मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
नई दिल्ली के चांदनी चौक की भीड़-भाड़ भरी गलियों में घूमते हुए, यदि आप हल्दीराम की प्रसिद्ध दुकान के ऊपर नजर डालें, तो शायद ही आप उस जगह की सादगी और शांति को महसूस कर सकें जो उस ऊपर की मंजिल पर छुपी हुई है. यहां, गुरुद्वारा सीसगंज साहिब के सामने एक संकरे सीढ़ीनुमा रास्ते के पार, मारवाड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय है , एक ऐसी जगह जो न केवल किताबों का भंडार है, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की जीवंत यादें समेटे हुए है.
एक शताब्दी पुरानी विरासत
1915 में स्वतंत्रता सेनानी और मारवाड़ी व्यापारी सेठ केदारनाथ गोयनका द्वारा स्थापित यह पुस्तकालय आज दिल्ली के सबसे पुराने सार्वजनिक पुस्तकालयों में गिना जाता है. महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, विजयलक्ष्मी पंडित, और अरुणा आसफ अली जैसे महान नेताओं ने इस पुस्तकालय का दौरा किया और इसे स्वतंत्रता आंदोलन का एक सक्रिय केंद्र बनाया.
इस पुस्तकालय के आगंतुक रजिस्टर में आज भी उनके संदेश, टिप्पणियां और तारीखें दर्ज हैं जो भारत की आज़ादी के संघर्ष की जीवंत गवाही देती हैं.
स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र
चांदनी चौक की व्यस्तता के बीच स्थित यह पुस्तकालय उस दौर में केवल पुस्तकों का घर नहीं था, बल्कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक आंदोलनों का स्थल भी था. यहां कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठकें होती थीं, जहाँ देशभक्त विचार-विमर्श करते, योजनाएं बनाते और आज़ादी के सपने को आकार देते थे. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, यह पुस्तकालय जत्थों का प्रारंभिक बिंदु भी रहा.
1917 में महात्मा गांधी के यहां आगमन ने मारवाड़ी समुदाय को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गांधीवादी विचारों से प्रेरित सेठ केदारनाथ ने यह पुस्तकालय केवल एक ज्ञान का मंदिर बनाने का नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की लौ को जिंदा रखने का बीड़ा उठाया था.
किताबों का अमूल्य भंडार
इस पुस्तकालय में आज लगभग 35,000 से अधिक किताबें, 22 प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियां और ऐतिहासिक ग्रंथ मौजूद हैं. ये ग्रंथ न केवल हिंदी साहित्य, बल्कि भारत के इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम, और सांस्कृतिक विरासत के लिए अमूल्य स्रोत हैं. यह जगह विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं, इतिहासकारों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए एक बहुमूल्य संसाधन बनी हुई है.
प्रेम सिंघानिया, जो पुस्तकालय और इससे जुड़ी डिस्पेंसरी के अध्यक्ष हैं, बताते हैं कि पुस्तकालय दो हिस्सों में बंटी है,एक जहां लोग पढ़ते हैं और दूसरा जहां संग्रहित पुस्तकों को सुरक्षित रखा गया है. पहले यहां हिंदी-उर्दू अखबार मुफ्त पढ़े जाते थे, जो तब के समय में आम जनता के लिए ज्ञान का माध्यम थे.
साहित्य और संस्कार का संगम
यह पुस्तकालय केवल स्वतंत्रता संग्राम का केन्द्र नहीं था, बल्कि यह साहित्य, कला और संस्कृति का भी गढ़ था. हिंदी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर, मैथिलीशरण गुप्त और हरिवंश राय बच्चन भी इस पुस्तकालय से जुड़े रहे. उन्होंने यहां अध्ययन किया, शोध किया और अपनी कविताओं और रचनाओं के माध्यम से देशवासियों को जागरूक किया.इसने साहित्यिक चेतना को भी पोषित किया और आज भी यह स्थान युवा विद्वानों और साहित्यकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है.
सामाजिक सेवा और शिक्षा का अभियान
आज इस पुस्तकालय का महत्व केवल इतिहास तक सीमित नहीं है. अभिषेक गणेडीवाला, जो ट्रस्ट के प्रतिनिधि हैं, बताते हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए पुस्तकालय ने मुफ्त किताबें उपलब्ध कराई हैं. यह सुविधा छात्रों को उनके शैक्षणिक संघर्ष में मदद करती है और शिक्षा को सशक्त बनाने का प्रयास है.
त्रिलोक चंद गोयनका, संस्थापक परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य, ने बताया कि पुस्तकालय ने प्राइमरी से सेकेंडरी तक करीब 500बच्चों को मुफ्त शिक्षा भी प्रदान की है. यह समाज सेवा का एक अनूठा उदाहरण है, जो ज्ञान और शिक्षा के माध्यम से समाज को मजबूत बनाने का संकल्प लेकर चल रहा है.
वास्तुकला में समृद्ध इतिहास
मारवाड़ी पुस्तकालय की इमारत अपने आप में एक ऐतिहासिक धरोहर है. इसका बाहरी हिस्सा कभी सफेद स्तंभों वाला विक्टोरियन शैली का था, जो अब आधुनिक सुविधाओं से युक्त एक समकालीन पुस्तकालय में परिवर्तित हो चुका है. दो मंजिला इस भवन में एक हिस्सा पाठकों के लिए और दूसरा विशाल संग्रह के लिए समर्पित है.
इस भवन की दीवारों पर स्वतंत्रता सेनानियों के हस्ताक्षर और उनके संदेश आज भी इतिहास के पन्नों को जीवंत करते हैं. पुस्तकालय के प्रवेश द्वार पर लगा पुराना शीशे का दर्पण, वर्षों की गवाही देता है कि इस जगह ने कितने संघर्ष, कितनी कहानियां देखी हैं.
सामुदायिक सहयोग और समर्पण की मिसाल
इस विशाल पुस्तकालय व्यवस्था को चलाना आसान काम नहीं है. यह पूरी तरह से मारवाड़ी चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित है, जो सदस्यों की नियमित बैठकें कर इसके संचालन का ध्यान रखता है. तुलसीश्याम, जो पिछले 30 वर्षों से पुस्तकालय से जुड़े हैं, बताते हैं कि यह पुस्तकालय स्थानीय समुदाय की सामाजिक चेतना और सहयोग का जीता जागता उदाहरण है.
पुस्तकालय के पास अखबारों का तीन महीने का संग्रह भी उपलब्ध है, जो इतिहास के शोधार्थियों के लिए खजाने से कम नहीं. वातानुकूलित अध्ययन कक्ष, आरामदायक बैठने की व्यवस्था और पुस्तकालय में लगे आधुनिक उपकरण इसे युवा पीढ़ी के लिए और भी अधिक उपयोगी बनाते हैं.
स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक प्रेरणा
जब आज हम दिल्ली की चमक-दमक में चलते हैं, तो शायद हमें उस दौर की याद न रहे, जब देश के लिए लड़ने वाले लोग इसी पुस्तकालय में बैठकर रणनीति बनाते थे. मारवाड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय सिर्फ किताबों का घर नहीं, बल्कि भारत के स्वाधीनता संग्राम का जीवंत स्मारक है.
यह स्थान हमें याद दिलाता है कि ज्ञान और एकजुटता के माध्यम से कैसे एक विशाल आंदोलन को आकार दिया जा सकता है. यहाँ की दीवारें, पांडुलिपियां, और पुस्तकों की खुशबू आज भी उस जोश, उस संघर्ष और उस संकल्प की गाथा सुनाती हैं.
मारवाड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय, चांदनी चौक की भीड़-भाड़ में एक शांत ओएसिस की तरह है, जो न केवल ज्ञान का भंडार है बल्कि देश के इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की अमर गाथा भी है. यह पुस्तकालय न केवल भूतकाल की यादें संजोए हुए है, बल्कि आज भी शिक्षा, शोध और सेवा के माध्यम से समाज को सशक्त बनाने में योगदान दे रहा है.
इस पुस्तकालय की कहानी हमें यह सिखाती है कि असली स्वतंत्रता केवल तलवारों या प्रदर्शनों से नहीं मिलती, बल्कि किताबों, विचारों और शिक्षा से ही संभव होती है. और यही कारण है कि मारवाड़ी पुस्तकालय दिल्ली के दिल में एक अमूल्य धरोहर के रूप में जीवित है—एक ऐसी विरासत जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा, साहस और ज्ञान देती रहेगी.