आमिर सुहैल वानी
हर साल 3 दिसंबर को दुनिया अंतरराष्ट्रीय विकलांगजन दिवस मनाती है। यह दिन केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि विकलांग व्यक्तियों की गरिमा, क्षमता और अधिकार कितने महत्वपूर्ण हैं। यह दिन बताता है कि समाज में दिखाई देने वाली और न दिखने वाली कई बाधाएँ आज भी उन्हें पूरी तरह शामिल होने से रोकती हैं। जब दुनिया विविधता को अपनी ताकत मान रही है, तब विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी न्याय, समानता और विकास के लिए आवश्यक है।

सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए “किसी को पीछे न छोड़ने” का सिद्धांत तभी संभव है जब विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर मिलें। धारणाएँ हमारी सोच बनाती हैं, और विकलांग व्यक्तियों के मामले में गलत धारणाएँ सबसे बड़ी रुकावट रही हैं।
लंबे समय तक विकलांगता को दया, कमज़ोरी या बीमारी की तरह देखा गया, जिससे उन्हें शिक्षा, नौकरी, स्वतंत्रता और सामाजिक जीवन से दूर रखा गया। लेकिन अब सोशल मॉडल ऑफ डिसएबिलिटी ने यह समझाया है कि व्यक्ति में नहीं, समाज द्वारा बनाई गई बाधाओं में विकलांगता होती है-जैसे रैम्प का अभाव, अनएक्सेसिबल परिवहन, भेदभावपूर्ण भर्ती, डिजिटल प्लेटफॉर्म का अनुपयोगी होना और असंवेदनशील भाषा।
आज भी कई जगह लोगों को कम समझा जाता है, उन पर अत्यधिक निर्भरता थोपी जाती है और उन्हें निर्णय लेने योग्य नहीं माना जाता। मीडिया में भी अक्सर या तो उन्हें दया के पात्र के रूप में दिखाया जाता है या “असाधारण” बना कर।
धारणाओं में बदलाव परिवार, स्कूल, कामकाज और समाज की सोच बदलने से आता है। नीतियों की बात करें तो दुनिया भर में कई कानून विकलांग व्यक्तियों के अधिकार मजबूत कर रहे हैं। UNCRPD और भारत में RPwD Act, 2016 ऐसे ही महत्वपूर्ण कदम हैं, जिन्होंने अधिकार, पहुंच, शिक्षा और रोजगार को कानूनी रूप से मजबूत बनाया।
लेकिन समस्या लागू करने में आती है। आज भी कई इमारतें, बसें, ट्रेनें और वेबसाइटें एक्सेसिबल नहीं हैं। रोजगार के मौके कम हैं क्योंकि कार्यस्थल, प्रशिक्षण और सोच,कई जगह बाधाएँ मौजूद हैं। कई ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा और पुनर्वास सेवाएँ पर्याप्त नहीं हैं, और सहायक उपकरण बहुत महंगे हैं।
सही आंकड़ों की कमी से योजना और बजट सही तरीके से नहीं बन पाते। नीतियों को असरदार बनाने के लिए सरकार, संस्थाओं, निजी क्षेत्र और विकलांग व्यक्तियों के संगठनों के बीच मजबूत साझेदारी ज़रूरी है। जब नीतियाँ कागज से निकलकर लोगों की जिंदगी बदलती हैं, तभी सच्ची प्रगति होती है। संभावनाएँ बहुत बड़ी हैं।

जब समाज समावेशन को अधिकार की तरह अपनाता है, तो विकलांग व्यक्तियों के लिए अनगिनत अवसर खुलते हैं। समावेशी शिक्षा बच्चों को सम्मान के साथ सीखने देती है और सभी के बीच सहानुभूति और समझ बढ़ाती है। आर्थिक सशक्तिकरण भी बहुत महत्वपूर्ण है—उचित प्रशिक्षण, अनुकूल कार्यस्थल और संवेदनशील नियोक्ता मिलने पर विकलांग व्यक्ति हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं।
तकनीक नई संभावनाएँ लेकर आई है,AI आधारित उपकरण, स्क्रीन रीडर, स्मार्ट नेविगेशन, उन्नत कृत्रिम अंग और स्मार्ट होम सिस्टम, जो स्वतंत्रता और भागीदारी बढ़ाते हैं। आज विकलांग व्यक्ति नेतृत्व, राजनीति, शिक्षा, कला, खेल और उद्यमिता में आगे आ रहे हैं, जिससे समाज की सोच बदल रही है।
समुदाय, परिवार और संस्थाएँ मिलकर जब एक्सेसिबिलिटी को एक साझा मूल्य मानती हैं, तब समावेशन जीवन का हिस्सा बन जाता है। अंतरराष्ट्रीय विकलांगजन दिवस याद दिलाता है कि समावेशन नैतिक जिम्मेदारी भी है और विकास की अनिवार्यता भी। किसी समाज की असली प्रगति उसकी अर्थव्यवस्था से नहीं, बल्कि इससे मापी जाती है कि वह अपने कमजोर या हाशिये पर खड़े लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है।

आज जब हम धारणाओं को बदल रहे हैं, नीतियों को मजबूत कर रहे हैं और संभावनाओं को बढ़ा रहे हैं, तो हम उस दुनिया के और करीब पहुँच रहे हैं जहाँ हर व्यक्ति सम्मान, समानता और अवसरों के साथ जी सके।