बानो सतकज़ई की मौत नहीं, आइना है पाकिस्तान के समाज का

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-07-2025
Bano Satakzai's death is not just a death but a reflection of Pakistani society
Bano Satakzai's death is not just a death but a reflection of Pakistani society

 

डॉ. उज़मा खातून

हाल ही में पाकिस्तान के बलूचिस्तान से एक दिल दहला देने वाला वीडियो सामने आया, जिसने पूरे दक्षिण एशिया को झकझोर कर रख दिया. इस वीडियो में एक युवती, बानो सतकज़ई, लाल कपड़ों में आत्मविश्वास के साथ चलते हुए नजर आईं. वह शांत थीं, निर्भीक थीं. ब्राहुई भाषा में उन्होंने कहा, “सिर्फ गोली चलाना मुनासिब है और कुछ नहीं.” फिर गोलियों की आवाज़ सुनाई दी और बानो ज़मीन पर गिर पड़ीं. 
 
उनके साथ मौजूद एहसान समलानी को भी कई गोलियां मारी गईं. दोनों की निर्मम हत्या कर दी गई—सिर्फ इसलिए क्योंकि वे एक-दूसरे से प्रेम करते थे और संभवतः विवाह करने वाले थे. यह नृशंस हत्या क्वेटा के पास डिगरी नामक क्षेत्र में ईद से कुछ दिन पहले हुई. बानो न तो भागीं, न ही अपनी जान की भीख मांगी. शायद उन्हें पता था कि उनका अंत तय हो चुका है.
 
वीडियो वायरल होने के बाद ग्यारह लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें बानो का भाई और एक स्थानीय कबीलाई नेता भी शामिल था. पत्रकार मुर्तज़ा ज़हरी और वकील जलीला हैदर के अनुसार, बानो को सात और एहसान को नौ गोलियां मारी गईं. फिर भी, बानो के परिवार ने अब तक चुप्पी साध रखी है. बलूचिस्तान और पाकिस्तान के अन्य कबायली क्षेत्रों में आज भी ऐसे पारंपरिक ‘इज़्ज़त और बदला’ आधारित नियम चलते हैं, जिनमें महिलाओं को संपत्ति और पुरुषों के सम्मान का प्रतीक समझा जाता है.
 
इन क्षेत्रों में महिला अगर किसी पुरुष से बात कर ले, किसी को पसंद कर ले, सोशल मीडिया पर तस्वीर डाल दे, या खुद से शादी का फैसला कर ले—तो उसके लिए मौत तय है। कोई अदालत नहीं, कोई सुनवाई नहीं—सिर्फ गोली.
 
दुर्भाग्यवश यह कोई एक घटना नहीं है. पाकिस्तान में ऑनर किलिंग (इज़्ज़त के नाम पर हत्या) अब आम हो चुकी है. मानवाधिकार आयोग के अनुसार, 2021 से 2023 के बीच 1,200 से अधिक महिलाओं की हत्या इज़्ज़त के नाम पर हुई. 2024 में ही अब तक 400 से ज़्यादा ऐसी हत्याएं हो चुकी हैं. सिर्फ सिंध प्रांत में 300 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं, जिनमें कुछ पीड़ित हिंदू समुदाय से भी थीं.
 
यह समस्या धर्म की नहीं, बल्कि कबीलाई संस्कृति की है. धर्म का नाम लेकर लोग अपनी बर्बरता को छुपाते हैं, लेकिन यह इस्लाम नहीं है. इस्लाम ने कभी भी ऑनर किलिंग को जायज़ नहीं ठहराया. यह कबीलाई सोच है जो इस्लाम से बहुत पहले से चली आ रही है. नबी करीम (स.अ.) के जमाने से पहले अरब समाज में बेटियों को ज़िंदा दफन कर दिया जाता था. इस पर अल्लाह के रसूल ने पहला काम यही किया कि बेटियों को रहमत बताया और उनकी परवरिश करने वालों को जन्नत की बशारत दी.
 
क़ुरान में स्पष्ट कहा गया है और उन्हें मत रोको कि वे अपने पति से विवाह करें, जब वे आपस में उचित तरीक़े से सहमत हों।" (सूरह अल-बक़रह, 2:232)
 
पैग़ंबर मोहम्मद (स.अ.) ने फरमाया: "औरत की रज़ामंदी के बिना निकाह नहीं होता. इस्लाम में शादी दोनों की रज़ामंदी से होती है। प्यार करना, विवाह करना गुनाह नहीं है, लेकिन पाकिस्तान में कबीलाई नेताओं, मौलवियों और सरदारों ने एक नया ‘मज़हब’ बना लिया है—जिसका असल मकसद है औरत को क़ैद रखना.
 
पाकिस्तान के सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख़्तूनख्वा में आज भी 'जिरगा' और 'पंचायत' नामक अवैध अदालतें चलती हैं, जहां औरतों को दुश्मन को सौंप दिया जाता है (वानी), कुरान से निकाह करवा दिया जाता है (ताकि वो कभी शादी न कर सके), या ज़मीनी झगड़े में बली चढ़ा दी जाती है.
 
पाकिस्तान के संविधान में समानता की बात की गई है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि वहां महिलाएं स्कूल जाने से लेकर अपने पति चुनने तक में स्वतंत्र नहीं हैं. पुलिस शिकायत नहीं लेती, अदालतें चुप रहती हैं, और मौलवी सिर्फ पर्दे की बात करते हैं—लेकिन जब कोई महिला मारी जाती है, तो वे खामोश रहते हैं.
 
पुरुषों को "कव्वाम" कहा गया है, मतलब संरक्षक—न कि मालिक, लेकिन कबीलाई व्यवस्था ने उसे मालिक बना दिया. यही नहीं, लड़कों को बचपन से यह सिखाया जाता है कि अगर परिवार की इज़्ज़त बचानी है तो औरतों को काबू में रखना ज़रूरी है—even by violence.
 
अब भारत की ओर देखिए. यहां मुस्लिम महिलाओं को संविधानिक संरक्षण मिला हुआ है. वे पढ़-लिखकर डॉक्टर, जज, अफसर और सांसद बन रही हैं.
 
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया, जिससे महिलाओं को इंसाफ मिला. यहां मुस्लिम महिला अदालत जा सकती है, मीडिया को बुला सकती है, पुलिस शिकायत दर्ज करा सकती है.
 
भारत में मुस्लिम महिलाओं को आवाज़ दी जाती है—वहीं पाकिस्तान में गोली. बानो सतकज़ई की हत्या ने फिर से यह साबित कर दिया कि पाकिस्तान में इस्लाम नहीं, बल्कि सरदारों और वडेरों का ‘धर्म’ चलता है—जहां औरतों की जान की कोई कीमत नहीं. यह इस्लाम नहीं है. इस्लाम रहमत है, बराबरी है, इज़्ज़त है.
 
अब वक़्त है कि सच्चाई को स्वीकार किया जाए। बानो की हत्या को 'धर्म' का नाम देना बंद किया जाए। पाकिस्तान को अपने सिस्टम को सुधारना होगा. अदालतों को इन हत्यारों को सज़ा देनी होगी.
 
लोगों को समझना होगा कि इज़्ज़त मारने में नहीं—बल्कि बेटियों को उनकी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने देने में है. जिस समाज में आधी आबादी डरी, चुप या मरी हुई हो, वह तरक्की नहीं कर सकता. अगर आप चाहें तो इस लेख को समाचार पत्र या पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए एक उपयुक्त हेडलाइन और उपशीर्षक भी प्रदान किया जा सकता है.