The Supreme Court will hear the suo motu case related to victims of 'digital arrest' on October 27.
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय जाली दस्तावेज के जरिये धोखाधड़ी का शिकार हुए 'डिजिटल अरेस्ट' पीड़ितों के स्वतः संज्ञान वाले मामले की 27 अक्टूबर को सुनवाई करेगा।
उच्चतम न्यायालय की वाद सूची के अनुसार, “जाली दस्तावेज के जरिए डिजिटल अरेस्ट के पीड़ित” विषय वाली स्वतः संज्ञान याचिका सोमवार को न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आएगी।
शीर्ष अदालत ने 17 अक्टूबर को मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि प्रथम दृष्टया न्यायिक दस्तावेज की जालसाजी, साइबर जबरन वसूली और निर्दोष लोगों, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों की साइबर गिरफ्तारी से जुड़े आपराधिक उद्यम की पूरी सीमा का पता लगाने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच समन्वित प्रयासों के साथ अखिल भारतीय स्तर पर कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है।
उच्चतम ने इस मामले में केंद्र, सीबीआई और अन्य से जवाब मांगा है तथा कहा है कि इस तरह के अपराध न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास की ‘नींव’ पर प्रहार करते हैं।
शीर्ष अदालत ने हरियाणा के अंबाला में एक वरिष्ठ नागरिक दंपति के ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामले का संज्ञान लिया था। धोखाधड़ी करने वालों ने अदालत और जांच एजेंसियों के फर्जी आदेशों के आधार पर इस दंपति से 1.05 करोड़ रुपये जबरन वसूल लिये थे।
पीठ ने कहा, ‘‘हम इस बात से स्तब्ध हैं कि धोखेबाजों ने भारत की शीर्ष अदालत और विभिन्न अन्य दस्तावेज के नाम पर न्यायिक आदेशों को गढ़ा है।
पीठ ने यह भी कहा कि दस्तावेज की जालसाजी और उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के नाम, मुहर और न्यायिक प्राधिकार का बेशर्मी से आपराधिक दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है।