, कोई मोटी—पर एक पूरा चित्र बनाने के लिए हर पेंसिल ज़रूरी है।” सहिष्णुता वही है: हर आवाज़ का महत्व स्वीकारना।
आधुनिक समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम: सहिष्णुता
आज की दुनिया में—जहाँ वायरल आक्रोश, प्रवासन और डिजिटल इको-चैंबर आम हैं—सहिष्णुता वैकल्पिक नहीं, ज़रूरी आधार है। यह शांतिपूर्ण शासन, रचनात्मक संवाद, व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और संकट में सामाजिक सद्भाव की रीढ़ है। लोकतंत्रों, विशेषकर युवाओं के लिए, सहिष्णुता नैतिक कम्पास भी है और रणनीतिक फ़ायदा भी। जैसा कि जॉन เอฟ. कैनेडी ने कहा था: सहिष्णुता का मतलब अपने विश्वासों की ढीठाई नहीं, बल्कि दूसरों के प्रति अन्याय-सहिष्णुता का इनकार है।
मदीना का उदय, पहला बहु-धार्मिक संविधान
चौदह शताब्दी पहले मदीना एक ऐसे समाज में तब्दील हुआ जहाँ कबीलाई टकराव और अविश्वास फैला था। 622 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति हो) ने जीत के बजाय एक अनुबंध पेश किया — मदीना चार्टर। यह दस्तावेज़ क्रांतिकारी था: यह मुसलमानों, यहूदियों और अन्य समुदायों को एक साझा राजनीतिक व्यवस्था में बाँटता था। समान अधिकार, सुरक्षा और पारस्परिक जिम्मेदारी का संविधान बना — सिद्धांत नहीं, व्यवहार में लागू शासन।
मदीना की कहानियाँ: सहिष्णुता कर्म में कैसे दिखी
समान न्याय: बाजार में हुआ एक विवाद था—मुसलमान और यहूदी व्यापारी के बीच टोल-तौल पर आरोप। मामला मस्जिद में सुना गया; गवाहों और तराजू की जाँच के बाद फैसला आया: समान न्याय लागू हुआ, और विवाद शांत हो गया। चार्टर ने बतलाया कि कानून सबके लिए बराबर है।
सामुदायिक देखभाल: एक यहूदी परिवार गरिबी में फँसा तो मुसलमान पड़ोसियों ने चुपचाप खाद्यान्न भेज दिया — बिना दिखावे के। चार्टर ने कल्याण को साझा कर्तव्य बनाया था, एहसान नहीं।
साझा संकट में सहयोग: सूखे में मुस्लिम और यहूदी किसान साझा संसाधन बाँटकर और बारी-बारी से कुआँ संभालकर बचे — कमी को एकजुटता में बदला गया।
युवाओं के लिए संदेश: आप समावेशी समाज के निर्माता हैं
डिजिटल युग में आपकी ज़रूरत सिर्फ सहिष्णुता नहीं, बल्कि नेतृत्व की है। इस्लामिक स्वर्ण युग में मुस्लिम, ईसाई, यहूदी और हिंदू विद्वान साथ आए, अनुवाद किया, बहस की और ज्ञान साझा किया—एकता में ज्ञान का विस्फोट हुआ। ज्ञान (इल्म) ही पूर्वाग्रह की जड़ों को काटने वाली तलवार है। आपकी औज़ार: सहानुभूति, आलोचनात्मक सोच, डिजिटल साक्षरता और साहस। सहिष्णुता सिखाई, प्रशिक्षित और बड़े पैमाने पर बढ़ानी चाहिए।
मदीना से सीख: समावेशन में टिकाऊ प्रगति है
चार्टर का भाव यही सिखाता है कि टिकाऊ शांति तब बनती है जब प्रगति समावेशन से जुड़ी हो। चाहे मदीना हो या कोई आधुनिक महानगर—दIALOG, साझा विकास और प्रतिष्ठा की रक्षा ही स्थायित्व लाती है। नवाचार आसानी से हो सकता है, पर मतभेदों को बिना मिटाये संभालना ही परिपक्व समाज की कसौटी है। हेलेन केलर ने कहा: “शिक्षा का सर्वोच्च परिणाम सहिष्णुता है।”
सहिष्णुता सभ्यता की अंतिम शक्ति है
सच्ची सहिष्णुता सिर्फ सह-अस्तित्व नहीं; यह न्याय के लिए खड़ा होना, भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाना और साझा निर्माण की बुद्धिमत्ता है। मदीना चार्टर और संयुक्त राष्ट्र का संदेश एक ही है: प्रगति एकरूपता में नहीं, बल्कि बुद्धिमानी से प्रबंधित विविधता में पनपती है।
इस अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस पर आइए हम सिर्फ़ जश्न मनाएँ नहीं—इसे अमल में लाएँ। मदीना ने चौदह सदियों पहले जिस तरह समावेशी व्यवस्थाओं की राह खोली थी, हमें वही रास्ता आज भी आत्मसात करना होगा।