रामपुरी हब्शी हलुआः नबाब हामिद अली ने अफ्रीकी हकीम से बनवाया था ये हलुआ

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 14-01-2023
हब्शी हलुआ
हब्शी हलुआ

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली-रामपुर
 
आपने उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर का हब्शी हलुआ नहीं खाया, तो क्या खाया. अपने स्वाद में ये लिज्जतदार है और यह हलुआ उर्दू के लफ्ज ‘हबाश’ यानी गहरेरंग से बावस्ता है. अपनी खास मिठास के लिए मशहूर ये हलुआ अपने साथ तर घी के साथ उर्दू भी समेटे हुए है. यह आमतौर पर सर्दियों में बनाया और खाया जाता है.
 
डॉ. अहीद खान इस हलुआ की शान में ट्वीट करते हुए कहते हैं, ‘‘रामपुरी हब्शी हलुआ की कहानीः उर्दू शब्द ‘हबाश’ या डार्क से उत्पन्न, हब्शी हुलआ सर्दियों की मिठाई है और नसरुल्ला खान बाजार के पास एक बहुत ही विशिष्ट बाजार में तैयार की जाती है. रामपुर के अमानत उल्लाह खान को पकवान को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है.’’

 

 

इसके आगे अहीद खान बताते हैं, ‘‘रोहिल्ला पठान गेहूं के शौकीन थे और आधे अंकुरित या उबले हुए गेहूं के दानों को हलुआ, हब्शी हलुआ और खिचड़ी आदि व्यंजनों में शामिल करते थे. हब्शी हलुआ का उपयोग सर्दियों के व्यंजन के रूप में किया जाता है और इसे अंकुरित गेहूं के आटे, घी की खुरचन, घी, पिस्ता, दूध, गुड़  से बनाया जाता है. कुछ लोग मूंगफली के पेस्ट को हलुआ में और यहां तक कि सूजी या तिल को भी दानेदार बनावट पाने के लिए डालते हैं. यह रामपुर में कोई भी सर्दियों की दावत हब्शी हलुआ के घी के अंगुलियों में लगे बिना पूरी नहीं होती है.’’

रामपुरी हब्शी हलुआ के बारे में पत्रिकाडॉटकॉम के मुताबिक, मुगलकालीन इस डिश के दीवाने न सिर्फ रामपुर और देश में हैं, बल्कि अब इस मिठास की मांग सात समुन्दर पार तक है. इस हलवे के शौकीन अब सऊदी के शेख भी बन चुके हैं. देश से जाने वाले लोगों से वे इस हलवे की खास डिमांड रखते हैं. रामपुर में इसकी शुरुआत नवाब खानदान ने शुरू करवाई थी. जिसके बाद आज ये आम लोगों के लिए भी मौजूद है.

तत्कालीन नबाब हामिद अली खान अफ्रीका के एक हकीम को रामपुर लाए थे, उस हकीम से उन्होंने कहा कुछ विशेष तरह का हलवा बनाने के लिए कहा था. हामिद अली के आदेश का पालन करते हुए हकीम ने तमाम जड़ी बूटियों, मेवा मिष्ठान, समेत देसी घी से हलवा तैयार किया. जिसका नाम हब्शी हलवा रखा. नबाब हामिद अली खान को ये हलवा बहुत पसंद आया, उनकी पसंद की वजह से यह हलवा उनके शासनकाल में भी लोग बहुत पसंद करते थे और आज भी.

रामपुर में हब्शी हलुआ की बहुत सी दुकानें खुल गई हैं. रामपुर आने वाले लोग लोगों की सिफारिश पर न केवल ये हलुआ खाते हैं, बल्कि घर भी ले जाते हैं. अब इसी शोहरत देश-दुनिया में फैल चुकी है. प्राचीन नसरुल्ला खान बाजार में अमानत भाई की दुकान इस हलुआ के लिए मशहूर है. इसे सर्दियों का तोहफा भी कहा जाता है.

अमानत भाई के पोते हारिस रजा बताते हैं कि यह दुकान नवाब रजा अली खान (1930-1949) के समय की है. इसके संस्थापक अमानत उल्ला खान ने अपने पिता से हलुआ बनाने की कला सीखी और इसे गुलकंद (गुलाब की पंखुड़ी वाली मिठाई) के साथ नवाब रजा के लिए तैयार किया. अब दो अमानत भाई दुकानें हैं, जिनमें से प्रत्येक पुराने उस्ताद के परिवार की एक अलग शाखा द्वारा चलाई जाती है, प्रत्येक वास्तविक नुस्खा रखने का दावा करती है.