Samastipur: 'Chhata Holi' of Dhaman village has kept the 500 year old tradition alive, know how it is organised?
समस्तीपुर
देशभर में रंगों के पर्व होली को लेकर उमंग दिखने लगा है. बिहार के समस्तीपुर के परोटी स्थित धमौन गांव की ‘छाता होली’ को लेकर भी लोगों में काफी उत्साह है.
दरअसल, धमौन गांव में ‘छाता होली’ को एक अद्भुत और अनोखे तरीके से मनाया जाता है, जहां हर ‘छतरी’ के नीचे लोग एकजुट होकर होली के गीत गाते हैं और इसे उल्लास के साथ मनाते हैं.
धमौन गांव के एक बुजुर्ग ने आईएएनएस से बातचीत में ‘छाता होली’ की खासियत के बारे में बताया. उन्होंने कहा, "यहां होली खेलने की परंपरा काफी वर्षों पहले शुरू हुई थी, जिसे हम आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. हमारे पूर्वज छाता होली के दौरान गीत भी गाते थे, यह परंपरा आज भी चल रही है. पहले की तुलना में अब ‘छाता होली’ को लेकर काफी उत्साह दिखाई देता है."
समस्तीपुर के धमौन गांव में होली की तैयारी एक महीने पहले से शुरू हो जाती है. इस दौरान गांव की अलग-अलग टोली एक साथ मिलकर बांस की विशाल छतरियां बनाती हैं. इन छतरियों का आकार इतना बड़ा होता है कि एक छतरी के नीचे दो दर्जन से अधिक लोग खड़े होकर होली के गीत गा सकते हैं. इस परंपरा में न केवल उत्सव का आनंद लिया जाता है, बल्कि इसमें कड़ी प्रतिस्पर्धा भी होती है, क्योंकि हर टोली अपनी छतरी को खूबसूरत और आकर्षक बनाने के लिए विशेष प्रयास करती है.
एक छतरी को बनाने के लिए करीब 15,000 से लेकर 50,000 रुपए तक खर्च आता है और इसे पूरा तैयार करने में लगभग 15 दिन का समय लगता है.
गांव के अन्य बुजुर्ग ने आईएएनएस को बताया कि यह परंपरा 500 साल पुरानी है. 17वीं शताब्दी के मध्य में छाता होली खेलने की परंपरा शुरू हुई थी. हमारे पूर्वज धमौन गांव में आकर बसे थे और उन्होंने इसे शुरू किया था. हालांकि, बाद में होली खेलने के दौरान छाते को लाया गया था, जो आज भी परंपरा का हिस्सा है. मैं मांग करता हूं कि हमारे यहां की छाता होली को राजकीय दर्जा दिया जाए.
धमौन गांव की पहचान स्वामी निरंजन मंदिर से जुड़ी हुई है, जहां लोग होली के दिन छतरियों के साथ एकत्रित होकर अपने कुल देवता की पूजा करते हैं और वहां से यह रंग-बिरंगी छतरियों की यात्रा शुरू होती है.
धमौन गांव की ‘छाता होली’ इतनी फेमस है कि स्थानीय ही नहीं, बल्कि देश-विदेश से भी लोग आते हैं.