मंजीत ठाकुर
युद्ध के मैदान में पाकिस्तान को पीटने की खबरों के शोर-शराबों के बीच दो ऐसी खबरें आईं, जिन पर कम ही लोगों का ध्यान गया, लेकिन जिसका असर आने वाले वक्त में किसी क्रांति से कम नहीं होगा.पहली, दुनिया में पहली बार भारत के कृषि वैज्ञानिकों ने जीनोम एडिटिंग के जरिए धान की दो नई किस्में तैयार की हैं. चावल की इन दो नई किस्मों को कम पानी और कम खाद तथा उर्वरकों की जरूरत होगी.
ये बदलते मौसम के प्रति प्रतिरोधी गुणवत्ता वाली होंगी और इनकी पैदावार भी मौजूदा किस्मों की तुलना में तीस फीसद अधिक होगी. फसल भी सामान्य समय से बीस दिन पहले तैयार हो जाएगी. इन दो किस्मों के नाम डीआरआर-100 या कमला और पूसा डीएसटी राइस-1 रखे गए हैं और उम्मीद की जा रही है कि दोनों बीज देश के धान उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकेंगे.
दूसरी खबर, कश्मीर से आई जो अभी पहलगाम आतंकवादी हमलों के बाद से नकारात्मक रूप से खबरों में बना हुआ था और ऑपरेशन सिंदूर में कश्मीर पाकिस्तान की ज़द में था.
लेकिन, शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी (एसकेयूएएसटी) के वैज्ञानिकों ने भारत की पहली जीन संपादित (जीन एटिटेड) भेड़ की किस्म भी तैयार की है और इसे एनिमल बायोटेक्नोलॉजी में मील का पत्थर माना जा रहा है.
वैज्ञानिकों ने इस मेमने में 'मायोस्टैटिन' जीन को एडिट किया है. यह जीन शरीर में मांस बनने के लिए जिम्मेदार होता है. इस संपादन के बाद नई किस्म वाली इस भेड़ में मांस की मात्रा तीस फीसद तक बढ़ जाएगी. इससे पहले यह गुण भारतीय भेड़ो में नहीं होती थी.
कुछ लोगों में जीएम फसलों को लेकर एक चिंता रही है लेकिन ध्यान रहे कि जीनोम एडिटिंग जेनेटिक मॉडिफिकेशन या जीएम नहीं है. जीनोम एडिटिंग में उसी पौधे में मौजूद डीएनए में एडिटिंग के जरिए डीएनए सीक्वेंसिंग बदली जाती है.
जीनोम एडिटिंग एक सटीक तकनीक है जिसमें किसी जीव के डीएनए में छोटे-छोटे बदलाव किए जाते हैं. इसमें किसी विशेष जीन को काटा, हटाया या बदला जा सकता है.
यह प्रक्रिया आमतौर पर CRISPR-Cas9 जैसी तकनीकों से की जाती है. इस विधि में बाहरी डीएनए को जीव के जीनोम में नहीं जोड़ा जाता, बल्कि प्राकृतिक जीन को ही संशोधित किया जाता है.
वहीं जेनेटिक मोडिफिकेशन (जीएम) में किसी दूसरे जीव का जीन लेकर उसे लक्षित जीव में जोड़ा जाता है. मसलन, बैक्टीरिया का जीन यदि किसी पौधे में जोड़ा जाए तो वह पौधा कीट प्रतिरोधी बन सकता है. यह परिवर्तन स्वाभाविक रूप से नहीं होता और इसे ‘ट्रांसजेनिक’ प्रक्रिया कहा जाता है.
इस प्रकार, जीनोम एडिटिंग अधिक सटीक और प्राकृतिक उत्परिवर्तन के करीब मानी जाती है, जबकि जीएम तकनीक में बाहरी जीन जोड़ने से अधिक जैविक परिवर्तन होते हैं.
यह क्रांतियां मौन हैं लेकिन कुछ समय के बाद इनके मुखर होने के संकेत दिखने लगेंगे. जलवायु परिवर्तन और बारिश के पैटर्न में आ रहे बदलावों से फसल चक्र को फिर से दुरुस्त किए जाने की जरूरत है.
मॉनसून के बीच में आ रहे लंबे ड्राई स्पैल धान की पैदावार पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं और सिंचाई पर निर्भरता बढ़ रही है, जबकि भूमिगत जल के सोते सूखते जा रहे हैं. डीजल या बिजली चालित पंपों से सिंचाई खेती में इनपुट लागत को बढ़ा रही है, इससे किसानों का मुनाफा सिकुड़ता जा रहा है.
दूसरी तरफ हमें और अधिक अन्न उपजाने की जरूरत है क्योंकि देश की आबादी डेढ़ अरब को पार कर गई है और खाद्यान्न आदि में आत्मनिर्भर ही नहीं, सरप्लस होकर ही हम किसी भी रणनीतिक चुनौतियों का सामना कर पाएंगे. खाद्य सुरक्षा के साथ ही, सरप्लस अनाज हमारे विश्व व्यापार को अधिक व्यापकता देगा.
लेकिन बड़ा फायदा यह होगा कि पंजाब में चावल उगाने के लिए जो 5000 लीटर प्रति किलोग्राम और बंगाल में जो 3000 लीटर प्रति किलोग्राम पानी की जरूरत होती है उसको कम किया जा सकेगा. बढ़ती आबादी और कम होते जल संसाधनों के मद्देनजर यह बेहद महत्वपूर्ण खोज है.
इन सब चुनौतियों के मद्देनजर ही, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘माइनस 5 और प्लस 10’ का नारा दिया है. इसके तहत, धान के मौजूदा रकबे में से पांच मिलियन हेक्टेयर कम क्षेत्र में दस मिलियन टन ज्यादा चावल उगाने का संकल्प है.
खाली हुए पांच मिलियन रकबे को दलहन और तिलहन के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश होगी. किसानों को अत्यधिक पानी की खपत वाली चावल की खेती से दलहन और तिलहन की ओर ले जाने की कोशिशें अभी बेअसर साबित हुई हैं.
गेहूं और चावल की खेती पर तिलहन और दलहन की तुलना में प्राकृतिक मार कम पड़ती है. एमएसपी के कारण पैदावार बेचने में भी दिक्कत नहीं होती. बहरहाल, जीनोम एडिटिंग का अन्य फसलों के बीजों पर भी प्रयोग होने लगे तो किसान अपनी लाभकारी उपज के प्रति आश्वस्त हो सकेगा.
और इसकी मिसाल है, भेड़ की नई जीन संपादित नस्ल, जो अधिक मांस उत्पादित करने में सक्षम होगी. जलवायु परिवर्तन और तेजी से घटते भूमिगत जल भंडारों के मद्देनजर अगले दस साल में दुनिया में खाद्य उत्पादन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाएगा. भारत में जैव-प्रौद्योगिकी की यह नई खोजें भविष्य की ओर बढ़ाया मजबूत कदम है.
(लेखक आवाज द वाॅयस में सोशल मीडिया संपादक हैं)
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