बेगुसराय. असम कैबिनेट द्वारा असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को रद्द करने की घोषणा के बाद, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने शनिवार को असम सरकार के फैसले की सराहना की और कहा कि हिंदुओं के लिए अलग कानून और मुसलमानों के लिए अलग कानून से काम नहीं चलेगा. साथ ही कहा कि इस तरह से देश ठीक से नहीं चल पाएगा.
गिरिराज सिंह ने शनिवार को संवाददाताओं से कहा, ‘‘उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लेकर आया, अब असम में एक कानून का सभी लोग पालन करेंगे तो फायदा होगा. हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग कानून संभव नहीं होगा और इस तरह ठीक से देश नहीं चल पाएगा.’’
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के नेता रफीकुल इस्लाम ने शनिवार को फैसले की आलोचना करते हुए इसे ‘मुसलमानों को निशाना बनाने की रणनीति’ बताया. रफीकुल ने नआई से बात करते हुए दावा किया कि हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार के पास समान नागरिक संहिता लाने का ‘साहस’ नहीं है, इसलिए विवाह अधिनियम को रद्द कर दिया गया है.
उन्होंने कहा, ‘‘इस सरकार में यूसीसी लाने की हिम्मत नहीं है. वे ऐसा नहीं कर सकते. वे जो उत्तराखंड में लाए, वह यूसीसी भी नहीं है... वे असम में भी यूसीसी लाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन मुझे लगता है कि वे ऐसा नहीं कर सकते कि इसे असम में लाएं, क्योंकि यहां कई जातियों और समुदायों के लोग हैं...भाजपा के अनुयायी खुद यहां उन प्रथाओं का पालन करते हैं....’’
2011की जनगणना के अनुसार, असम की आबादी में मुसलमानों की संख्या 34प्रतिशत है, जो कुल 3.12करोड़ की आबादी में से 1.06करोड़ है. इससे पहले शुक्रवार को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था कि असम कैबिनेट ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935को रद्द करने का फैसला किया है.
सरमा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘23.2.2024 को, असम कैबिनेट ने सदियों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया. इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे, भले ही दूल्हा और दुल्हन 18 और 21 वर्ष की कानूनी उम्र तक नहीं पहुंचे हों, जैसा कि कानून द्वारा आवश्यक है. यह कदम असम में बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है.’’
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