नागपुर के ‘ट्रक किंग’ प्यारे खान कोविड मरीजों का बने सहारा

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 20-04-2021
उखड़ती सांसों को सहारा
उखड़ती सांसों को सहारा

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

कभी किसने सोचना था कि देश के लाखों लोग अस्पतालों में एक साथ भर्ती होगे और उनकी उखड़ती सांसों को थामने केलिए रोजाना 2000 से अधिक मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी. इसकी उपलब्धता की कमी ने हर तरफ हाहाकार मचाया हुआ है. कोरोना के रोगी इसकी कमी के कारण रोजना सैकड़ों की संख्या में मौत के मुंह में समा रहे हैं.
 
हालांकि, इस कमी को पूरा करने के लिए राज्य सरकारें महंगी ऑक्सीजन खरीदने और केंद्र 50 हजार मीट्रिक टन यह जीवन रक्षक गैस विदेशों से आयात करने में जुटी है, वहीं कुछ लोगों ने अपनी छोटी-छोटी कोशिशों से उखड़ते सांस के रोगियों की जान बचाने की कवायद शुरू कर दी है. वे अपने स्तर से लोगों के घरों और अस्पतालों में सिलेंडर भर-भर के कहीं बाइक से तो कहीं गैस कंटेनर के जरिया ऑक्सीजन पहुंचा रहे हैं. 
 
ऐसे ही लोगों में से एक हैं संतरा बेचने से लेकर आज तरक्की की बुलंदियों पर खड़े प्यारे खान. जानकर आश्चर्य होगा कि जैसे ही उन्हें पता चला कि नागपुर के जीएमसी यानी सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की किल्लत हो गई है, उन्होंने एक ही झटके में
 
16 टन ऑक्सीजन पहुंचा दिया. जामयत-ए-इस्लामी ने नागपुर के पंचपोली में 100 बेड का कोविड अस्पताल स्थापित किया है. इसका संचालन करने वाले डाक्टर अनवार के आग्रह पर अब इस अस्पताल के लिए भी एक टैंकर ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की तैयारी में लग गए हैं. यही नहीं प्यारे खान ने 50 लाख रूपये केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को भी कोरोना मरीजों के सहायतार्थ उपलब्ध कराए हैं. बता दें कि गडकरी भी नागपुर से ही हैं.
 
दिलचस्प कहानियों के पिटारा प्यारे खान

वैसे, मूलरूप से नागपुर निवासी प्यारे खान की यह कोई पहली दिलचस्प कहानी नहीं है. आटो ड्राइवर और रेलवे स्टेशन पर संतरा बेचकर ‘ट्रक किंग’ बने इस शख्स की पूरी जिंदगी ही दिलचस्प किस्से-कहानियों से भरी है.
 
प्यारे खान ने झुग्गी झोपड़ी में जिंदगी गुजारने, पाई-पाई को मोहताज होने और रेलवे स्टेशन पर संतरा बेचने से लेकर करोड़ों की कंपनी खड़ी करने तक का सफर तय किया है. उनकी तरक्की की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है.
 
दसवीं फेल, जिंदगी के इम्तीहान में पास 

प्यारे खान का जन्म झुग्गी झोपड़ी में हुआ. मां किराना की दुकान चलाती थी. पिता गांवों फेरी लगाकर कपड़े बेचते थे. घर की खराब स्थिति कर प्यारे खान ने रेलवे स्टेशन पर संतरे बेचना शुरू किया. पढ़ाई भी जारी रखी, पर दसवीं पास नहीं करने पर स्कूल छोड़ दिया. फिर मां के गहने बेचकर 11 हजार रुपए डाउन पेमेंट देकर ऑटो खरीदा. अब ऑटो से संतरे बेचने लगे. यह सिलसिला वर्ष 2001 तक चला.
 
बैंक ने लोन देने से किया इनकार

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्यारे खान को वर्ष 2001 के बाद लगा कि कुछ बड़ा करना चाहिए. दिक्कत यह थी कि इसके लिए पैसे कहां से आए. रिश्तेदार से 50 हजार उधार मांगे तो उसने घर के कागज रखवाना चाहता. फिर बैंकों से लोन के लिए चक्कर काटे. घर स्लम एरिया में होने की वजह से बैंक लोन नहीं देते थे. आखिरकार वर्ष 2004 में आईएनजी वैश्य बैंक से उन्हें 11 लाख का लोन मिल मिल गया.
 
ट्रक दुर्घना से मायूसी में डूबे

बैंक से 11 लाख का कर्ज मिलते ही उन्होंने ट्रक खरीदा. उसे नागपुर- अहमदाबाद चलाते थे. तब लगा अब किस्मत बदलने वाली है. मगर छह महीने बाद ही ट्रक दुघर्टनाग्रस्त हो गया. इसपर लोगों ने उन्हें ट्रांसपोर्ट का धंधा छोड़ने की सलाह दी, पर प्यारे खान नहीं माने.
 
हौसले से आए मैदान में

ट्रक ठीक करवाकर एक बार  फिर प्यारे खान सड़क पर लेकर आए. बैंकों से आग्रह करके लोन की किश्त देरी से दी. फिर देखते ही देखते धंधा पटरी पर आ गया. वर्ष 2007 में अश्मी रोड ट्रांसपोर्ट नाम से अपनी कंपनी खोल ली.
 
...और बदल गई किस्मत

अश्मी रोड ट्रांसपोर्ट को काम मिलना शुरू हो गया. ट्रक और स्टाफ बढ़ाए. वर्ष 2013 में भूटान कुछ सामान लेकर जाना था. दिक्कत यह थी कि रास्ते में एक गेट था, जो साढ़े 13 फीट ऊंचा था. जबकि ट्रक की ऊंचाई साढ़े 17 फीट थी. ऐसे में भारत के अधिकांश ट्रांसपोर्ट वालों ने काम लेने से मना कर दिया.
 
भूटान पहुंचकर लिया दम

​प्यारे खान ने उस काम को चैलेंज के रूप में लिया. खुद भूटान गए. वह दरवाजा देखा. तय किया कि उनकी कंपनी अश्मी रोड ट्रांसपोर्ट का ट्रक यह सामान लेकर भूटान जाएगा. प्यारे खान ने तरकीब लगाई. उस दरवाजे के नीचे उतनी ही जमीन खोदी गई ताकि ट्रक आसानी से निकल सके.
 
कंपनी में हैं 700 कर्मचारी

भूटान का काम सफलतापूर्वक करने पर प्यारे खान की कम्पनी को मानों पंख लग गए. भूटान के साथ नेपाल और दुबई में प्यारे खान की कंपनी के ट्रक ट्रांसपोर्ट का काम कर रहे है. एक रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी में अब 1000 ट्रक हैं और कर्मचारी 700 से ज्यादा. सालाना टर्न ओवर 600 करोड़ तक पहुंच गया है.
 
और भी हैं प्यारे खान

उखड़ती सांस वाले कोरोना मरीजों तक मुफ्त ऑक्सीजन पहुंचाने वाले इस देश मंें और भी कई हैं प्यारे खान. मुंबई का ओलिव ट्रस्ट भी जरूरतमंद कोरोना रोगियों को मुफ्त ऑक्सीजन उपलब्ध कराने मंें जुटा है. रोजना करीब 50 लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया कराया जा रहा है.
 
ट्रस्ट से जुड़े शुजा अहमद कहते हैं कि मानवीय सेवा भी इबादत है. इसलिए रमजान के इस महीने में जहां हम रोजा, नमाज और इबादत में लगे हैं वहीं दिन-रात जरूरतमंदों तक ऑक्सीजन पहुंचाने का भी काम कर रहे हैं. इसके लिए ट्रस्ट ने चार मोबाइल नंबर जारी किए हैं. मांग आने पर मोटरसाइकिलों से ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाया जाता है.
 
शुजा का कहना है कि कोविड की पिछली लहर के दौरान भी उन्होंने ऑक्सीजन वितरण करने का काम किया था. इस बार लोग ऑक्सीजन के लिए ज्यादा परेशान हैं. अस्पतालों में भी कमी हो गई है.मुंबई के ओलिव ट्रस्ट की तरह ही दिल्ली में जमीयत उलेमा-ए-हिंद और पुरानी दिल्ली के गलीराजन के सवाब समाज फाउंडेशन भी जरूरतमंदों तक मुफ्त ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाने का काम कर रहे हैं. सभी ने अपने-अपने नंबर जारी कर रखे हैं. अलग बात है कि इस समय स्थिति ऐसी है कि नंबर लगाने पर जल्द किसी से बात ही नहीं हो पाती.
 
 

मांग और खपत में भारी उछाल


कोरोना मामलों में उछाल के चलते देश में ऑक्सीजन सिलेंडरों की खपत एवं मांग बढ़ गई है, जिसे देखते हुए सरकार ने मेडिकल ऑक्सीजन आयात का फैसला किया है. कोरोना संकट की वजह से जिन राज्यों में मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडरों की मांग ज्यादा है उनकी जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. पिछले साल कोरोना संकट बढ़ने और इलाज में ऑक्सीजन की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार ने मार्च 2020 में कई मंत्रालयों, विभागों और अधिकारियों को मिलाकर एक उच्चाधिकार प्राप्त समूह का गठन किया था. इस समूह को ईजी-1 नाम से जाना जाता है.


12 राज्यों में अधिक मांग 
 
देश के 12 राज्यों में कोरोना संक्रमण की स्थिति गंभीर है. इन 12 राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग ज्यादा है. समूह इन राज्यों में ऑक्सीजन की जरूरत को देखते हुए इसकी मैपिंग कर रहा है.
 
उम्मीद है कि महाराष्ट्र में उसकी उत्पादन क्षमता से ज्यादा ऑक्सीजन की मांग होने वाली है. जबकि मध्य प्रदेश में एक भी ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र नहीं है. कर्नाटक, राजस्थान और गुजरात में ऑक्सीजन सिलेंडर की मांग में तेजी आ रही है.    
 
ऑक्सीजन होगा आयात

राज्यों में बढ़ती मांग को देखते हुए समूह ने 50,000 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन का आयात करने का फैसला किया है. सरकार इसके लिए टेंडर निकालेगी. देश में इस समय 50,000 मीट्रिक टन से ज्यादा ऑक्सीजन का स्टॉक है. इसमें औद्योगिक ऑक्सीजन स्टॉक भी शामिल है. 
 
रोजाना 7127 मीट्रिक टन उत्पादन का दावा

सरकार का कहना है कि इस समय देश में रोजाना करीब 7127 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है. जरूरत पड़ने पर स्टील संयंत्रों में  बचत के रूप में रखे गए ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जा रहा है. देश के पास प्रतिदिन 7127 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन करने की क्षमता है.
 
ईजी-2 के निर्देश पर संयंत्र पिछले दो दिनों से अपनी क्षमता का 100 फीसदी उत्पादन कर रहे है. एक अधिकारी ने कहा कि मेडिकल ऑक्सीजन की मांग एवं आपूर्ति की स्थिति पर उच्चाधिकार समूह की नजर है. 
 
दूसरे राज्यों पर निर्भर राज्य

जिन राज्यों में ऑक्सीजन का उत्पादन नहीं होता है, वे दूसरे राज्यों पर ऑक्सीजन के लिए निर्भर है. दिल्ली में ज्यादातर ऑक्सीजन हरियाणा से आता है. पंजाब भी हरियाणा से ही ऑक्सीजन लेता है. उत्तराखंड राजस्थान को ऑक्सीजन का सप्लाई करता है. मध्यप्रदेश राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से ऑक्सीजन खरीदता है.
 
वहीं कर्नाटक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को ऑक्सीजन सप्लाई करता है. भारत में एक दिन की ऑक्सीजन की मांग 2,000 मीट्रिक टन है. उत्पादन क्षमता 6,400 मीट्रिक टन है, लेकिन इसका उपयोग अन्य उद्योगों द्वारा भी किया जाता है. प्रतिदिन कोरोना के मामले बढ़ने से ऑक्सीजन की मांग बढ़ी है. इस बीच इफको ने गुजरात में ऑक्सीजन का न्या प्लांट लगाने का ऐलान किया है.
 
महाराष्ट्र में दैनिक मांग 700 मीट्रिक टन

एक अधिकारी ने कहा कि महाराष्ट्र में ऑक्सीजन की दैनिक मांग 700 मीट्रिक टन हो गई है, जबकि राज्य की उत्पादन क्षमता 1200 मीट्रिक टन से अधिक है. महाराष्ट्र में रोज मिल रहे हजारों की तादाद में नए कोरोना मरीजों से अस्पताल भरे पड़े हैं.
 
राज्य के हॉटस्पॉट बन चुके शहरों खासकर मुंबई, पुणे, नासिक, नागपुर आदि के अस्पतालों में बेड लगभग फुल हैं. आईसीयू व वार्ड भरने के बाद गलियारों में बिस्तर लगाकर मरीजों की जान बचाई जा रही है. ऑक्सीजन की भी कमी होने लगी है. 
 
 
दोगुनी हुई कीमत

महाराष्ट्र में जिन उद्योगों द्वारा ऑक्सीजन सिलिंडर का कच्चे माल की तरह इस्तेमाल होता है, उन पर  रोक लगा दी गई है, ताकि यह मरीजों के लिए इस्तेमाल किया जाए. एक नोटिफिकेशन के मुताबिक, ऑक्सीजन सिलिंडर की कीमत दोगुनी होकर 360 रुपये तक पहुंच गई.
 
अस्पतालों में इसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए उद्योगों पर रोक लगाई गई है. इस बीच यदि उद्पादन के लिए ऑक्सीजन सिलिंडर का उस्तेमाल करना जरूरी होता है, तो लाइसेंसिंग अथॉरिटी से इसकी विशेष इजाजत लेनी होगी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि महाराष्ट्र के कई जिलों में आईसीयू बेड और ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई है.
 
ग्लोबल फाउंडेशन के अनुसार औरंगाबाद के अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलिंडरों की कमी हो गई है. वैसे ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी की शिकायत लगभग सभी प्रदेशों से मिल रही है.
 
इंदौर केवल मेडिकल ऑक्सीजन के लिए पाबंद 

मध्यप्रदेश में कोविड-19 से सबसे ज्यादा प्रभावित इंदौर जिले के अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग चरम पर है. इसके चलते प्रशासन ने जिले में स्थित सभी संयंत्रों से अन्य कारखानों को औद्योगिक ऑक्सीजन की आपूर्ति पर रोक लगा दी है. संयंत्र मालिकों को आदेश दिया है कि फिलहाल वे अपनी पूरी क्षमता से केवल मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन करें. 
 
ग्रीन कॉरिडोर बनेगा

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मुद्दे पर राज्यों के साथ एक वर्चुअल बैठक की थी. इस बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव, सचिव डीपीआईआईटी और सचिव फार्मास्यूटिकल्स के अलावा  सात बड़े राज्यों के स्वास्थ्य सचिव और उद्योग सचिव भी मौजूद थे.
 
इस ऑनलाइन मीटिंग के दौरान केंद्रीय रेलवे व वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से राज्यों से लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन टैंकरों को शहर में लाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाने की अपील की थी, जिसपर काम शुरू हो गया है. इसके अलावा ट्रेनों से भी ऑक्सीजन पहुंुचाने का काम शुरू हो गया है.
 
 

बढ़ा वेंटिलेटर उत्पादन

सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं, देश में वेंटिलेटर की भी कमी हो रही है. देश में कोविड-19 की दूसरी लहर बढ़ने के साथ ही वेंटिलेटर की मांग फिर जोर पकड़ने लगी है. इसके चलते विनिर्माताओं ने इस जीवन रक्षक उपकरण का उत्पादन बढ़ा दिया है. इस उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए गुजरात में वेंटिलेटर विनिर्माता उत्पादन में तेजी ला रहे हैं.


वडोदरा स्थित मैक्स वेंटीलेटर के संस्थापक और सीईओ अशोक पटेल ने बताया कि, ‘कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों की ताजा लहर के कारण वेंटिलेटर की मांग बढ़ रही है.‘ मौजूदा लहर में कुछ रोगियों पर गंभीर असर पड़ रहा है. इस लहर में, मरीजों को संक्रमण होने के पांच से छह दिनों के बाद वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है, जबकि पहले वेंटीलेटर की आवश्यकता 10 से 15 दिनों के बाद होती थी.
 
उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी ने उत्पादन को प्रति माह 400 वेंटिलेटर तक बढ़ाया है, जो इस साल के पहले दो महीनों के दौरान बहुत कम था. कंपनी की आईसीयू वेंटिलेटर बनाने की क्षमता मार्च 2020 में सिर्फ 20 यूनिट प्रति माह थी. अब  क्षमता को बढ़ाकर 1,000 इकाई प्रति माह तक कर दिया गया है.