कानपुर के गोरक्षक और गोपालक कलीम खान

Story by  संदेश तिवारी | Published by  [email protected] | Date 08-12-2021
कानपुर के गोरक्षक और गोपालक कलीम खान
कानपुर के गोरक्षक और गोपालक कलीम खान

 

संदेश तिवारी/ कानपुर

गोरक्षा को लेकर पहले काफी विवाद होता रहा है और इसने कई बार तनाव की शक्ल भी ली है लेकिन कुछ मिसालें ऐसी हैं जिन पर लोगों को नाज होगा. मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने गायों की रक्षा का बीड़ा उठाया है.

यह किसी सामजिक संगठन या समाज मंच की गौ सेवा नहीं है बल्कि एक सच्चे मुसलमान की अपनी गौशाला है. इस मुसलमान ने गायों को चारा, फल खिलाकर उनकी रक्षा का संकल्प लिया. इस मुहिम में कानपुर देहात के मंगलपुर गांव का एक मुस्लिम कलीम का पूरा परिवार शामिल है. इसमें उनके साथ परिवार की महिलाएं शामिल रहीं. उन्होंने तमाम मुस्लिम बिरादरी से भी इस मुहिम में सहयोग की अपील की.

कलीम कहते हैं, “इस्लाम में ऐसी चीजों से बचने की हिदायत दी गई है जो दूसरों को नुकसान पहुंचाए या उनके लिए गलत हो. गाय को मजहबी नजरिये से देखा और उसको माना जाता है. लेकिन गायों की सुरक्षा करनी चाहिए.”

मिसाल-बेमिसालः कलीम खान का पूरा परिवार गायों की सेवा में जुटा है


58 साल के कलीम कानपुर देहात के मंगलपुर गांव के रहने वाले हैं. पिछले कई सालों से गौ-सेवा में जुटे हैं. इनका हर दिन  गाय की सेवा में बीतता है. परिवार की शबाना, सुलताना, रीना खान भी कलीम की गौ सेवा में बराबर की मददगार है. सभी अपने हाथों से गायों को खिलाते हैं. वह सुबह छह बजे से लेकर 1 बजे तक घर के दरवाजे पर दर्जन भर गाय की सेवा करते हैं. इस परिवार की गौ-भक्ती के चर्चा दूर-दूर तक फैली है.

15 सालों की सेवा

कलीम और उनका परिवार 13 सालों से गौ-सेवा में जुटा है. यह परिवार गायों की देखभाल कर रहा है. उनकी गौशाला में एक दर्जन के करीब गायें हैं. इनमें से कई बीमार भी हैं और बूढ़ी होने की वजह से ज्यादातर दूध नहीं देती हैं.

यह मुस्लिम परिवार जब से जब से गाय के महत्व की जानकारी जाना तभी से गायों की सेवा में जुटा हुआ है. गोबर उठाने और गायों को खाना खिलाने के बाद यह परिवार नाश्ता करता है. इस परिवार का कहना है कि  मजबूर और बेजुबान जानवर की सेवा धर्म का काम है. इससे किसी को एतराज नहीं होना चाहिए.

शबाना, सुलताना, रीना खान ने कहा कि इस मुहिम से हिंदू-मुस्लिम एकता में मजबूती मिलेगी. मुहिम के जरिए लोगों को जोड़ा जा रहा है. कलीम कहते हैं, “गाय की सुरक्षा के लिए वह गोसेवा के जरिए लोगों के बीच संदेश फैलाना है.” कलीम बताते हैं कि वह बीमार, घायल गायों के इलाज के लिए काम करते हैं.

उन्होंने घायल गायों की देखरेख और ठीक होने तक उनकी निगरानी करने का बीड़ा उठाया है. गायों को खाने-पीने के लिए चारा-पानी का भी इंतजाम किया है. उनसे बेजुबान जानवरों का दर्द देखा नहीं जाता है

इसी लिए उनके लिए उन्होंने मुहिम शुरू की है. मंगलपुर निवासी अतीक निजामी, आरिफा खान, अलीशा, आमिर खान, गुड्डू, मुनीर, रिजवानुरर्हमान आदि ने बताया कि गांव में मुसलमान द्वारा गौ सेवा अनूठी पहल है.

बेजुबानों का सहाराः कलीम खान कहते हैं उनसे बेजुबान जानवरों का दर्द सहा नहीं जाता


जहां एक तरफ गोहत्या और गोमांस के आरोप में मुसलमानों पर हिंसक हमले हुए हैं. वहीं, कुछ मुस्लिम परिवार जी-जान से गोसेवा में जुटे हुए हैं. इन परिवारों का कहना है कि हर मजहब अमन, एकता और भाईचारा सिखाता है. जानवरों की सेवा करना धर्म का काम है.