सिर्फ शायरी ही नहीं दिल्ली में कबाब के लिए भी मशहूर हैं गालिब

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 03-01-2023
सिर्फ शायरी ही नहीं दिल्ली में कबाब के लिए भी मशहूर हैं गालिब
सिर्फ शायरी ही नहीं दिल्ली में कबाब के लिए भी मशहूर हैं गालिब

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

मशहूर शायर मिर्जा गालिब को पूरी उर्दू दुनिया के साथ साहित्य से दिलचस्पी रखने लोग बड़े अदब के साथ उनका नाम लेते हैं. गालिब की गजल और नजमें आज भी उनकी मौजूदगी का अहसास पैदा करता हैं. मोहब्बत की नगरी आगरा में पैदा हुए और दिल्ली के बल्लीमारान के इलाके में आ गए,जहां शेर ओ शायरी की महफिलें लगाते थे.

उन्होंने अपनी शायरी की अलग दुनिया बनाई और खूब नाम कमाया. गालिब के बारे में मशहूर है कि वह शराब पीने और खाने-पीने के बहुत शौकीन थे. इसी कारणवश आज भी हजरत निजामुद्दीन दरगाह इलाके में मौजूद गालिब की आखरी रिहाईशगाह से कुछ ही दूरी पर ‘गालिब कबाब’ मिर्जा असदुल्लाह खान गालिब की याद ताजा कराता है.

कबाब और टिक्कें की महक

जिस गली में गालिब कबाब मौजूद है, उस गली का नाम मिर्जा गालिब के नाम पर रखा गया हैं. यहां दूर से ही कबाब और टिक्के की महक आती है, जो लोगों को अपनी तरफ खींचती हैं. दुकान दोपहर में खुलती है और रात बारह बजे से पहले इसके शटर बंद नहीं होते हैं.

विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं नसीर

गालिब कबाब के मालिक नसीर अहमद बताते हैं कि हमारे होटल के 70 साल पूरे हो गए हैं. हमसे पहले मेरे पिता इस दुकान को चलाते थे, उनके गुजर जाने के बाद मैंने इस विरासत को आगे बढ़ाया और अब मेरे दोनों लड़के इस काम में लगे हुए हैं.

यहां चिकन कबाब, मटन कबाब, मटन कोरमा, चिकन कोरमा, मटन निहारी आदि मिलते हैं. आज भी गालिब अकादमी में जो शायरी करते हैं, तो यहां से कबाब मंगवाते हैं.

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वह आगे कहते हैं कि यहां जो भी लोग मिर्जा असदुल्लाह की कब्र की जियारत करने आते हैं या गालिब अकादमी आते हैं, तो वह लोग यहां भी आते हैं. आज भी लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं.

बचपन से खा रहे गालिब कबाब

बचपन से गालिब कबाब के स्वाद को चखने वाले 46 वर्षीय नारी बताते हैं कि मैं जब 10वीं कलास था, तो उस समय से कबाब खाने आता हूं. एक प्रश्न के उत्तर में वह आगे कहते हैं कि दिल्ली में कबाब की बहुत सारी दुकानें हैं, लेकिन यहां का लजीज खाना हमें यहां आने पर मजबूर कर देता है. यहां के कबाब की जो क्वालिटी है, दूसरे में नहीं हैं. मैं अपने दोस्तों के साथ यहां आते रहता हूं. मेरा बेटा यहां का दीवाना हैं, वह अक्सर फोन करता है कि पापा आप वहां से कबाब लेकर आना.

पिता को खाने का शौक था

नसीर अहमद ने बताया कि हमारे पिता जी को खाने-पीने का बहुत शौक था. इस लिए उन्होंने गालिब कबाब की दुकान खोली. वह एक कॉम्पिटिशन के बारे में कहते हैं कि सालों पहले मोर्यो होटल में एक कम्पटीशन का आयोजन हुअ,ा जिसमें ये देखा गया कि किसके कबाब का जायजा सबसे लजीज है, तो इस मुकाबले में हमने ये मुकाम हासिल किया.

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विदेशी सैलानी पहुंचते हैं

गालिब कबाब ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली है. नसीर अहमद इस बारे में कहते हैं कि हमारे यहां लोग अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, दुबई आदि देश के लोग जब दिल्ली आते हैं, तो यहां भी पहुंच कर कबाब का जायका चखते हैं.

दूसरी जगह ऐसा जायका नहीं मिलता

12 सालों से गालिब कबाब खाने वाले अब्दुल साद ने बताया कि मैं दिल्ली से ही हूं, लेकिन यहां जिस तरह का कबाब खाने को मिलते हैं, वह दिल्ली में कहीं दूसरी जगह नहीं मिलता हैं. बेंगलुरु के रहने मोहम्मद फारूक कहते हैं कि जब भी में बेंगलुरु से दिल्ली आता हूं, तो एक बार यहां पहुंच कर कबाब जरूर खाता हूं.