देस-परदेस : गज़ा शांति-योजना, सपना है या सच?

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 07-10-2025
Country and Foreign: Gaza Peace Plan, Dream or Reality?
Country and Foreign: Gaza Peace Plan, Dream or Reality?

 

joप्रमोद जोशी

29सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ खड़े होकर गज़ा में ‘शाश्वत शांति’ के लिए 20-सूत्री योजना पेश की थी. ट्रंप को यकीन है कि अब गज़ा में शांति स्थापित हो सकेगी, पर एक हफ्ते के भीतर ही इसकी विसंगतियाँ सामने आने लगीं हैं.

असल बात यह कि अभी यह योजना है, समझौता नहीं. योजना के अनुसार,  दोनों पक्ष सहमत हुए, तो युद्ध तुरंत समाप्त हो जाएगा. बंधकों की रिहाई की तैयारी के लिए इसराइली सेना आंशिक रूप से पीछे हट जाएगी. इसराइल की ‘पूर्ण चरणबद्ध वापसी’ की शर्तें पूरी होने तक सभी सैन्य अभियान स्थगित कर दिए जाएँगे और जो जहाँ है, वहाँ बना रहेगा.

कुल मिलाकर यह एक छोटे लक्ष्य की दिशा में बड़ा कदम है. इससे पश्चिम एशिया या फलस्तीन की समस्या का समाधान नहीं निकल जाएगा, पर यदि यह सफल हुई, तो इससे कुछ निर्णायक बातें साबित होंगी. उनसे ‘टू स्टेट’ समाधान का रास्ता खुल भी सकता है, पर इसमें अनेक किंतु-परंतु जुड़े हैं.

हालाँकि हमास ने इसराइली बंधकों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की है, लेकिन वे कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं. ट्रंप ने हमास के बयान को सकारात्मक माना है, लेकिन अभी तक उनकी ‘बातचीत’ की माँग के बारे में कुछ नहीं कहा है.

इसराइल ने कहा है कि ट्रंप की योजना के ‘पहले चरण’ के तहत गज़ा में सैन्य अभियान सीमित रहेंगे, लेकिन उसने यह नहीं कहा है कि हमले पूरी तरह से बंद हो जाएंगे या नहीं.

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि यह योजना इसराइल के युद्ध उद्देश्यों के अनुरूप है, वहीं अरब और मुस्लिम नेताओं ने इस पहल का शांति की दिशा में एक कदम के रूप में स्वागत किया है. लेकिन एक महत्वपूर्ण आवाज़ गायब है-वह है फ़लस्तीनी लोगों के किसी प्रतिनिधि की.

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तेज घटनाक्रम

घटनाएँ इतनी तेजी से बदल रही हैं कि किसी बात पर भरोसा नहीं होता है. गत 9सितंबर को क़तर पर हमला करके इसराइल ने ज़बरदस्त उकसावे वाली कार्रवाई की थी. इस हमले ने इस इलाके में और वॉशिंगटन, दोनों जगह सरकारी अधिकारियों को इतना परेशान कर दिया कि युद्धविराम की संभावनाओं पर ही पानी फिर गया था.

बताते हैं कि ट्रंप और अमेरिका के पश्चिम एशिया दूत स्टीव विटकॉफ को इसराइली हमले के बारे में तब पता चला जब वह हो रहा था. खबर सुनते ही, विटकॉफ ने तुरंत अपने कतरी संपर्कों को फोन किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

विटकॉफ बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने क़तर के प्रधानमंत्री शेख़ मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल-थानी से कहा कि यकीन करें कि इसराइली हमले में हमारी कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने अन्य अरब सरकारों को भी यही संदेश दिया.

क़तर के लोग स्तब्ध थे, और उन्होंने अमेरिकियों पर अपना गुस्सा उतारा कि मध्यस्थ के रूप में वे नाकारा साबित हुए हैं. फिर भी क़तर के अधिकारियों ने ट्रंप के दामाद जैरेड कुशनर के बारे में कहा कि वे नेकनीयती काम कर रहे हैं,  लेकिन इसराइलियों ने उन पर ऐसे हमला बोला मानो वे हमास के प्रतिनिधि हों.

और फिर शांति-योजना

उसके 20दिन बाद, नेतन्याहू और ट्रंप ने ऐसी योजना के लिए समर्थन की घोषणा की, जिससे लगता है कि लड़ाई रुक सकती है. ट्रंप के प्रयासों ने आशा जगाई है. साथ ही उनके पिछले प्रशासन ने अब्राहम समझौते के मार्फत जो सफलता हासिल की थी, उसे भी आगे बढ़ाया है. अब्राहम समझौते ने इसराइल और कई अरब देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाया.

दोहा में इसराइली हमले से एक दिन पहले, विटकॉफ और कुशनर ने मायामी स्थित विटकॉफ के बंगले में नेतन्याहू के सबसे करीबी सलाहकारों में से एक रॉन डर्मर के साथ तीन घंटे से ज्यादा लंबी बैठक की. बताते हैं कि उस दिन तीनों ने संघर्ष विराम के विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा की, जिन्हें वे उसी हफ़्ते बाद में क़तर और अंततः हमास के सामने पेश करना चाहते थे.

कुशनर, ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान पश्चिम एशिया में दूत थे, और उसके बाद के वर्षों में उन्होंने खाड़ी देशों के कई राजतंत्रों के नेताओं के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध बनाए हैं. हाल के महीनों में, वे ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के साथ गज़ा की युद्धोत्तर योजना पर काम कर रहे हैं, जिसे उन्होंने अगस्त में वाइट हाउस में प्रस्तुत किया था.

मायामी में 8सितंबर की बैठक समाप्त होने के बाद, डर्मर ने कतर के एक अधिकारी के साथ फोन पर कई घंटे बिताए, जो दोहा समय के अनुसार सुबह तक जारी रहा.

उस कॉल के समाप्त होने के लगभग 12घंटे बाद, इसराइली जेट विमानों ने कतर की राजधानी में हुई बैठक पर मिसाइलें दागीं, जिसमें हमास के शीर्ष वार्ताकार और 7अक्तूबर के हमलों के योजनाकार, खलील अल-हैया भी शामिल थे.

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हमास भी राज़ी?

इसराइली सरकार ने शनिवार 3अक्तूबर की सुबह कहा कि वह ट्रंप की योजना के शुरुआती चरणों के ‘तत्काल कार्यान्वयन’ की तैयारी कर रही है. उसके कुछ घंटे पहले, हमास ने प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति देते हुए कहा कि वह शेष सभी बंधकों को रिहा कर देगा.

खतरे अब भी अनेक हैं. हमास किसी भी वक्त समझौते को अस्वीकार कर सकता है, जिससे गज़ा और भी ज़्यादा बदहाली की ओर बढ़ेगा. नेतन्याहू और हमास दोनों इस समझौते पर दस्तखत करने के बाद भी कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिसका उद्देश्य बाद में समझौते को विफल करना है.

ट्रंप ने विश्वास जताया कि समझौता जल्द ही होगा, और कहा कि यह एक ‘बड़ा दिन’ है, साथ ही उन्होंने इसराइल से गज़ा पर बमबारी बंद करने का आह्वान भी किया. उन्होंने मान कि वार्ताकारों को अब भी ‘अंतिम निर्णय ठोस रूप में लेने’ की ज़रूरत है.

एक रास्ता

अक्तूबर, 2023में हमास के हमले और फिर इसराइली हमलों के बाद से यह पहली शांति योजना नहीं है. गज़ा में आतंक कायम है. फिर भी पश्चिमी मीडिया इसे मील का पत्थर है, क्योंकि यह एक दुःस्वप्न से बाहर निकलने का रास्ता दिखा रहा है, साथ ही अमेरिका, इसराइल और संभवतः हमास के दृष्टिकोणों में बदलाव का संकेत दे रहा है.

बहरहाल न तो इसराइल ने और न हमास ने विस्तार से उन विषयों पर कुछ कहा है, जिन्हें लंबे समय से फलस्तीनी समस्या पर किसी समझौते तक पहुँचने में सबसे बड़ी रुकावट माना जा रहा था.

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या हमास खुद को निशस्त्र करने पर तैयार हो जाएगा? हमास के बयान में उस अमेरिकी प्रस्ताव के प्रमुख तत्वों का ज़िक्र नहीं किया गया है, जिनमें समूह से हथियार छोड़ने का आह्वान किया गया है, जो इसराइल की एक प्रमुख माँग है.

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हमास का निरस्त्रीकरण!

अमेरिका की ओर से योजना के सिद्धांत स्पष्ट हैं, भले ही वरीयताएँ स्पष्ट न हों. बंधकों को तुरंत रिहा कर दिया जाएगा. हमास के नेता और लड़ाके निशस्त्र हो जाएँगे और उन्हें क्षमादान या निर्वासन दिया जाएगा.

इसके बाद जो प्रशासन आएगा, उसमें हमास नहीं होगा. इस प्रशासन की देखरेख ट्रंप के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय  बोर्ड करेगा. इसराइली सेना गज़ा से चरणों में हटेगी और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी एक अंतरराष्ट्रीय बल और नव-सृजित फ़लस्तीनी पुलिस को सौंपेगी.

अंततः गज़ा का पुनर्वास और पश्चिमी तट में फ़लस्तीनी प्राधिकरण में सुधार, राज्य का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं. प्रमुख अरब शक्तियों और तुर्की सहित आठ मुस्लिम देशों ने इस समझौते का समर्थन किया है, पर बाद में पाकिस्तान ने अपने हाथ इससे खींचने शुरू कर दिए हैं.

गज़ा का पुनर्निर्माण

फ़रवरी में, ट्रंप ने पश्चिम एशिया में एक नए ‘रिवेरा’ या सैरगाह के निर्माण की पेशकश की थी, जिसके लिए गज़ा से फ़लस्तीनियों का एक तरह जातीय सफाया होगा. इस तरह उन्होंने इसराइल की गठबंधन सरकार में कट्टर दक्षिणपंथी दलों की उन कल्पनाओं को मौन स्वीकृति दे दी थी, जो गज़ा पर बसने का सपना देखते हैं.

अब ‘रिवेरा’ प्रस्ताव के विपरीत, इस योजना में कहा गया है कि फ़लस्तीनियों को गज़ा छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा. हमास ने योजना के कई हिस्सों को स्वीकार कर लिया है, जिसमें युद्धविराम के लिए बंधकों की रिहाई भी शामिल है, जबकि वह अन्य प्रावधानों पर विचार-विमर्श कर रहा है.

इसका मतलब है ‘इसराइल गज़ा पर कब्ज़ा नहीं करेगा’, जिससे ‘टू स्टेट’ समाधान की संभावनाएँ खुली रहेंगी. सच यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र में घोषणाओं के बावजूद, बहुसंख्यक इसराइली या फ़लस्तीनियों को नहीं लगता कि ‘टू स्टेट’ समाधान संभव होगा. 

इस योजना का समर्थन करके, नेतन्याहू ने भी एक नया रुख अपनाया है. अभी तक वे गज़ा पर कब्ज़े की बात करके आंतरिक राजनीति में अपने कट्टर-दक्षिणपंथी गठबंधन सहयोगियों को खुश कर रहे थे.

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इसराइली राजनीति

युद्धविराम होने पर सरकार और उनका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा (चुनाव 2026के अंत तक होना चाहिए). अब वे इस आधार पर चुनाव लड़ेंगे कि शांति योजना ने, बंधकों को वापस लाने और हमास को सत्ता से बाहर करने के इसराइली उद्देश्यों को पूरा कर दिया है.

हालाँकि नेतन्याहू देश में अलोकप्रिय हैं, लेकिन यह योजना अलोकप्रिय नहीं है: लगभग तीन-चौथाई इसराइली इसका समर्थन करते हैं. पर सबसे बड़ा बदलाव हमास की ओर से होना है. हालाँकि उसने अभी तक औपचारिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, पर जो संकेत वे दे रहे हैं, वे सकारात्मक हैं.

पाकिस्तानी दुविधा

इस शांति-योजना को तैयार करने के सिलसिले में ट्रंप के साथ बैठक में शामिल अरब और मुस्लिम बहुल देशों में अभी असहमतियाँ हैं. उदाहरण के लिए, पाकिस्तान में इस योजना की तीखी सार्वजनिक आलोचना हुई है और शीर्ष नेतृत्व में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं.

प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने इसका स्वागत किया, लेकिन उनके विदेशमंत्री इशाक डार ने कहा कि यह वह योजना नहीं है जिस पर हमारी सहमति थी. उन्होंने इस्लामाबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘यह हमारा दस्तावेज़ नहीं है.’ हालाँकि उन्होंने इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया.

अरब देश भी नेतन्याहू द्वारा किए गए बदलावों से निराश हैं. पश्चिमी मीडिया स्रोतों के अनुसार जिस दिन ट्रंप और नेतन्याहू ने समझौते की घोषणा की, कुछ अरब अधिकारी चाहते थे कि पूरे विवरण की घोषणा नहीं की जाए. उन्हें चिंता थी कि हमास उनकी बात नहीं मानेगा. उन्होंने कहा कि वे योजना को और अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए उसमें और संशोधन चाहेंगे.

उधर क़तर चाहता था कि दोहा पर किए गए मिसाइल हमले के नेतन्याहू माफी माँगें. कतर सरकार ने जोर दिया है कि यह एक अनिवार्य शर्त है. ट्रंप कह रहे हैं कि नेतन्याहू को माफी माँगनी होगी. इसलिए 29सितंबर को शाति-योजना की घोषणा के ठीक पहले नेतन्याहू ने टेलीफोन पर क़तर के प्रधानमंत्री को खुद लिखा अपना माफ़ीनामा पढ़ा.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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