कारोबार जिसे महामारी ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 31-08-2021
कारोबार जिसे महामारी ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया
कारोबार जिसे महामारी ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया

 

मेहमान का पन्ना

 

हरजिंदर

पूर्वी अफ्रीका का एक छोटा सा देश है सेशेल्स.देश क्या यह छोटे-छोटे द्वीपों का समूह भर है.यह भारत से बहुत दूर नहीं है और हिंद महासागर में ही है.अभी कुछ समय पहले तक अफ्रीका के बाकी देशों के मुकाबले इसकी आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक मानी जाती थी.

 पर अब उसकी हालत सबसे खस्ता है.सेशेल्स का मुख्य कारोबार है पर्यटन.यहां के खूबसूरत समुद्र तटों पर साल भर साल भर पर्यटकों की भीड़ जमा रहती थी.लेकिन जब से कोविड की महामारी फैली है, दुनिया भर के पर्यटकों ने उस ओर जाना ही बंद कर दिया है.पिछले साल के शुरू में जब दुनिया भर में लॉक डाउन हुआ तो सेशेल्स ने भी अपने दरवाजे पर्यटकों के लिए बंद कर दिए.

आबादी के सबसे बड़े हिस्से को इन्हीं पर्यटकों से ही रोजगार मिलता है, वे सब बेरोजगार हो गए.वैसे सेशेल्स से मछली और फलों वगैरह का निर्यात भी होता है,लेकिन वह इतना नहीं है कि उससे देश की अर्थव्यवस्था चल सके.फिर सब जगह लाॅकडाउन से यह धंधा भी मंदा पड़ा है.

इस साल मार्च में वहां की सरकार ने तय किया कि सेशेल्स को फिर से पर्यटकों के लिए खोल दिया जाए.लेकिन जब तक महामारी का डर है पर्यटक तो आने से रहे.हमारे देखते-देखते दुनिया का एक छोटा सा खुशहाल देश बरबादी की ओर बढ़ रहा है.

लेकिन सेशेल्स अकेला ऐसा देश नहीं है जिसे इस तरह का नुकसान पहुंचा है.दुनिया के वे तमाम देश जो पर्यटन पर निर्भर हैं उन सबका यही हाल है.इस कारोबार पर कितना असर पड़ा है इसे हम नेपाल के उदाहरण से समझ सकते हैं.साल 2019 में नेपाल में 12 लाख से ज्यादा विदेशी पर्यटक आए थे,लेकिन 2020 में उनकी संख्या घटकर 9,417 रह गई.

पर्यटन के बारे में यह माना जाता है कि यह अच्छे समय का कारोबार है और अच्छा समय फिलहाल इस दुनिया से रूठ गया है.जब लोगों का समय अच्छा होता है,उनके पास पैसे होते हैं और कोई बड़ा खतरा सामने नहीं होता तो समय मिलते ही वे सैर-सपाटे के लिए निकल पड़ते हैं.

कोरोना वायरस की वजह से फेली महामारी के बाद से ये सभी चीजें ज्यादातर लोगों के लिएउपलब्ध नहीं हैं.समय तो शायद सभी का बुरा चल रहा है,संक्रमण का खतरा हर जगह और हमेशा बना हुआ है और कारोबार मंदा पड़ जाने या नौकरी चली जाने के कारण ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है जिनके पास पर्याप्त पैसे नहीं है.

 कम से कम इतने तो नहीं हैं कि उसमें से सैर-सपाटे के लिए कुछ रकम अलग कर सकें.कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले डेढ़ साल में पर्यटन का कारोबार वहां पहंुच गया है जहां वह तीस साल पहले था.

पर्यटन कारोबार का महत्व हम इससे भी समझ सकते हैं कि पर्यटन दुनिया में विदेशी मुद्रा कमाने का तीसरा सबसे बड़ा व्यवसाय है- पहला नंबर पेट्रोल का है और दूसरा रसायनों के निर्यात का.

दुनिया के बहुत कम देश ऐसे हैं जो पेट्रोल या रसायन निर्यात करने की स्थिति में हैं,जबकि पर्यटन से विदेशी मुद्रा हासिल करने वाले देशों की संख्या बहुत बड़ी है.संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन की माने तो पूरी दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोग पर्यटन कारोबार पर निर्भर करते हैं.

इनमें बड़े होटल चेन,बड़ी ट्रैवल एजेंसियों और उनमें काम करने वाले लोगों के अलावा वे भी शामिल हैं जो पर्यटन केंद्रों के आस-पास ठेले खोमचे लगाने का काम करते हैं.इस आंकड़े से हम यह समझ सकते हैं कि महामारी ने कितने लोगों पर सीधा आर्थिक दबाव डाला है.

कहा जाता है कि दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में पर्यटन की हिस्सेदारी तीन फीसदी के आस-पास है.भारत में पर्यटकों को तीन वर्गों में बांटा जाता है- विदेशी पर्यटक,विदेश जाने वाले भारतीय पर्यटक और घरेलू पर्यटक.

जितने विदेशी पर्यटक भारत आते हैं उससे ज्यादा भारतीय पर्यटक विदेश जाते हैं इसलिए विदेशी मुद्रा को तो भारत को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है लेकिन नुकसान उन लोगों पर बन आया है जो अपनी रोजी-रोटी के लिए पर्यटन पर निर्भर थे.खासकर घरेलू पर्यटन और तीर्थयात्रा वगैरह बंद होने से यह संकट बहुत से लोगों के सिर पर खड़ा हो गया है.

अभी हाल यह है कि जिन लोगों के पास पैसा है और घूमने की इच्छा भी महामारी का डर उनके पैर भी रोक रहा है.और अगर वे जोखिम लेकर निकल भी पड़ते हैं तो यह डर सरकार को सताने लगता है.

कुछ समय पहले हमने यह देखा था कि उत्तर भारत की भीषण गर्मी के दौरान मसूरी,नैनीताल,शिमला और मनाली जैसी जगहों पर पर्यटकों का हजूम उमड़ पड़ा तो सरकारों को पर्यटकों के प्रवेश पर कईं तरह की पाबंदियां लगानी पड़ीं.हालांकि यह भीड़ भी कुछ नामी गिरामी पर्यटन केंद्रों पर ही उमड़ी.दूर-दराज के छोटे पर्यटन केंद्रों पर इस दौरान भी सन्नाटा ही रहा.

इस तरह की भीड़ यह तो बताती ही है कि लोग घर से निकलने और घूमने के लिए बेचैन हैं.वे इंतजार कर रहे हैं कि कब खतरा टले और वे बैग उठाकर निकल पड़ें.लेकिन खतरा टलने का इससे ज्यादा इंतजार वे लोग कर रहे हैं,जिनके लिए जीवन यापन तक मुश्किल हो चुका है.

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )