नई दिल्ली
VVIP हेलिकॉप्टर सौदे से जुड़े मामले में कथित बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल जेम्स की रिहाई की याचिका का विरोध करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मंगलवार को कोर्ट में कहा कि मिशेल का प्रत्यर्पण केवल अन्य अपराधों के लिए नहीं, बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के ट्रायल के लिए भी किया गया था।
ईडी ने यह जवाब विशेष न्यायाधीश संजय जिंदल की अदालत (राउज एवेन्यू कोर्ट) में मिशेल की याचिका पर दायर किया, जिसमें मिशेल ने रिहाई की मांग की थी। ईडी ने याचिका को "भ्रामक" और "निराधार" बताते हुए खारिज करने की मांग की।
ईडी ने अपने जवाब में कहा कि भारत और यूएई के बीच हुए प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 17 के अनुसार, न केवल उन अपराधों के लिए ट्रायल की अनुमति है जिनके लिए प्रत्यर्पण मांगा गया है, बल्कि उन संबंधित अपराधों के लिए भी कार्रवाई की जा सकती है।
ईडी ने यह भी स्पष्ट किया कि दुबई सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2 सितंबर 2018 को दिए गए फैसले को पढ़ने से यह साफ होता है कि मिशेल का प्रत्यर्पण मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ट्रायल के लिए भी मांगा गया था।
ईडी ने बताया कि 22 दिसंबर 2018 को मिशेल को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था, और इस अपराध की अधिकतम सज़ा 7 साल है जो अब तक पूरी नहीं हुई है। इस स्थिति में, सीआरपीसी की धारा 436A (जो लंबी अवधि तक जेल में बंद कैदियों की रिहाई की अनुमति देती है) मिशेल के मामले में लागू नहीं होती।
इससे पहले सोमवार को सीबीआई ने भी मिशेल की रिहाई का विरोध किया था और कहा था कि जब तक आरोप तय नहीं होते और वह दोष कबूल नहीं करता, तब तक उसे रिहा नहीं किया जा सकता।
ब्रिटिश नागरिक मिशेल ने यह कहकर रिहाई की मांग की थी कि उसने हिरासत में अधिकतम 7 साल की सज़ा के बराबर समय काट लिया है। वह फिलहाल सीबीआई और ईडी दोनों मामलों में ज़मानत पर है, लेकिन ज़मानत बॉन्ड दाखिल न करने के कारण अभी भी हिरासत में है। उसका पासपोर्ट पहले ही न्यायालय में जमा हो चुका है और उसकी वैधता समाप्त हो चुकी है।
मिशेल को 4 दिसंबर 2018 को भारत प्रत्यर्पित किया गया था, जिसके बाद सीबीआई ने उसे गिरफ्तार किया और फिर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में।
विशेष लोक अभियोजक (SPP) सीनियर एडवोकेट डीपी सिंह और मनु मिश्रा ने कोर्ट में तर्क दिया कि सिर्फ 7 साल की हिरासत पूरी होने के आधार पर मिशेल को रिहा नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि अगर धारा 467 (जालसाजी) IPC के तहत आरोप तय नहीं भी होते, तो भी बिना दोष स्वीकार किए उसे रिहा नहीं किया जा सकता, क्योंकि धारा 476 IPC के तहत आजीवन कारावास तक की सजा संभव है।“केवल दोष स्वीकार करने पर ही अदालत कह सकती है कि उसकी सजा पूरी हो गई है। वरना, उसे संवैधानिक अदालत का रुख करना होगा,” – सीबीआई की दलील।
आरोपी के वकील अल्जो के. जोसेफ ने तर्क दिया कि मिशेल सीआरपीसी की धारा 436A के तहत रिहाई का हकदार है।वहीं, ईडी की ओर से विशेष लोक अभियोजक एन.के. मट्टा ने कहा कि प्रत्यर्पण की शर्तें ईडी के मामले में लागू नहीं होतीं, क्योंकि मिशेल को सीबीआई की गिरफ्तारी के बाद ईडी ने गिरफ्तार किया था।
उन्होंने यह भी कहा कि छूट या रिहाई (remission) केवल सज़ा सुनाए जाने के बाद ही दी जा सकती है, जबकि ईडी के मामले में 7 साल की सज़ा पूरी नहीं हुई है।
अदालत बुधवार को भी सुनवाई जारी रखेगी।