एससीओ शिखर वार्ता : सवालों के बीच जानिए मुस्लिम बहुल देश उज्बेकिस्तान के बारे में

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 16-09-2022
एससीओ शिखर वाता: सवालों के बीच जानिए  मुस्लिम बहुल देश उजबेकिस्तान के बारे में
एससीओ शिखर वाता: सवालों के बीच जानिए मुस्लिम बहुल देश उजबेकिस्तान के बारे में

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एससीओ की शिखर वार्ता में शामिल होने के लिए उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद पहुंच गए हैं. मादी के इस दौरे को लेकर कई तरह की चर्चाएं और सवाल हैं. पीएम मोदी की चीन के राष्ट्रपति से क्या बात होगी , रूस हमारी जरूरतों के हिसाब से क्या रिस्पांस देगा, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मोदी की दुआ-सलाम होगी या नहीं, एससीओ शिखर सम्मेलन से क्या ठोस नतीजे निकलने वाले हैं, जो भविष्य पर असर डालेंगे ? इन सवालों के जवाब तो शिखर वार्ता के बाद ही मिलने वाले हैं, फिलहाल आप यह जानिए कि यह इस्लामिक देश कैसा है और यहां रहने वाले मुसलमान कैसे हैं ? 

खुदा और रसूल शिद्दत से मानने के बावजूद उज्बेकी समरकंद के मुसलमान खुले विचारों के माने जाते हैं. यहां की मस्जिदों में अक्सर महिलाएं भी नमाज पढ़ने पहुंचती हैं तथा परदा प्रथा जबरन थोपने का रिवाज नहीं है.
 
समरकंद, फारसी का शब्द है. यह उजबेकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है. मध्य एशिया में स्थित यह नगर ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है.
 
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इस शहर का महत्व पश्चिम और चीन के मध्य स्थित होने के कारण बहुत अधिक है. भारत के इतिहास में भी इस नगर का महत्व है, क्योंकि बाबर इसी स्थान के शासक बनने की चेष्टा करता रहा है.
 
बाद में जब वह विफल हो गया तो भागकर काबुल आया, जिसके बाद वो दिल्ली पर कब्जा करने में कामयाब हो गया. बीबी खानिम की मस्जिद इस शहर की सबसे प्रसिद्ध इमारत है. 2001 में यूनेस्को ने इस 2750 साल पुराने शहर को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया था. इसका सूची में नाम हैः समरकंद :संस्कृति का चौराहा.
 
यह तुर्की-मंगोल बादशाह तैमूर द्वारा स्थापित तैमूरी साम्राज्य की राजधानी रहा है. समरकंद 719 मीटर की ऊँचाई पर जरफशान नदी की उपजाऊ घाटी में स्थित है.
 
यहां के निवासियों के मुख्य व्यवसाय बागबानी, धातु एवं मिट्टी के बरतनों का निर्माण, कपड़े बनाना, रेशम, गेहूं व चावल की कृषि और घोड़ा व खच्चर का पालन है.
शहर के बीच रिगिस्तान नामक एक चौराहा है, जहां पर विभिन्न रंगों के पत्थरों से निर्मित कलात्मक इमारतें मौजूद हैं. शहर की चारदीवारी के बाहर तैमूर के प्राचीन महल हैं.
 
ईसापूर्व 329 में सिकंदर महान ने इस नगर का विनाश किया था.1221 ई. में इस नगर की रक्षा के लिए 1,10,000 लोगों ने चंगेज खान का मुकाबला किया था. 1379 ई. में तैमूर ने इसे अपना निवासस्थान बनाया.
 
10 वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह चीन का भाग रहा है. फिर बुखारा के अमीर के तहत रहा. अंत में रूसी साम्राज्य का हिस्सा बन गया.
 
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उज्बेकिस्तान बना ‘मिनी मक्का’
 
उज्बेकिस्तान में इस तरह की सैकड़ों मस्जिदें हैं जहां साल में कई महीने घरेलू और विदेशी जायरीन का मजमा लगा रहता है.उज्बेकिस्तान दुनिया का मिनी मक्काश् बनना चाहता है जहो हर साल तमाम देशों के तीर्थयात्री सजदे के लिए आते हैं.
 
मध्य एशिया के इस सबसे अधिक आबादी वाले देश में कई बेहद पुरानी संरक्षित मस्जिदें हैं और कई नामी दरगाहें हैं जो सिल्क रूट पर पड़ने वाले समरकंद और बुखारा जैसे शहरों में स्थित हैं.
 
लाखों उज्बेक नागरिकों के लिए ये पवित्र स्थान हैं. लेकिन उज्बेक सरकार के लिए ये पर्यटन को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है. वो भी तब, जब दशकों के अलगाववादी और सत्तावादी शासन के बाद देश आजाद हुआ है.
 
समरकंद में दर्जनों शानदार कब्रगाहें मौजूद हैं. चगताई मंगोलों के खान, तैमूरलंग की कब्र इसी शहर में है. उनके अलावा खगोल विज्ञानी उलुघबेक और पैगंबर मोहम्मद के चचेरे भाई कुसम इब्न अब्बास को भी समरकंद में ही दफनाया गया.कुसम इब्न अब्बास ही सातवीं शताब्दी में इस्लाम को इस देश में लेकर आए थे.
 
दुनिया के कई बड़े धार्मिक गुरू और विज्ञानी समरकंद में ही दफ्न हैं. यहां एक ऐसी कब्र भी है जो सबसे अलग है. ये है दानियार की कब्र, जहां पहुंचने के लिए हर सुबह सैकड़ों लोग शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक पहाड़ी की चोटी पर चढ़ते हैं.
 
चोटी तक पहुंचने का रास्ता पुराने शहर के खंडहरों से होकर गुजरता है. ये रास्ता पिस्ते और खुबानी के पेड़ों से घिरा है. चढ़ाई के दौरान कुछ विशालकाय मकबरे भी देखने को मिलते हैं.
 
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पहाड़ी की चोटी पर हवा के साथ चिड़ियों के चहचहाने की आवाज मिलकर आती है. कुछ लोगों के प्रार्थना करने की आवाज भी सुनाई देती है.यहां अक्सर परिवार साथ में बैठकर दोपहर का भोजन करते हैं. नौजवान सेल्फी लेने में व्यस्त रहते हैं.
 
गौर करने वाली बात है कि यहां पहुंच रहे लोगों में सिर्फ मुसलमान नहीं हैं. ईसाईयों की भी अच्छी खासी संख्या है, क्योंकि इस जगह का जिक्र बाइबल में सेंट डैनियल (एक पैगंबर) के अंतिम विश्राम स्थान के तौर पर किया गया है.उज्बेक लोग पैगंबर डैनियल को दानियार कहते हैं.
 
फिरदोव्सी एक युवा गाइड हैं. वो बताते हैं, मुसलमान, ईसाई और यहूदी. यहां सब आते हैं. वो सभी यहां अपने-अपने मजहब के अनुसार इबादत करते हैं. सेंट डैनियल एक यहूदी थे लेकिन हमारे मुस्लिम समाज के लोग उनका ये मानकर सम्मान करते हैं कि वो अल्लाह के पैगंबर थे.उज्बेकिस्तान एक मुस्लिम बहुल देश है.
 
दिलरबो अपनी बेटी सितोरा और नातिन के साथ दानियार की कब्र को देखने आई हैं. वो बताती हैं, मैं यहां अक्सर आती हूं. यहां आकर मैं पैगंबर दानियार की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करती हूं. वो सिर्फ ईसाईयों के नबी नहीं थे. वो इंसानियत के लिए आए थे. मैंने उनके सम्मान में ही अपने नाती का नाम दानियार रखा है.
 
यहां हर रोज एक मौलाना दोपहर में प्रार्थना आयोजित करते हैं और उसके बाद लोगों को पंक्ति बनाकर कब्र को करीब से देखने का मौका दिया जाता है.ये एक असाधारण इमारत है. करीब 65 फीट लंबी और मध्य-युगीन इस्लामी शैली में आंतरिक मेहराब और एक गुंबददार छत के साथ रेत के रंग की ईंटों से बनी हुई है.
 
मकबरे के अंदर एक 18 मीटर लंबा ताबूत रखा हुआ है. इसके ऊपर हरे रंग का एक मखमल का कपड़ा बिछा है जिस पर पवित्र कुरान की आयतें लिखी हैं.मकबरे से बाहर पिस्ता का एक बड़ा पेड़ है जिसे छूकर लोग दुआएं मांगते हैं.रूस से आईं क्रिस्टीना और इसराइल से आईं सुजैन ने बताया कि वो ईसाई हैं और उनके यहां इस स्थान की बड़ी मान्यता है.
 
सुजैन ने कहा कि ईसाई इस मकबरे पर आकर प्रार्थना कर पा रहे हैं, ये उज्बेक लोगों के सहिष्णु होने की पहचान है. कई लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए भी यहां आकर प्रार्थना करते हैं.
 
उपचार के लिए जादू-टोने का इस्तेमाल करना और इलाज के लिए संतों के मकबरों पर जाकर प्रार्थना करना, उज्बेकिस्तान की परंपरा का अहम हिस्सा है.
 
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उज्बेक लोग आज भी उन परंपराओं का पालन करते हैं जो यहां इस्लाम के आने से पहले से थीं. उज्बेकिस्तान में इस्लाम 1200 साल पहले आया लेकिन लोगों ने अपनी परंपराओं पर धर्म को हावी नहीं होने दिया.शायद यही वजह है कि सेंट डैनियल के मकबरे से जुड़ी तमाम किंवदंतियां यहां सुनाई जाती हैं.
 
सेंट डैनियल के ताबूत की लंबाई 18 मीटर क्यों है, इसके बारे में यहां के लोग कई तरह के किस्से सुनाते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि सेंट डैनियल बहुत लंबे थे तो कुछ कहते हैं कि ये ताबूत वक्त के साथ लंबा हो रहा है.
 
उज्बेकिस्तान सरकार का दावा है कि उनके यहां ऐसे सैकड़ों ऐतिहासिक मकबरे हैं, जिनमें से कई को सोवियत संघ के समय बंद कर दिया गया था.एक धार्मिक स्कूल के छात्र रहे खुर्शीद यूलदोशेव कहते हैं, मध्य एशियाई इस्लाम काफी लचीला है.
 
ये समावेशी है और स्थानीय परंपराओं के साथ मिश्रित है. यही कारण है कि यहां धर्म की व्याख्या और अधिक सहिष्णुता से की गई है. मकबरों का दौरा करने की परंपरा एक सौम्य परंपरा है. ये हमारी संस्कृति का हिस्सा है. इसका राजनीतिक इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है.
 
राजनीतिक इस्लाम वो बला है जिसका उज्बेक सरकार को बहुत डर है. दिवंगत राष्ट्रपति इस्लाम करीमोव के 26 साल के निरंकुश शासन में हजारों स्वतंत्र मुसलमानों को जेल भेजा गया था.
 
अब उज्बेकिस्तान का दावा है कि वो बदल रहा है.साल 2016 में करीमोव की मृत्यु के बाद सत्ता में आने वाले, उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव ने वादा किया था कि देश में पहले से ज्यादा धार्मिक स्वतंत्रता होगी.
 
चगताई मंगोलों के खान, तैमूरलंग के मकबरे की शानदार छत. स्थानीय भाषा में इसे गुरे मीर कहा जाता है.ये एक सच्चाई है कि उज्बेकिस्तान में भी कोई नहीं जानता कि वहां मकबरों की संख्या कितनी है. कुछ अधिकारी इनकी संख्या दो हजार के करीब बताते हैं.
 
लेकिन ये भी सच है कि अगर उज्बेक सरकार इन मस्जिदों और मकबरों पर ठीक से काम करे, तो देश का पर्यटन बढ़ाने में उन्हें काफी मदद मिल सकती है.
 
उज्बेकिस्तान की पर्यटन समिति के डिप्टी हेड रहे अब्दुल अजीज अक्कुलोव कहते हैं, पिछले साल लगभग 90 लाख उज्बेक नागरिकों ने तीर्थयात्रा की और इन मकबरों पर जाकर प्रार्थना की.हालांकि, विदेशी पर्यटकों की संख्या अभी थोड़ी कम है. पिछले एक साल में करीब 20 लाख विदेशी लोग ही उज्बेकिस्तान घूमने पहुंचे थे.