लखनऊ में समाजवादी पार्टी के नेता ने प्रेमानंद महाराज के लिए की मुस्लिम समुदाय के साथ दुआ

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 15-10-2025
Samajwadi Party leader in Lucknow prays with the Muslim community for Premanand Maharaj
Samajwadi Party leader in Lucknow prays with the Muslim community for Premanand Maharaj

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली  

लखनऊ के मॉल एवेन्यू स्थित ऐतिहासिक दरगाह दादा मियां में मंगलवार को एक अनोखा और दिल को छूने वाला दृश्य देखने को मिला, जो समाज में धर्म और संप्रदाय की सीमाओं को मिटाने का प्रतीक बना। यह दृश्य उस समय देखने को मिला, जब हिंदू संत प्रेमानंद महाराज के स्वास्थ्य लाभ के लिए बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग दरगाह में एकत्रित हुए।

दरगाह परिसर में मौजूद मुस्लिम समुदाय के लोग प्रेमानंद महाराज की लंबी उम्र और शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए दुआ करने पहुंचे थे, और यह एक ऐसा पल था जब धर्म के भेदभाव को पार करते हुए एकता और भाईचारे की मिसाल सामने आई। इस अवसर पर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद अखलाक भी वहां पहुंचे और चादर चढ़ाकर प्रेमानंद महाराज के शीघ्र स्वस्थ होने की दुआ मांगी।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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मोहम्मद अखलाक ने चादर चढ़ाने के बाद कहा कि प्रेमानंद महाराज जैसे संत समाज के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं। उनका जीवन प्रेम, एकता, और मानवता का प्रतीक है। अखलाक ने कहा, "प्रेमानंद महाराज हमेशा समाज को जोड़ने का काम करते हैं। वे उन महान व्यक्तित्वों में से हैं, जो इंसान को किसी धर्म, मजहब या जाति के आधार पर नहीं, बल्कि इंसानियत की कसौटी पर देखते हैं। ऐसे लोग समाज को सच्चे मायने में एकजुट करने का काम करते हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "जब मुझे महाराज के अस्वस्थ होने की खबर मिली, तो मैं बहुत दुखी हुआ। उनके जैसा व्यक्ति, जो हमेशा लोगों के दिलों में मोहब्बत और शांति का पैगाम देता है, अस्वस्थ कैसे हो सकता है! मैं लगातार दुआ कर रहा हूं कि वे जल्दी ठीक हो जाएं, ताकि वे समाज के लिए और अधिक अच्छे काम कर सकें।" अखलाक ने सभी से अपील की कि वे भी प्रेमानंद महाराज के लिए दुआ करें और समाज में मोहब्बत और भाईचारे का संदेश फैलाने का काम करें।

मोहम्मद अखलाक का कहना था कि हमारे समाज को आज भी ऐसे व्यक्तित्वों की ज़रूरत है जो नफरत और असहमति से परे जाकर प्रेम, एकता, और सामूहिकता का प्रचार करें। उनके अनुसार, ऐसे संत ईश्वर के सच्चे वरदान होते हैं जो लोगों के दिलों में मानवता की भावना को जगाते हैं और समाज को एकजुट करते हैं।

मुलाकात के दौरान मोहम्मद अखलाक ने एक शेर भी सुनाया, जो वहां उपस्थित सभी लोगों के दिलों को छू गया। उनका यह शेर था:
“कौन हिंदू, कौन मुसलमान...
तू पढ़ ले मेरी गीता, मैं पढ़ लूं तेरा कुरआन।”

इस शेर के जरिए उन्होंने यह संदेश दिया कि धर्म की पहचान इंसानियत से होनी चाहिए, न कि किसी धर्म या मजहब के आधार पर। यह शेर पूरी दरगाह में उपस्थित लोगों के दिलों में समरसता और प्रेम का एक सशक्त संदेश छोड़ गया।

इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि जब तक हम इंसानियत और भाईचारे के मूल्यों को प्राथमिकता देंगे, धर्म की सीमाएं महज औपचारिकता बनकर रह जाएंगी। यह दृश्य एक प्रतीक बन गया कि समाज में एकता और भाईचारे के संदेश को फैलाने का काम हम सभी को मिलकर करना चाहिए, चाहे हम किसी भी धर्म या संप्रदाय से जुड़े हों।