1980 का दशक: प्रेरणा, आत्मविश्वास और नए भारत की नींव

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-08-2025
The 1980s: Inspiration, confidence and the foundation of a new India
The 1980s: Inspiration, confidence and the foundation of a new India

 

साकिब सलीम

1980 का दशक भारत के इतिहास में एक उथल-पुथल और प्रेरणा का समय था. इस दौर ने न केवल देश को राजनीतिक और सामाजिक रूप से झकझोरा, बल्कि कुछ ऐसे युवा नायकों को भी जन्म दिया, जिन्होंने नई पीढ़ी को सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत दी. इंदिरा गांधी की हत्या, ऑपरेशन ब्लू स्टार, भारतीय क्रिकेट टीम की ऐतिहासिक विश्व कप जीत, देशव्यापी सांप्रदायिक दंगे और क्षेत्रीय राजनीति के उदय के बीच, पाँच ऐसे युवा प्रतीक उभरे जिन्होंने भारत की सोच, आत्मविश्वास और आकांक्षाओं को नया आकार दिया.

s

1. राकेश शर्मा – “सारे जहाँ से अच्छा” अंतरिक्ष से भी

1980 के दशक में जब बच्चों से पूछा जाता कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं, तो अक्सर जवाब आता, “मैं अंतरिक्ष में जाऊंगा.” इस सपने को जीने वाले पहले भारतीय बने – स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा.

1981 में, भारत और सोवियत संघ ने एक संयुक्त अंतरिक्ष मिशन पर सहमति जताई. भारतीय वायु सेना के 150 सर्वश्रेष्ठ पायलटों में से राकेश शर्मा का चयन हुआ और 3 अप्रैल 1984 को उन्होंने सोयुज टी-11 से उड़ान भरी. उनके साथ थे यूरी मालिशेव और गेनाडी स्ट्राकालोव.

शर्मा ने अंतरिक्ष में आठ दिन बिताए और योग और ध्यान पर प्रयोग किए – यह जांचने के लिए कि भारतीय ध्यान अंतरिक्ष में कितना कारगर होता है. जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि "अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है?", तो उनका जवाब था – "सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा."

उनकी इस ऐतिहासिक यात्रा ने उन्हें भारतीय युवाओं का आदर्श बना दिया. देश ने उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया और उनका भव्य स्वागत किया.

d

2. पी. टी. उषा – ट्रैक की रानी, भारत की शान

जब भारतीय महिलाएं खेलों में अपना स्थान बनाने के लिए संघर्ष कर रही थीं, तब पी. टी. उषा ने दौड़ के मैदान में इतिहास रचा. 1980 के दशक में उन्होंने भारतीय एथलेटिक्स को नई पहचान दी.

1985 में जकार्ता एशियाई चैंपियनशिप में उन्होंने पांच स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया. 1986 एशियाई खेलों में चार स्वर्ण और कई अन्य प्रतियोगिताओं में तमाम पदक उनके नाम रहे.

1984 के लॉस एंजेलेस ओलंपिक में मात्र 1/100वें सेकंड से पदक चूक जाना उनके लिए जितना दुखद था, उतना ही प्रेरणादायक भी – उन्होंने 400 मीटर बाधा दौड़ में 55.42 सेकंड में दौड़ पूरी की.

20 वर्ष की आयु तक वे अंतरराष्ट्रीय सुपरस्टार बन चुकी थीं और लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गईं. उनका नाम उस आत्मविश्वास का प्रतीक बन गया था, जो भारतीय महिलाओं को खेलों में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.

d

3. कपिल देव – स्वप्न को साकार करता कप्तान

क्रिकेट भारत में धर्म की तरह पूजा जाता है, पर 1980 के दशक से पहले भारत को एक मज़बूत क्रिकेट राष्ट्र नहीं माना जाता था. इस धारणा को तोड़ने वाले थे एक युवा तेज़ गेंदबाज़ – कपिल देव.

तेज़ गेंदबाज़ी में उत्कृष्ट, बल्लेबाज़ी में विस्फोटक और कप्तानी में साहसी – कपिल ने 1983 में विश्व कप जीतकर भारत को विश्व क्रिकेट के मंच पर गौरव दिलाया.टूर्नामेंट में उन्होंने 303 रन बनाए और 12 विकेट लिए. ज़िम्बाब्वे के खिलाफ उनकी नाबाद 175 रन की पारी को आज भी क्रिकेट इतिहास की महानतम पारियों में गिना जाता है.

उनकी प्रेरणा से भारत को एक से एक तेज़ गेंदबाज़ मिले – श्रीनाथ से लेकर आज के पेस अटैक तक. उन्होंने भारतीय क्रिकेट की आत्मा बदल दी. कपिल सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, एक क्रांति थे.

d

4. मिथुन चक्रवर्ती – डिस्को के राजा, जनमानस के हीरो

अगर 1980 के दशक में कोई अभिनेता भारत के युवाओं के दिलों की धड़कन था, तो वो थे – मिथुन चक्रवर्ती.1982 में आई फिल्म 'डिस्को डांसर' ने न केवल भारत को डिस्को से जोड़ा, बल्कि मिथुन को एक सांस्कृतिक क्रांति का चेहरा बना दिया.

उनका स्टाइल, डांस और करिश्मा देश ही नहीं, विदेशों में भी धूम मचा गया. यहां तक कि रोजर मूर ने उन्हें "भारतीय जेम्स बॉन्ड" कहा था.वे सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि युवाओं के लिए आइकन, गरीबों के लिए उम्मीद, और भारत की सांस्कृतिक छवि के प्रतिनिधि बन गए थे. मिथुन का स्टारडम जन आंदोलन बन गया.

s

5. विश्वनाथन आनंद – शतरंज की बिसात पर भारत की चाल

शतरंज, जो भारत में जन्मा था, उसे वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाने का श्रेय जाता है – विश्वनाथन आनंद को.सिर्फ 18 साल की उम्र में, 1987 में उन्होंने भारत के पहले ग्रैंडमास्टर का दर्जा हासिल किया, जब उन्होंने हंगरी के पीटर लुकाक्स को हराया.

उन्होंने विश्व जूनियर चैंपियनशिप और कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भारत का परचम लहराया. 18 वर्ष की उम्र में ही उन्हें पद्म श्री और राजीव गांधी खेल रत्न मिला.उनकी बदौलत शतरंज भारत में सिर्फ शौक नहीं, पेशेवर करियर बन गया.

एक समय वे भारत के सबसे अधिक कमाई करने वाले खिलाड़ी थे – सचिन तेंदुलकर से भी आगे.आनंद एक ऐसे सितारे बने, जिनकी चमक तीन दशकों तक कम नहीं हुई.1980 का दशक सिर्फ घटनाओं और उथल-पुथल का दौर नहीं था, यह उन युवा प्रतीकों का दशक था, जिन्होंने भारत के सपनों को दिशा दी.

इन पांचों ने दिखाया कि उम्र कोई सीमा नहीं होती – जज़्बा, समर्पण और साहस से हर मंज़िल पाई जा सकती है. ये चेहरे, ये कहानियाँ आज भी भारत के युवाओं को यह विश्वास देती हैं कि वे भी इतिहास रच सकते हैं.