राजीव कुमार सिंह/ नई दिल्ली
बिहार के पूर्वी और पश्चिमी चंपारण जिलों और उसके आसपास के इलाकों से चंपारण मटन का क्या नाता है और कैसे यह दो दशकों के भीतर ही देश और दुनिया में इसकी रेसिपी मशहूर हो गई. अभी हाल ही में 'चंपारण मटन' के नाम से बनी एक शॉर्ट फिल्म प्रदर्शित हुई है, जो ऑस्कर के स्टूडेंट एकेडमी अवॉर्ड के सेमीफाइनल में पहुंच गयी.
अगर आप भी नॉनवेज के शौकीन है, तो यह बात पक्की है कि आपने चंपारण मीट का नाम सुना ही होगा. अगर बात करे इसके स्वाद की, तो इसमें कोई शक नहीं कि चाहे इसको खाने के लिए आपको थोड़ा चलकर भी जाना पड़े, तो शायद आप संकोच नहीं करेंगे.
चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है. हम बात कर रहे हैं इसी चंपारण के बहुत ही मशहूर मीट की, जो पूरे भारत के बहुत ही मशहूर व्यंजनों में अपन जगह बना चुका है. मांसाहारी लोगों के लिए चंपारण मीट अपने स्वाद की वजह से उनके जेहन में क्या जगह रखती है, ये उनसे बेहतर कोई नहीं बता सकता है.
शुरुआत
पटना के ओल्ड चंपारण मीट हाउस के ओनर गोपाल कुशवाहा का दावा है कि उन्होंने ही सबसे पहले चंपारण मीट हाउस के नाम से दुकान 2014 में खोली जो बाद में बिहार, देश और दुनिया के कई हिस्सों में महज एक दशक से भी कम वक्त में फैल गया. कई दूसरे मुल्कों में भी चंपारण मीट हाउस या अहुना मटन के नाम से रेसिपी बिकने लगी.
आखिर हांडी मटन का क्या है इतिहास?
चंपारण मीट को आहुना, हांडी मीट या बटलोई के नाम से भी जाना जाता है. यह मिट्टी और मटन की जुगलबंदी है. दरअसल, हांडी मटन बिहार का एक लजीज नॉन वेज डिश है. ऐसा कहा जाता है कि इस फेमस व्यंजन को सबसे पहले बिहार के चंपारण जिले में बनाया गया था. चंपारण जिले में यह डिश इतना फेमस हुआ कि चम्पारण के हर चौक-चौराहे पर मिलने लगा और लोगों ने भी काफी पसंद किया.
चंपारण मीट बनाने के लिए किन चीजों का होता है इस्तेमाल?
इस लजीज डिश को बनाने के लिए मीट (इच्छानुसार), प्याज, लहसुन (साबुत), लाल मिर्च (साबुत), तेजपत्ता, अदरक-लहसुन पेस्ट, नमक, धनिया-हल्दी पाउडर, मिर्च और गरम मसाला पाउडर, गरम मसाला (साबुत), सरसों तेल, सौंफ पाउडर, दालचीनी, जीरा, काली मिर्च-लौंग, धनिया पत्ता के साथ दही (स्वादानुसार) का भी इस्तेमाल होता है. इन सबको एक साथ उसी मिट्टी के हांडी में मिला कर हांडी के ढक्कन से बंद कर देते हैं, और उसे सवा घंटे के लिए मध्यम आंच पर पकने के लिए छोड़ देते हैं.
मिट्टी के हांडी पर उसके ढक्कन को गुंथे हुए आटे की लोई से बंद कर देते हैं. बरतन पैक होने की वजह से अंदर भाप मिट्टी के ढक्कन की सतह पर जमता रहता है, वह बाद में मिट्टी में घुलकर फिर से मटन में ही घुल जाता है. मिट्टी और मटन की यह कैमिस्ट्री अहुना मटन को खास बनाती है. पकने से पहले उसका ढक्कन नहीं खोला जाता है. बस बीच-बीच बरतन को आग से हटा कर हिलकोर दिया जाता है, ताकि अंदर का सामान ऊपर-नीचे हो जाये.